The Duniyadari : कोरबा, 25 अक्टूबर। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) की गेवरा कोयला खदान विस्तार परियोजना से प्रभावित परिवारों पर हुए लाठीचार्ज और उत्पीड़न की घटना ने प्रशासनिक संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने इस घटना को लोकतांत्रिक मर्यादाओं और मानवाधिकारों पर आघात बताते हुए कड़ी निंदा की है। उन्होंने इस संबंध में कोरबा के पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर गहरी आपत्ति दर्ज की है।
जयसिंह अग्रवाल ने कहा कि वर्षों से विस्थापित ग्रामीण अपने वैधानिक अधिकारों — न्यायसंगत मुआवजा, रोजगार में पारदर्शिता, पुनर्वास की व्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा — की माँग शांतिपूर्ण तरीके से कर रहे हैं। इसके बावजूद, बातचीत और समाधान की बजाय दमनात्मक कार्रवाई करना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।
उन्होंने आरोप लगाया कि खदान प्रबंधन की शह पर सीआईएसएफ के जवानों से बल प्रयोग कराया गया और ठेका कंपनियों द्वारा गुंडों व बाउंसर्स का इस्तेमाल कर ग्रामीणों को डराने-धमकाने की कोशिश की जा रही है। यह स्थिति कानून-व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा है और यह भी सवाल खड़ा करती है कि प्रशासन अब औद्योगिक हितों का पक्षधर क्यों बन गया है।
पूर्व मंत्री ने कहा कि यह मामला केवल कुछ परिवारों का नहीं, बल्कि लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों की रक्षा से जुड़ा है। जिन लोगों की जमीनों पर कोयले का दोहन कर सरकार और कंपनियाँ लाभ कमा रही हैं, आज वही लोग अपने ही घरों से बेदखल किए जा रहे हैं — यह शासन की असंवेदनशीलता का उदाहरण है।
जयसिंह अग्रवाल ने मांग की है कि —
- भू-विस्थापितों पर हुए बल प्रयोग की उच्चस्तरीय और निष्पक्ष जांच हो।
- ठेका कंपनियों द्वारा नियुक्त गुंडों व बाउंसर्स पर तत्काल कानूनी कार्रवाई की जाए।
- एसईसीएल प्रबंधन को सख्त निर्देश दिए जाएँ कि किसी भी स्थिति में बाहरी व्यक्तियों के माध्यम से भय या हिंसा न फैलायी जाए।
- प्रशासन, खदान प्रबंधन और विस्थापित प्रतिनिधियों के बीच त्रिपक्षीय बैठक आयोजित कर स्थायी समाधान निकाला जाए।
- भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए पुलिस बल को संयमित व्यवहार के स्पष्ट निर्देश दिए जाएँ।
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं की गई, तो जनाक्रोश बढ़ेगा और इसकी पूरी जिम्मेदारी जिला प्रशासन एवं पुलिस तंत्र की होगी। यह संघर्ष केवल मुआवजे का नहीं, बल्कि सम्मान और अस्तित्व की रक्षा का आंदोलन है, जो तब तक जारी रहेगा जब तक विस्थापितों को न्याय नहीं मिल जाता।




























