रामराज में अफसरशाही का छत्तीसगढ़ मॉडल,दास हो गए खास पुलिस की फजीहत …सरकारी दफतर और क्रिप्टो करेन्सी,गरीबों का चावल और अफसर लाल…

0
504

रामराज में अफसरशाही का छत्तीसगढ़ मॉडल

राजधानी रायपुर में इन दिनों सरकार के छत्तीसगढ़ मॉडल की जमकर चर्चा है। सरकार का छत्तीसगढ़ मॉडल यानि गांधी का रामराज….जहां सभी को आंदोलन धरना करने का अधिकार होगा, मगर यहां की अफसरशाही ने गांधी वाद की नई परिभाषा गढ़ ली है। दरअसल राजधानी के आंदोलन स्थल बूढ़ा तालाब में इन दिनों सत्याग्राही की रेलम पेल भीड़ होती जा रही है। कभी बिजली विभाग के संविदा कर्मी तो कभी स्वास्थ्य विभाग से हंकाले गए स्वास्थ्य कर्मी… सभी सरकार का पारा बढ़ा रहे हैं। इन सत्याग्राही से अफसरों के भी पसीने छूट रहे हैं।

चुनाव करीब है, सरकार कोई वादा करके मुसीबत मोल नहीं लेगी तो इसका तोड़ तो अब अफसरों को ही निकलना पड़ेगा…नंबर जो बढ़ाना है। अब अफसरशाही ने अपने तरीके से इसका तोड़ ढ़ूढ निकाला है, अब धरना स्थल में आंदोलन हड़ताल सब बैन कर दिया गया है, जिले में धारा 144 लागू करने का फरमान जारी कर दिया। अब बेचारे सत्याग्राही भी क्या करें रामराज में कानून तो सबको मानना ही पड़ेगा। अब इन सत्याग्राहियों में सरकार के छत्तीसगढ़ मॉडल को लेकर नई बहस चल पड़ी है जिसका असर आने वाले समय में दिखने लगेगा।

दास हो गए खास…पुलिस की फजीहत

कहने को तो कोई भी किसी का खास हो सकता है अब शहर के दास जी को ही लिजिए जनाब पुलिस के लिए खास बन गए हैं। हालांकि दास जी भी पुलिस के नाक में दम करते हुए चुनौती दे दी है। मामला कोतवाली क्षेत्र के तेज तर्रार थानेदार का है जहां एक संगठन ने पार्षद पर आरोप लगाया और पुलिस पर उनकी गिरफ्तारी की दबाव! अब ऊर्जाधानी के होनहार पुलिस के लिए गिफ्तारी फजीहत हो गई है तभी तो आलाअधिकारी पता बताने वाले से लेकर ठिकाना दिखाने वालो के लिए इनाम पे इनाम की बौछार कर रही है। अब इसे बदकिस्मति ही कहे या और कुछ इनाम की घोषणा के बाद भी शहर के एक पार्षद को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी है। मितानिनों के बढ़ते दबाव को देखते हुए अब एक पार्षद को पकड़ने के लिए पुलिस अमला ने पूरी ताकत झोंक दी है। अब देखना यह है कि पुलिस दास जी को पकड़ने में कामयाब होती हैं या पुलिस का यह सपना सिर्फ सपना।

सरकारी दफतर और क्रिप्टो करेन्सी

जिले में इन दिनों एक सरकारी दफ्तर क्रिस्टो करेंसी के सट्टा में मशगूल है। खबरीलाल के मुताबिक इस दफ्तर का कई होनहार अधिकारी और कर्मचारी सट्टा के जाल में फंस चुके है. बताया तो यह भी जा रहा है कि सरकारी दफ्तर में नौकरी करने वालों का लगभग 20 लाख ऑनलाइन गेम में लग चुका है। जिला मुख्यालय में होने के बाद भी जिस कदर सट्टा का खुमार चढ़ा है उससे जिला लेबल के अधिकारियों की साख में भी बट्टा लग रहा है। खैर सरकारी नौकरी करने वाले अधिकारी कर्मचारियों का क्या कौन सा अपना मेहनत का पैसा है जिसका डूबने का डर है , सरकारी रकम है आ गया तो हमारा है नहीं आया तो.. तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा! अब इस सट्टा का नशा ग्रामीण सचिवों पर भी दिखने लगा है और लोग तो यह भी कहने लगे है कि पंचायत का पैसा लगाकर लाखों रुपया कमा चुके हैं। तभी तो वे अब सरकारी काम काज को दरकिनार कर क्रिस्टो करेंसी के सट्टा में मस्त है।

गरीबों का चावल और अफसर लाल

कहने को तो गरीबों को सरकार बहुत कुछ मुफ्त में दे रही है पर असल में गरीबों की गरीबी से अफसर लाल हो रहे हैं। खाद्य विभाग के अफसर गरीबों के चावल की तस्कर करने वाले शहर के धन्ना सेठों पर मेहरबान हैं। खबरीलाल की माने तो सोसायटी संचालकों की बाकायदा हर माह मीटिंग ली जाती है ऊपर के अधिकारी और नीचे के कर्मचारी के नाम पर सभी दुकानदारों से एक निश्चित रकम की मांग की जाती है। और तो और एक ताजा मामला पिछले दिनों चर्चा का विषय रहा कि पताढ़ी के समीप एक राइसमिलर्स से बड़ी रकम की उगाही की गई। ख़ुफ़िया जानकारी की माने तो मुफ्त और कम दाम के चावल ने एक नेता भी बना दिया है। जो ग्रामीण एरिया के कई राशन दुकान से चावल की कालाबाजारी करते हैं। शहर के राईस किंग तो खाद्य विभाग के रहमों करम की वजह से राशन दुकान को यार्ड बनाकर चावल का खुला व्यापार कर लोगों को चैलेन्ज करता है। इन सबके बीच अधिकारी ही सेफ गेम खेलकर वाहवाही भी बटोर रहे हैं और उगाही कर मालामाल भी…यानि चिट भी मेरी पट भी मेरी अंटी मेरे…. !

एडिशनल अफसर और नेताओं की फजीहत

लम्बे समय से जिला बनाने की मांग करने वाले आंदोलनकारियों का सपना उस समय टूट गया जब सूबे के सीएम ने एडिशनल अफसर की तैनाती की घोषणा कर दी। खबर मिलते ही प्रदर्शन करने वालों का गुस्सा स्थानीय लीडरों पर फूटा और जिला बनाने की मांग करने वाले क्षेत्रीय विधायकों के खिलाफ चुनावी कैम्पेनिंग करने की नसीहत दे डाली। अब लोकल पॉलिटिशियन पर पब्लिक का गुस्सा देख नेताजी फिर एक आश्वाशन का झुनझुना थमाने का प्रयास कर रहे हैं, पर उससे क्या आखिर नेतागिरि की फजीहत तो हो ही गई। खैर अभी भी लोगों में आस है क्योंकि अभी तो चुनाव जो ख़ास है, तभी तो सत्ता पक्ष के एक दिग्गज नेता अभी भी जिला बनाने को लेकर आश्वश्त करते फिर रहे हैं।

 

                अनिल द्विदेदी, ईश्वर चन्द्रा