The Duniyadari : छठ महापर्व : मातृत्व, सूर्य उपासना और तप की अद्भुत साधना
बिहार और पूर्वांचल की सांस्कृतिक आत्मा में छठ पूजा का स्थान सर्वोच्च माना गया है। यह पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन, प्रकृति और परिवार के प्रति गहरी श्रद्धा का प्रतीक है। छठी मैया को यहां मां लक्ष्मी से भी ऊँचा दर्जा दिया गया है, क्योंकि वे केवल धन की नहीं, बल्कि संतान और सुख-समृद्धि की रक्षक मानी जाती हैं।
छठ पूजा को सूर्य देव की उपासना का पवित्र पर्व कहा जाता है, लेकिन इसकी असल साधना उनकी बहन छठी मैया के प्रति समर्पण में निहित है। माना जाता है कि वे संतानों की रक्षा करती हैं, परिवार में दीर्घायु और आरोग्यता का आशीर्वाद देती हैं। इसलिए जब जीवन के हर उतार-चढ़ाव में मातृत्व और संरक्षण की भावना सर्वोपरि होती है, तब छठी मैया की वंदना सबसे पवित्र मानी जाती है।

पौराणिक ग्रंथों में उनका उल्लेख प्रकृति के छठे अंश और ब्रह्मा की मानस पुत्री के रूप में मिलता है। वे सृष्टि की संरक्षिका हैं — यही कारण है कि छठ पूजा केवल सूर्य उपासना नहीं, बल्कि प्रकृति, जल, माटी और मातृत्व की आराधना भी है।
चार दिनों तक चलने वाला यह व्रत अपनी कठोर अनुशासन और पवित्रता के लिए प्रसिद्ध है। व्रती निर्जला उपवास रखती हैं, सात्विकता का पालन करती हैं और अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने का संकल्प दोहराती हैं। यही संयम और श्रद्धा छठ को वह आध्यात्मिक ऊंचाई देती है, जो किसी भी साधना को अद्वितीय बना देती है।




























