क्या है पावर ऑफ अटॉर्नी, कब पड़ती है जरूरत, कोई जोखिम तो नहीं, जानें हर जरूरी बात

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नई दिल्ली : कानूनी दस्तावेजों को बनवाने, संपत्ति वगैरह की खरीदफरोख्त जैसे कामों के लिए आम बोलचाल में एक शब्द प्रचलित है- लिखापढ़ी। एक औसत भारतीय को इस शब्द से थोड़ा डर लगता है। धोखाधड़ी की गुंजाइश जो रहती है। पावर ऑफ अटॉर्नी भी ऐसा ही एक लिखापढ़ी वाला काम है। ‘हक की बात’ (Haq Ki Baat) सीरीज के इस अंक में बात करते हैं ‘पावर ऑफ अटॉर्नी’ की। आखिर क्या है यह, कितने तरह की होती है, कब पड़ती है जरूरत, कैसे रद्द होती है, जोखिम कितना है, इसे जारी करने से पहले किन बातों का रखना चाहिए ख्याल…जानते हैं ऐसे हर सवाल का जवाब।

सबसे पहले तो समझते हैं कि ये सब जानने की आखिर जरूरत ही क्यों है। मान लीजिए कोई शख्स बीमार हो, बिस्तर पकड़ चुका हो या नौकरी के सिलसिले में कुछ सालों से विदेश में हो। अगर उसे कोई संपत्ति खरीदनी या बेचनी हो, कोई इम्पॉर्टेंट ट्रांजैक्शन करनी हो, आईटीआर भरना हो, बैंक से जुड़ा कोई काम करना हो तो वह क्या करेगा? ऐसी ही स्थिति के लिए है पावर ऑफ अटॉर्नी। इसे ऐसे समझिए। मान लीजिए कोई शख्स नौकरी के सिलसिले में कुछ सालों से विदेश में हो। इस बीच उसे यहां कोई संपत्ति खरीदने या बेचने की जरूरत पड़ गई। अब वह बार-बार घर तो आ नहीं सकता, इसमें खर्च जो है। छुट्टी वगैरह की बंदिशें भी हैं। ऐसे में वह क्या करे? यहां वह पावर ऑफ अटॉर्नी का इस्तेमाल कर सकता है। इसे मुख्तारनामा भी कहते हैं। वह अपनी तरफ से किसी रिश्तेदार को अधिकृत कर सकता है। वह उसकी जगह तरफ से सारी प्रक्रियाओं को औपचारिकताओं को पूरा कर देगा।

पावर ऑफ अटॉर्नी क्या है?
पावर ऑफ अटॉर्नी एक कानूनी दस्तावेज है जिसके जरिए कोई शख्स किसी अन्य व्यक्ति को अपनी तरफ से जरूरी ट्रांजैक्शन करने के लिए अधिकृत करता है। इसका इस्तेमाल आम तौर पर तब होता है जब कोई शख्स विदेश में हो या बहुत ज्यादा बीमार हो या फिर बढ़ती उम्र से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहा हो और इस वजह से वह संपत्ति खरीदने-बेचने, टैक्स रिटर्न फाइल करने, बैंक से जुड़े कामों वगैरह को करने में असमर्थ हो। जो व्यक्ति पावर ऑफ अटॉर्नी जारी करता है उसे प्रिंसिपल, गारंटर या डोनर कहा जाता है। और वह जिस व्यक्ति के नाम इसे जारी करता है यानी जिसे अपनी तरफ से अधिकृत करता है उसे एजेंट या पावर ऑफ अटॉर्नी एजेंट कहा जाता है।
कितने तरह की होती हैं?
पावर ऑफ अटॉर्नी ऐक्ट, 1882 के मुताबिक पावर ऑफ अटॉर्नी मुख्यत 2 तरह की होती हैं- जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी और स्पेशल पावर ऑफ अटॉर्नी।
अब बात स्पेशल पावर ऑफ अटॉर्नी की। इसमें गारंटर अपने एजेंट को कुछ खास अधिकार ही देता है। जैसे उसे अपनी तरफ से अदालती कामकाज के लिए अधिकृत कर सकता है या संपत्ति को बेचने के लिए अधिकृत कर सकता है। एक बार वह काम हो गया तो पावर ऑफ अटॉर्नी अपने आप एक्सपायर हो जाएगी यानी वैध नहीं रहेगी।

किसे कर सकते हैं जारी
गारंटर पावर ऑफ अटॉर्नी को ऐसे किसी भी शख्स के नाम जारी कर सकता है जो 18 वर्ष से ऊपर हो और जिस पर उसे भरोसा हो। वह एक साथ कई PoA भी जारी कर सकता है और यह भी तय कर सकता है कि कोई फैसला लेते समय सभी एजेंट मिलकर काम करें या नहीं। आमतौर पर एक से ज्यादा पावर ऑफ अटॉर्नी का इस्तेमाल बैकअप के तौर पर किया जाता है। जैसे अगर एजेंट बीमार हो जाए या जख्मी हो जाए तो बैकअप व्यक्ति संबंधित कामकाज कर सके। इस तरह आप अपने परिवार के किसी सदस्य, दोस्त या यहां तक कि संबंधित क्षेत्र के किसी एक्सपर्ट या पेशेवर शख्स के नाम भी जारी कर सकते हैं।

जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी में अधिकृत किए गए व्यक्ति यानी एजेंट के पास बहुत ज्यादा अधिकार मिलते हैं। वह गारंटर की तरफ से बैंक से पैसा निकाल सकता है, टैक्स भर सकता है, इन्वेस्टमेंट कर सकता है, संपत्ति खरीद या बेच सकता है, अदालत में चल रहे मामलों आदि में उसका प्रतिनिधित्व कर सकता है। चूंकि इसमें एजेंट को बहुत सारे अधिकार मिलते हैं इसलिए इसके दुरुपयोग का खतरा भी ज्यादा होता है। इसलिए जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी में एजेंट का चुनाव करते वक्त सावधानी बरतें। उसे ही चुने जो आपका बेहद भरोसेमंद हो।

सावधानी जरूरी
एजेंट चुनते वक्त सावधानी जरूरी है। किसी ऐसे शख्स को ही चुनिए जो भरोसेमंद हो। याद रखिए, पावर ऑफ अटॉर्नी पर साइन करना एक तरह से ब्लैंक-चेक पर दस्तखत करने जैसा है। इसलिए समझदारी से एजेंट का चुनाव जरूरी है।