अमन सिंह व उनकी पत्नी की FIR निरस्त, हाईकोर्ट ने कहा- उनके खिलाफ नहीं बनता आय से अधिक संपत्ति का मामला

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बिलासपुर। आय से अधिक संपत्ति के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने प्रदेश के पूर्व प्रमुख सचिव अमन सिंह व उनकी पत्नी यास्मीन सिंह को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने उनके खिलाफ ACB व EOW की ओर से दर्ज FIR को रद्द करने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील के तर्कों पर सहमति जताई है और माना है कि आय से अधिक संपत्ति का मामला नहीं बनता।

कोर्ट में आय से अधिक संपत्ति के मामले में फंसे अमन सिंह ने अपनी याचिका के साथ आवेदन पत्र प्रस्तुत किया था। इसमें उन्होंने कहा उन्हें राजनीतिक षड़यंत्र के तहत फंसाया गया है। उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला ही नहीं बनता। लेकिन एसीबी ने राजनीतिक दबाव में यह कार्रवाई की है। इस प्रकरण में कोर्ट ने एसीबी से जवाब मांगा था। ACB ने इस प्रकरण की सुनवाई के दौरान उनके आय-व्यय का ब्यौरा भी पेश नहीं किया था।

कोर्ट के आदेश पर दस्तावेज प्रस्तुत किया। ACB ने आपराधिक प्रकरण बनने व न बनने को लेकर कोई स्पष्ट जवाब भी नहीं दिया। सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए ACB और EOW की ओर से दर्ज आपराधिक प्रकरण को निराधार मानते हुए निरस्त करने का आदेश दिया है।

सामाजिक कार्यकर्ता की शिकायत पर दर्ज हुई थी FIR

सामाजिक कार्यकर्ता उचित शर्मा की शिकायत पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोप में प्रदेश के पूर्व प्रमुख सचिव सिंह के खिलाफ ACB व EOW ने कार्रवाई शुरू कर दी थी। इस दौरान उनकी पत्नी यास्मीन सिंह के बैंक अकाउंट सहित अन्य खातों को सील कर दिया गया। पति-पत्नी ने अपने खिलाफ कार्रवाई को लेकर हाई कोर्ट में अलग-अलग याचिका दायर की थी। कोर्ट ने उनकी याचिका पर एसीबी व ईओडब्ल्यू की जांच पर रोक लगा दी थी।

हाईकोर्ट ने सुरक्षित रखा था फैसला

हाईकोर्ट के जस्टिस एनके व्यास की सिंगलबेंच में इस मामले की सुनवाई चल रही थी। कोर्ट ने ACB और EOW से केस डायरी के साथ ही आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में दस्तावेज प्रस्तुत किए थे। लेकिन, इसमें यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि आय से अधिक संपत्ति का मामला बनता है या नहीं।

इधर, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिषेक सिंन्हा ने तर्क दिया था कि आय से अधिक संपत्ति का मामला ही नहीं बनता। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के रूलिंग का भी हवाला दिया था। सभी पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस एनके व्यास ने चार अक्टूबर को फैसला आदेश के लिए सुरक्षित रख लिया था।