गांव बसा नहीं और….कटघोरा जिला और दर्री अनुविभाग, “साकेत” में धंधापानी का विलाप…

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गांव बसा नहीं और….

पुरानी कहावत है…गांव बसा नहीं और …। ये कहावत इस वक्त पुलिस महकमे में पूरी तरह से फिट बैठ रही है। दरअसल जब से कटघोरा को अलग जिला बनाने की बात जोर पकड़ी है तब से कोरबा में पदस्थ कई अधिकारी कटघोरा जाने का सपना संजों रहे हैं। दिन में देख रहे सपने सच साबित हो न हो पर ऐसा हुआ तो उन अफसरों की बल्ले बल्ले हो जाएगी जो सालों से कोरबा में कुंडली जमाए बैठे हैं। इन अफसरों को पता है 3 साल से एक ही जगह पोस्टिंग के फेर में वो कहीं चुनाव आयोग के फेर में आ गए तो जिले से बाहर जाना तय है। अगर अभी से कटघोरा में पोस्टिंग कर जुगाड़ बन गया तो दूसरे जिले में जाने का लफड़ा ही खत्म।

कटघोरा जिला और दर्री अनुविभाग

कटघोरा के जिला बनने के बाद सबसे अधिक नुकसान दर्री पुलिस अनुविभाग को होगा। पूरे प्रदेश में उरला और रायगढ़ के बाद दर्री अनुविभाग ही मलाईदार है। पुलिस के पंडित बताते है कि यहाँ के लिए बड़ी बोली लगती है। जिला के सभी बड़े थाना यहीं आते हैं। दर्री अनुविभाग में दर्री, कुसमुंडा, दीपका, बांकीमोंगरा थाना, हरदीबाजार और सर्वमंगला चौकी जाने के लिए जुगाड़पति होना भी जरूरी है, जुगाड़ हुआ तो समझों करोड़पति बनने में देर नहीं है। अगर चुनाव से पहले कटघोरा जिला बनता है तो दर्री के पास दर्री और कुसमुंडा थाना ही बचेगा।

“साकेत” में धंधापानी का विलाप

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की अमर कृति ” साकेत ” में विरह का विवेचन अद्भुत रूप में हुई है। सत्ता से विरह का दुःख भाजपाइयों को भी सता रहा है मगर वे भी साकेत में, जिले में घूम-घूमकर आंसू भी नहीं बहा पा रहे हैं। पहले रुदन होना था जनता के हित में , विलाप होना था निगम प्रशासन में हो रहे घोटालों को लेकर लेकिन, मुंह के साथ इन्होंने तो आंखों को भी बंद कर रखा है। नेता चाहे पक्ष का हो विप़क्ष का धंधापानी तो सभी के लिए जरूरी है। बिना धंधापानी तो नेतागिरी भी नहीं चलती इतना सभी समझते हैं तभी तो…कोई खांटी नेतागिरी नहीं कर रहा है। सत्ता पक्ष के मुद्दों को सड़क तक लाने पर खुद पर जांच की आंच न पहुंचे इस बात को लेकर यहां सब कुछ ठीक की तर्ज पर नेतागिरी चल रही है। कंबल ओढ़कर घी पीना भला कौन छोड़ना चाहेगा।

अधिकारी मीटिंग से पस्त और मैदानी अमला मस्त…

सूबे के मुखिया ने सप्ताह में दो दिन छूट्टी क्या दे दिया मैदानी क्षेत्र में पदस्थ अफसर वीकेंड में मिलने वाली छुट्टी में मस्त हो गए हैं। जिले में मुख्यालय अधिकारी आवश्यक बैठक से पस्त हो चुके हैं। सप्ताह भर शेड्यूल पहले से तय है।सोमवार को प्रदेश स्तर की वीसी ( वीडियो कांफ्रेंसिंग) रहती है और मंगलवार को कलेक्टोरेट में टीएल की बैठक, बुधवार को निर्माण कार्य की मीटिंग अब बचे दो दिन ग्रुरु और शुक्र तो इन दो दिनों में अफसर अगली बैठक की तैयारी में लग जाते हैं। यानि जिला स्तर के अधिकारी अब मीटिंग और फिटिंग के लिए रह गए हैं। मैदानी अमले की खुशी जिलों के अफसरों से देखी नहीं जा रही है। कोई जले तो जले आखिर ऐसा मौका बार बार थोड़े न आता है।

राजभवन और राजनीति

प्रदेश की राजधानी रायपुर इन दिनों राजभवन और राजनीति को लेकर चर्चा में है। इं​दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति के मामले में राज्यपाल और मुख्यमंत्री में एक राय नहीं बन पाई। स्थानीय बनाम बाहरी को लेकर खिंचीं त​लवार बयानों तक पहुंच गई। आखिरकार राजभवन ने मामले विराम लगाते हुए डाॅ. गिरीश चंदेल को कुलपति बना दिया। अंदर की बात माने तो सीएम हाउस की लिस्ट डाॅ. गिरीश चंदेल का नाम पहले नंबर पर तो नहीं था पर स्थानीय होने का फायदा उन्हें मिला। राजभवन के फैसले से सब की बोलती बंद हो गई। अब तो कांग्रेस के मंत्री को भी कहना पड़ा भइया छत्तीगढ़िया सबले बढ़िया……।

                  अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा