गुलाम भारत में एक तिरंगा,टोल टैक्स के बाद अब रोड ,जंगल की जमीन गुरुजी…ये हंगामा क्यों बरपा है भाई,मिलावटी शराब और…

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गुलाम भारत में एक तिरंगा….स्वतंत्र भारत में तेरा तिरंगा-मेरा तिरंगा!

गुलामी से आजादी पाने के लिए जिस तिरंगा. के लिए लाखों बलिदानी फांसी पर झूल गए उनमें तिरंगे को लेकर कोई विवाद नहीं था तिरंगा सभी का था, वो भारत का  था। मगर आजादी के बाद जब देश स्वतंत्र हुआ तो लोग उन लाखों बलिदानी को भूल गए। आजादी मिलते ही गुलामी का दौर पीछे छूट गया। प़क्ष और विपक्ष में तिरंगे को लेकर लड़ाई चल पड़ी। इसे भारत की लोकतंत्र की सुंदरता कहे या मजाक लोग समझ नहीं पा रहे हैं। साफ.साफ कहे तो अब अंग्रेजों से नहीं अपने अपने हिस्से की लडाई है…तभी तो आजादी के अमृत उत्सव में देश में तेरा तिरंगा.मेरा तिरंगा हो शोर सुनाई पड़ है। सही मायने में कहे तो देश की जनता ही असल गांधीवादी है जो प्रेम, करुणा और क्षमा भाव से इन नेताओं को निहार तो रही है मगर चुप है।

टोल टैक्स के बाद अब रोड टैक्स…
हाइवे में सफर करने वाले यात्रियों से टोल टैक्स वसूली तो आपने सुना ही होगा  पर इन दिनों काले हीरे की नगरी में रोड टैक्स की डिमांड ट्रांसपोटर्स से की जा रही हैं। दरअसल मामला नदी उस पार के एक पुलिस अधिकारी का हैं जो इन दिनों अपने एरिया से गुजरने वाले वाहनों से रोड टैक्स की मांग कर बैठे हैं। रोड टैक्स की बात जब चर्चा आम हुई तो पुलिस के इस अधिकारी की किरकिरी शुरू तो हुई ही इसके अलावा जब बात विभाग को समझने वाले समझदारों तक पहुचीं तो  कवि अशोक चक्रधर की कविता गुनगुनाने लगे और “वैसे तो हक बनता है जनाब बंधा बंधाया हिसाब ऐसे के … वैसे के पैसे .. हथकड़ी नई लगवानी…  कहने लगे हैं। खैर इस ऑनेस्ट अफसर की कहानी ही निराली है  तभी तो थानेदारों से पटती ही नहीं। वैसे तो अवैध कारोबारों पर  गिद्ध की नजर रहती है, पर अपने फायदे के लिएं

 जंगल की जमीन गुरुजी की नजर  और पटवारी का पंचनामा…

जंगल की जमीन पर वैसे तो बड़े जमीन दलालों की नजर रहती है, पर विभाग के उदासीन रवैये को देखते हुए हर कोई बहती गंगा में हाथ धोना चाह रहा है। बात एक गुरुजी की हैं जो सरकारी नौकरी में रहते चुइय्या के समीप मोहनपुर मसाहती गांव का फायदा उठाते हुए 2.66 एकड़ खेती की जमीन  खरीद ली। गांव के अंदर की जमीन का नंबर वन विभाग के मुख्य मार्ग की जमीन में सेट कराकर टुकड़ों में बेच दिया। मतलब कौड़ी के भाव की जमीन को खरीद कर सोना के भाव बेच दिया।

वन विभाग के जमीन की हेराफेरी करने में बाकायदा तत्कालीन पटवारी ने मदद का हाथ बढ़ाया। मतलब जंगल की जमींन पर गुरुजी ने नजर गड़ाया और पटवारी ने पंचनामा बनाया। विभागीय जानकारों की मानें तो जब मामला मीडिया के माध्यम से उजागर हुआ तो वन अमला अपने दामन में लगे दाग को साफ करने जांच कराई। उस जांच में जो जमीन को खरीदी कर बेची गई थी वो वन भूमि निकली। जांच में स्पष्ट वन भूमि होने की प्रमाण के बाद भी न तो जमीन बेचने वाले गुरुजी पर कार्यवाही हुई और न ही उस पटवारी पर जिसने सरकारी जमीन को निजी बताकर चौहद्दी बनाया था। पब्लिक में चर्चा है कि सरकारी जमीन को बेचने वाले गुरुजी पर वन विभाग के अधिकारियों का वरद हस्त हैं।

