कोरोना वायरस महामारी के बीच सोमवार को संसद के मानसून सत्र की शुरुआत हुई। इस दौरान विपक्ष ने सरकार को प्रवासी मजदूरों के मुद्दों पर घेरा। विपक्ष ने सरकार से सवाल किया कि लॉकडाउन के दौरान कितने प्रवासी मजदूरों की मौत हुई, क्या सरकार के पास इसके संबंध में कोई डाटा है। इस पर केंद्र ने कहा कि सरकार के पास प्रवासी मजदूरों की मौत की संख्या को लेकर कोई डाटा उपलब्ध नहीं है।
दरअसल, केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय से लोकसभा में जानकारी मांगी गई थी कि क्या सरकार को इस बात की जानकारी है कि कितने प्रवासी मजदूरों ने अपने मूल निवास लौटने की कोशिश में जान गंवाई और क्या सरकार के पास राज्यवार आंकड़ा मौजूद है।
इस सवाल का जवाब देते हुए मंत्रालय ने कहा कि 25 मार्च से लगाए गए लॉकडाउन प्रतिबंधों के कारण होने वाली प्रवासी मजदूरों की मौतों की संख्या पर सरकार के पास कोई आंकड़ा या डाटा नहीं है। गौरतलब है कि 68 दिनों के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान कई प्रवासी श्रमिकों ने अपनी जान गंवाई।
मंत्रालय की ओर से यह जवाब लोकसभा में उठाए गए एक सवाल पर दिया गया, जिसमें महामारी के कारण नौकरी गंवाने के बाद अपने मूल स्थानों पर लौटने की कोशिश में जान गंवाने वाले प्रवासी कामगारों की मृत्यु के राज्यवार विवरण की जानकारी मांगी गई थी। इसमें ये भी पूछा गया कि क्या मृतकों के परिवार को कोई मुआवजा या आर्थिक सहायता सरकार द्वारा प्रदान की गई थी।
सरकार द्वारा लॉकडाउन के दौरान प्रवासियों द्वारा सामना की गई समस्याओं का आकलन करने में विफल रहने पर भी सवाल किया गया। हालांकि, केंद्र ने कहा कि पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने का कोई सवाल ही नहीं था क्योंकि सरकार के पास इससे संबंधित कोई डाटा नहीं था।
श्रम और रोजगार राज्य मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने बताया, ‘भारत ने एक राष्ट्र के रूप में, केंद्र और राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों, स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी), निवासी कल्याण संघों (आरडब्ल्यूए), चिकित्सा स्वास्थ्य पेशेवरों, स्वच्छता कार्यकर्ताओं के साथ-साथ बड़ी संख्या में गैर-सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) के माध्यम से कोविड-19 प्रकोप और देशव्यापी लॉकडाउन के कारण अभूतपूर्व मानव संकट के खिलाफ लड़ाई लड़ी।’
मंत्रालय ने संसद को बताया कि 1.04 करोड़ से अधिक प्रवासी मजदूर लॉकडाउन के दौरान अपने मूल निवास पर लौटे। सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश (32.4 लाख) में मजदूर वापस अपने घर लौटे। इसके बाद प्रवासी मजदूरों की संख्या के मामले में बिहार (15 लाख) के साथ दूसरे, राजस्थान (13 लाख) के साथ तीसरे स्थान पर रहा।