रायपुर: बस्तर में लाल दहशतगर्द लगातार अपनी मौजूदगी का अहसास कराने के लिए कायराना करतूत को अंजाम देते हैं, लेकिन हमारे जवानों के होंसलों के आगे उनकी ये कायरता की बारूदी सुरंगे कहीं नहीं टिकती। लेकिन अब सवाल ये है कि आखिर चूक कहां है, कैसे उन्हें जवानों की सही लोकेशन मिलती है? क्या बीडीएस की टीम को भी ज्यादा सतर्कता और नई टेक्नोलॉजी की जरुत है? आखिर कब तक फटती रहेंगी ये बारूदी सुरंगें?
बस्तर में सुरक्षा बलों पर नक्सलियों के लगातार बढ़ते हमले और उससे उठते कई सवाल। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर क्यों अचानक नक्सलियों की आक्रामकता बढ़ी है? सवाल ये भी कि आखिर रणनीति में कहां हो रही चूक? जानकारों की मानें तो इलाके में दमदार मौजूदगी दर्ज कराने और फोर्स के लगातार बढ़ते दखल को चुनौती देने साथ ही ये मैसेज देने कि लाल आतंक यहां कमजोर नहीं पड़ा है ये हमले किए गए। 15 दिनों के भीतर ही 5 घटनाओं में 4 जवानों की शहादत हो गई। 24 फरवरी से 4 मार्च तक अलग-अलग जगहों पर नक्सलियों ने आईडी ब्लास्ट के जरिए जवानों को निशाना बनाया है, जिसकी वजह से पुलिस को कई बड़े ऑपरेशन स्थगित करने पड़े।
नारायणपुर और दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने बारूदी सुरंगे बिछाकर सुरक्षा बलों को नुकसान पहुंचाया है। पुलिस के मुताबिक नक्सली बारूदी सुरंगों का हमेशा इस्तेमाल करते रहे हैं। साल भर में 200 से 250 आईडी पुलिस अपनी मुस्तैदी से बरामद करती है। हालांकि पुलिस ये भी स्वीकार कर रही है कि चुनिंदा ऐसी घटनाएं हुई जो किसी वजह से पकड़ी नहीं जा सकी और जवान हादसे का शिकार हो गए। लेकिन क्या ये नक्सलियों की बदली रणनीति का हिस्सा है या बम डिस्पोजल दस्ते की दक्षता और सर्चिंग में सावधानी को नक्सली भांप चुके हैं। वजह चाहे जो भी हो, लेकिन बस्तर में लगातार बढ़ते हमलों पर सत्तापक्ष और विपक्ष का अपना-अपना तर्क है।
जाहिर है बीते कुछ महीनों में जवानों के लगातार ऑपरेशन ने नक्सलियों को बैकफुट पर धकेला है। दरअसल गर्मियों में ऑपरेशन नक्सलियों के लिए लिहाजा अब नक्सली आमने-सामने के मुकाबले की वजह बारूदी सुरंगों का सहारा ले रहे हैं। एक अहम तथ्य ये भी है कि बीते कई बरसों से नक्सली गर्मियों में बड़े हमले बोलते रहे हैं, इसी रणनीति के तहत उन्होंने ये अटैक किए। ये कुछ ऐसे कारण है, जिनके चलते बस्तर में लाल हिंसा में बढ़ोतरी हुई है। सवाल है कि इस सूरतेहाल में अब लाल आतंक को काउंटर कैसे करेगी सरकार?