कोरबा। देशभर को रोशन करने वाली एनटीपीसी के पावर सयंत्र से निकलने वाली राख अब प्रबन्धन के लिए मुसीबत बढ़ा रही है। इससे कोरबा में संचालित कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों से निकलने वाले राख (फ्लाई ऐश) की खपत 40 प्रतिशत घट गई है।
बता दें कि नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन (एनटीपीसी), कोरबा ने छत्तीसगढ़ सरकार से कोरियाघाट में राखड़ बांध बनाने के लिए जमीन मांगी थी, पर इलाका हाथी अभयारण्य के अंतर्गत आने का हवाला देते हुए इस प्रस्ताव को निरस्त कर दिया। इससे एनटीपीसी प्रबंधन दोहरे संकट से घिर गया है।
रविवार को प्रेस वार्ता में पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए एनटीपीसी के ईडी ( एग्जक्यूटिव डारेक्टर ) विश्वरूप बासु ने कहा कि प्लांट से उतसर्जित राख का महज 50 से 55 फीसदी ही यूटिलाइजेशन हो रहा है। आने वाले दिनों में एनएच निर्माण में गति आने पर राख की खपत भी अधिक होगी।
उन्होंने कहा कि प्रबंधन लगातार राख की खपत बढ़ने का प्रयास कर रही है। एनटीपीसी का 2600 मेगावाट क्षमता का विद्युत संयंत्र संचालित है। यहां प्रतिदिन 40 हजार टन कोयला की खपत होती है और करीब 20 हजार टन राख उत्सर्जित होती है। हर साल निकलने वाली औसतन 73 लाख टन राख की खपत किसी चुनौती से कम नहीं है। बावजूद इसके एनटीपीसी शत-प्रतिशत राख की उपयोगिता का लक्ष्य लेकर अब तक काम करता रहा।
विश्वरूप बासु ने कहा कि कोरोनाकाल के बाद से इसके निस्तारण की समस्या गहरा गई है। राज्य में ज्यादातर सड़क निर्माण समेत अन्य कार्यों की गति धीमी हो गई है, जिसका सीधा असर राख की खपत पर पड़ा है। ऐश ब्रिक्स व सीमेंट फैक्ट्रियों में उत्पादन घटने से भी इस पर असर पड़ा है।