रायपुरः ’जय जवान, जय किसान’ 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के वक्त लालबहादुर शास्त्री के दिए इस नारे से देश में हरित क्रांति की शुरुआत हुई। देश का जवान तो सीमा पर तैनात है पर किसान खेत के बजाए सड़कों पर हैं। जी हां केंद्र सरकार के नए कृषि कानून के खिलाफ 74 दिन से किसान दिल्ली की सीमा पर डटे हैं। इसी बीच प्रदर्शनकारियों ने शनिवार को देश भर में नेशनल हाईवे पर चक्काजाम किया। छत्तीसगढ़ में भी 25 नेशनल और स्टेट हाइवे में तीन घंटे चक्काजाम रहा, जिसे कांग्रेस ने समर्थन दिया। मामला चूंकि देश के सबसे बड़े वोट बैंक किसान का है लिहाजा इसे लेकर आरोप-प्रत्यारोप की सियासत भी हुई। ऐसे में बड़ा सवाल ये कि क्या राजनैतिक दलों मे किसानों का हमदर्द बनने की होड़ लगी है?
ये किसान आंदोलन की अलग-अलग तस्वीरें है जो बताती है कि सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद आंदोलन कमजोर होने के बजाय अब फैलता ही जा रहा है। नेशनल हाईवे हो या फिर स्टेट हाईवे, वाहनों की लंबी-लंबी लाइनें, नारेबाजी..और धरना प्रदर्शन। केंद्रीय कृषि कानून के विरोध में छत्तीसगढ़ में किसानों ने दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक 25 नेशनल और स्टेट हाईवे को जाम किया। किसान संगठनों ने लगभग सभी जिलों में चक्काजाम कर प्रदर्शन किया। इस दौरान केवल आपात सेवा में लगे वाहनों को छूट दी गई। प्रदर्शन कर रहे किसानों ने दावा किया कि ये आंदोलन अब सिर्फ तीन राज्य नहीं बल्कि पूरे भारत का है। साथ ही ये भी साफ कर दिया कि जबतक केंद्र सरकार तीनों कानून वापस नहीं लेती..आंदोलन वापस नहीं लेंगे।
छत्तीसगढ़ में किसान आंदोलन को कांग्रेस का भी समर्थन रहा। प्रदेश के सभी ब्लॉक मुख्यालयों में प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस कार्यकर्ता सड़क पर उतरे और चक्काजाम किया, जिसे लेकर बीजेपी और कांग्रेस के नेता में आरोप-प्रत्यारोप भी हुआ। कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर किसानों का हक छिनने का आरोप लगाया, तो विपक्ष ने पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस को दिल्ली आंदोलन के लिए चावल भेजना याद है। लेकिन प्रदेश के किसानों की सुध लेने की फुर्सत नहीं।
उधर दिल्ली में भी किसान आंदोलन को लेकर हलचल तेज रही है। कृषि कानून के खिलाफ किसान संगठनों ने शांतिपूर्ण तरीके से धरना दिया, लेकिन भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश टिकैत ने कहा कि अगर सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को 2 अक्टूबर तक वापस नहीं लेती है तो वो आंदोलन के विस्तार पर काम करेंगे। कुल मिलाकर सरकार हर तरीके से किसानो को मनाने की कोशिश कर रही है, लेकिन किसान तीन कानून को हटाने से कम पर मानने को तैयार नहीं हैं।