0 लक्जरी बस में सवार मजदूर जा रहे थे तमिलनाडु, सूचना पर 112 की टीम चालक , परिचालक को ले गई थाने, पूछताछ बाद छोड़ा

कोरबा। लॉकडाउन के दौरान हज़ारों प्रवासी मज़दूर महानगरों से अपने घर लौट आए थे. राज्य सरकार ने उन्हें घर में ही रोके रखने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन मज़दूरों को वो रोकने में नाकाम साबित हो रही हैं.
कोविड-19 का संक्रमण भले ही अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है, लेकिन लॉकडाउन खुलने से अब श्रमिक फिर से रोजगार की तलाश में पलायन करने लगे हैं। लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्यों में फंसे लाखों श्रमिकों को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने अपने खर्चे पर घर पहुँचाया, लेकिन अनलॉक होते ही जिले की सड़कों पर लग्जरी बस इसलिए घूम रही है कि दूसरे राज्यों में मजदूरों के अभाव में बंद पड़ी फैक्ट्रियों के लिए मानवीय संसाधन जुटाया जा सके।लॉकडाउन में घर आने की चाहत में लाखों मजदूर भूख, प्यास एवं शारीरिक कष्ट से इतना भुगते कि तस्वीर देखकर रूह भी कांप जाती थी।लेकिन जिले के श्रमिक फिर वही गलती कर रहे है।
सरकार भले ही अनेक योजनाएं चला रही है जिनके क्रियान्वयन हेतु प्रतिवर्ष करोड़ो का बजट भी स्वीकृत होता है।अधिकतर योजनाओं में मानवश्रम ही मुख्य होते है।ताकि लोगों को रोजगार मिलें और कोई भूखा ना रहे।लेकिन वर्तमान कोरोना संकट हालात के बावजूद मजदूर वर्ग अधिक मजदूरी के लालच में और दलालों के झांसे में आकर अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर जाने को फिर तैयार है।जहां सही मजदूरी भी नही पाते और उल्टे बुरी तरह से ठगे जाते है।इसके अलावा मारपीट एवं भुखमरी तक के शिकार होते है।ऐसे में शासन द्वारा जनहित में चलाई जा रही अनेकों रोजगारमूलक योजनाएं महज दिखावा लगती है।ऐसा ही एक मामला सूत्रों के हवाले से प्राप्त हुआ है जहां बीते शनिवार 12 सितंबर को शाम लगभग 4 बजे ग्राम लखनपुर बायपास रोड में तमिलनाडु राज्य की एक बस क्रमांक- TN- 31 EH 2457 जिले के मजदूरों को चुपके से भरकर तमिलनाडु (केरला) लेकर जाने के फिराक में खड़ी थी।तभी स्थानीय ग्रामीणों ने उक्त मामले की सूचना डायल 112 को दी जहाँ सूचना उपरांत मौके पर पहुँची 112 की टीम द्वारा बस चालक व परिचालक को पूछताछ हेतु थाना लेकर चली गई।लेकिन मामले में किसी भी प्रकार की कार्यवाही सामने नही आई।गंभीर बात तो यह थी कि बस के भीतर जिले के पहरीपारा (फुलसरी) से 10 मजदूर जिनमें नाबालिग किशोर वर्ग भी सवार थे।जिनमें से ग्रामीण जनकराम चौहान एवं नाबालिग शिव कुमार अगरिया से पूछे जाने पर यह पता चला कि वे अन्य मजदूरों के साथ काम कि तलाश में निकले है और तमिलनाडु जा रहे है।इसके अलावा बस में राजनांदगांव के भी लगभग 10- 11 मजदूर सवार थे।एक तरफ कोरोना संकट के प्रारंभकाल में अन्य प्रांतों में पलायन किये लोग सैकड़ो किलोमीटर भूखे प्यासे पैदल चलकर अपने- अपने घर को लौटे है तो वहीं दूसरी ओर भोले-भाले गरीब तबके के लोगों को पुनः छत्तीसगढ़ से बाहर ले जाने वाले दलाल पर्दे के पीछे सक्रिय हो गए है और ऐसे बिचौलियों के झांसे में आकर ग्रामीण फिर से पलायन करने  लगे है।
उल्लेखनीय हैं  कि खेतों में फसल खड़ी होने के साथ नवरात्र व दशहरा पर्व के नजदीक आते ही ग्रामीण अंचलों में गुजर- बसर का जरिया ठप्प पड़ जाता है और फिर लोग कमाने खाने के लिए दूसरे प्रांत पलायन करने को मजबूर रहते है।और उन गरीब परिवारों के घर सूने दिखाई देने लगते है।वर्तमान में जिले के भीतर मुख्यमार्गों पर अन्य प्रांतों के अनेक बसें दौड़ते दिख जाएंगे लेकिन कोरोना हालात को देखते हुए उन बस चालकों से पुलिस पूछताछ नही करती यह सोचकर कि जिले अथवा सीमावर्ती जिले में फंसे मजदूर वर्गों को लेकर बस वापस लौट रही होंगी। वर्तमान इन्ही सब का फायदा उठाकर जिले से ग्रामीण मजदूरों को प्रदेश से बाहर भेजने दलाल अपने मंसूबे को सफल बनाने में लगे हुए है।जिला प्रशासन को इस ओर गंभीरता के साथ ध्यानाकर्षित ककोरोना प्रोटोकॉल का पालन भी नहीं
वाहनों में ओवर लोडिंग की समस्या से जहां हमेशा गंभीर दुर्घटना का भय बना रहता है, वहीं कोरोना प्रोटोकॉल का पालन भी नहीं किया जा रहा है। अधिकांश सवारी वाहनों में ग्रामीण बगैर मास्क के नजर आ रहे हैं। क्षमता से अधिक सवारी बैठाने से कोरोना प्रोटोकॉल के तहत शारीरिक दूरी के पालन की भी धज्जियां उड़ रही है। इससे संक्रमण फैलने का खतरा भी बढ़ रहा है।रने की आवश्यकता है।