बिलासपुर। अनिवार्य होगा, हार्वेस्टर में सुपर स्ट्रॉ मशीन का लगाया जाना। फसल कटाई के पहले जारी, यह नई गाईडलाइन हार्वेस्टर मालिकों के लिए परेशानी भरी जरूर होगी लेकिन पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को काफी हद तक रोका जा सकेगा।
शीघ्र पकने वाली धान की प्रजातियां परिपक्वता अवधि में पहुंचने लगीं हैं। बारिश थमने के बाद खेतों से पानी का निकाला जाना शुरू होगा, याने अक्टूबर माह के दूसरे पखवाड़े से खेतों में कटाई के लिए हार्वेस्टर मशीनें चलने लगेगीं और पराली याने फसल अवशेष छोड़ती चली जाएंगी। इसके साथ रबी फसल की बोनी के लिए किसान, यह फसल अवशेष जलाने लगेंगे। प्रदूषण के इस दौर पर नियंत्रण के लिए हार्वेस्टर में स्ट्रा मशीन का लगाया जाना अनिवार्य कर दिया गया है।
ऐसे काम करेगी सुपर स्ट्रॉ मशीन
कंबाइन हार्वेस्टर में लगी हुई सुपर स्ट्रॉ मशीन फसल अवशेष को छोटे टुकड़ों में काटती है और बिखेरने का काम भी करती है। बारीक अवशेष आसानी से मिट्टी में मिल जाते हैं। इसलिए जलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। बाद की प्रक्रिया में गेहूं की बोनी हैप्पी सीडर या जीरो टिलेज के माध्यम से की जा सकती है।
इन-सीटू प्रबंधन, नया विकल्प
पराली प्रबंधन के लिए किसानों से इन-सीटू विधि को अपनाने के लिए कहा जा रहा है। इस विधि के तहत फसल अवशेष को सुपर एसएमएस या स्ट्रॉ चॉपर की मदद से बारीक कणों में काटा जाता है। इन कणों को फैलाना होगा, जो डीकंपोजर की मदद से गलाया जाएगा। रोटावेटर या मल्चर मशीन से इन्हें फैलाना होगा। इस प्रक्रिया में यह विशेष प्राकृतिक खाद के स्वरूप में आ जाते हैं।
एक्स-सीटू प्रबंधन, दूसरा विकल्प
एक्स-सीटू विधि के तहत फसल अवशेष को खेत के बाहर ना लें जाकर, एक ढेर का स्वरूप देना होगा। इसमें जैविक कल्चर का मिश्रण करना होगा। मानक मात्रा में नमी देते हुए तय समय पर मशीन की मदद से घूमाना होगा। 3 से 9 सप्ताह तक यह प्रक्रिया अपनाने के बाद यह अवशेष, प्राकृतिक जैविक खाद के रूप में किसानों के हाथ में होगी। इस विधि से बनाई गई जैविक खाद को उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में मददगार माना गया है।
इसलिए गाईड लाईन
धान की कटाई के बाद नई फसल की बोनी के लिए 15 अक्टूबर तक का समय सही माना गया है। हाथ आई फसल का प्रबंधन भी करना है। इसलिए किसान, खेत में छोड़ा गया अवशेष खेत में ही जला देते हैं। यह बेहतर विकल्प, इसलिए नहीं है क्योंकि जलाए गए अवशेष आसपास के वृक्षों को नुकसान तो पहुंचाते ही हैं, साथ ही वायु प्रदूषण को भी जन्म देते हैं, जो लंबे समय तक वायुमंडल में बने रहते हैं।
मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा कम
पराली जलाने से जहां एक तरफ प्रदूषण की समस्या तो वहीं दूसरी तरफ इससे जमीन भी बंजर होने लगती है। जिसका सीधा असर किसान भाइयों के आमदनी पर पड़ता है। हर साल पराली जलाने के कारण मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा में कमी आ रही है तथा वह बंजर होती जा रही है।
इं. पंकज मिंज, विषय वस्तु विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केंद्र, बिलासपुर