ये हंगामा क्यों बरपा है भाई

मशहूर शायर की वो शायरी आज एक नेत्री के सवाल के बाद फिर चर्चा में हैं और ऊर्जाधानी की जनता कहने लगी है ये हंगामा क्यों बरपा हैं भाई! कहे भी क्यों न क्योंकि पार्टी के नेताओं को सिर्फ ठेकेदारी चाहिए तो पब्लिक का मुद्दा उठे तो भरोसा कम होता हैं। बात है ऊर्जाधानी के प्रकरण की राज्यसभा में गूंजने की। देश की शान कहे जाने वाले औद्योगिक घराने की गूंज की धमक जब संसद के गलियारों में कम्पायमान हुई तो राजनीतिक पंडितों को हैरानी हुई। होना ही था आखिर 15 साल तक राज्य की सत्ता की बागडोर संभाल रहे राज नेताओं को इससे पहले कोरबावासियों का दर्द क्यों नहीं दिखा? बड़े-बड़े प्रकरण हैं लेकिन उधर नजर नही पड़ती। खैर मुद्दा उठा तो कुछ बात तो जरूर होगी।

वैसे जानकारों की मानें तो बालको में अरबों का प्रोजेक्ट आने वाला है। अब बड़ा काम होगा तो स्वाभाविक हैं नेताओं को सपने पूरा करने का अवसर चाहिए तो अभी से “हल्ला बोल“ होगा, तभी तो मान मनौवल का दौर चलेगा और फिर कंडीशनल कॉन्ट्रेक्ट। वैसे तो कंपनी के नुमाइंदे जिधर दम उधर हम वाले हैं। तो सत्ता के साथ गठजोड़ तो होगा ही। अब मामला देश की राजधानी में उबाल मरेगा तो कुछ न कुछ तो वहां भी करना ही पड़ेगा । मतलब थोड़ा वो सरकेंगे और थोड़ा कंपनी तो दोनों का काम हो जाएं।

मिलावटी शराब और आबकारी विभाग

“मिलावट है तेरे इश्क में इत्र और शराब की, कभी हम महक जाते हैं कभी हम बहक जाते हैं..❗“ ये शायरी इन दिनों ऊर्जाधानी के शराब दुकानों पर फिट बैठता दिख रहा हैं। यूं तो शराब में मिलावट कोई नई बात नहीं है पर दुकान सरकारी और उस पर खाद्य एवं सुरक्षा विभाग की छपेमारी में जरूर कोई बात हैं। शासन की गाइडलाइन का पालन कराने और ऊपरी कमाई न होनें का रोना रोने वाले हुक्मरानों के मुंह में ये एक तरह का तमाचा हैं।

खबरीलाल की माने तो सरकारी शराब की दुकान में ब्रांड के नाम पर मिलावटी शराब की बिक्री धड़ल्ले से की जा रही है। शराब में मिलावट बाकायदा उच्च अधिकारियों की शह पर की जा रही हैं। आये दिनों वाइन शॉप में ब्रांडेड शराब में पानी मिलाकर बिक्री करने की शिकायत मिलती है, पर जांच तो छोड़िए साहेब अधिकारी सरकार चलाने वाले यानी सबसे बड़ा राजस्व देने वाले शराब प्रेमियों के दुख दर्द पर मरहम तो दूर उल्टे अद्धी पौव्वा खत्म होने का जख्म देते रहते हैं।

मजे वाली बात यह है कि शराब की मिलावट में बेचने वालों का कम और अधिकारियों का हिस्सा ज्यादा है। तभी तो खाद्य एवं सुरक्षा की टीम को एक नहीं कई बार छापा मारना पड़ रहा हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि अधिकारी शासन को रॉयल्टी कम दे रहे हैं और अपना ज्यादा ले रहें हैं। तभी तो जमनीपाली की शराब दुकान से नमूना लिया है।

       ✍️  अनिल द्विवेदी,ईश्वर चंद्रा