छत्तीसगढ़ की ईको फ्रेंडली राखियों की देश.विदेश में डिमांड, कपड़े, धान-चावल और रेशों से बन रही राखियां,

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रायपुर/बालौद। छत्तीसगढ़ में महिला उद्धमियों को बढ़ावा देने तैयार की जा रही ईको फ्रेंडली राखियां की देश विदेश में खासा डिमांड बनी हुई हैं। यहां की राखियों को देशभर में भी लोग पसंद कर रहे हैं। चाहे बालोद में प्राकृतिक रंगों और हैंडलूम कपड़ों से बनाई जा रही राखियां हों या फिर रायपुर में बीज वाली राखियां। फिर चाहे जांजगीर-चांपा में कमल के फूल के डंठल के रेशे, भाजियों, केले और धान-चावल का इस्तेमाल करके बनाई जा रही राखियां हों।

बालौद के हथौद में तैयार हो रही राखियां

बालोद के एक छोटे से गांव में बनी राखियों की डिमांड उत्तर से लेकर दक्षिण तक है। जिले के ग्राम हथौद में सब्जियों और अन्य चीजों से प्राकृतिक रंग तैयार कर ये ईको फ्रेंडली राखियां तैयार की जा रही हैं। महिलाओं ने स्थानीय बुनकरों से कपड़े मंगाकर उसमें गोदना और कसीदाकारी कर राखियां तैयार की हैं, जिसकी डिमांड न सिर्फ स्थानीय मार्केट में बल्कि दिल्ली, असम और साउथ इंडिया के राज्यों तक है।

बालोद जिले के ग्राम हथौद में काफी संख्या में बुनकर रहते हैं। हथकरघा उद्योग यहां के सैकड़ों लोगों की आजीविका का साधन है। इसे देखते हुए जिला प्रशासन ने यहां की महिलाओं को गोदना और कसीदाकारी की ट्रेनिंग दिलवाई और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त करने का प्रयास किया।

इन राखियों की ऑनलाइन बिक्री के लिए इन्हें पोर्टल पर भी अपलोड किया गया, जिसके बाद असम, दिल्ली और साउथ के कई राज्यों से डिमांड आई।

कलेक्टर ने की तारीफ

कलेक्टर गौरव कुमार सिंह ने इन महिलाओं के काम की सराहना करते हुए इसे गर्व का विषय बताया है। कलेक्टर ने कहा कि ऐसी परियोजनाओं के माध्यम से शासन-प्रशासन महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है। जो महिलाएं सिर्फ चूल्हे-चौके तक सिमटी हुई हैं, उनके अंदर की प्रतिभा को निखारकर उन्हें आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाया जाता है।

राखियों की कीमत 90 रुपए

इन राखियों की कीमत करीब 90 रुपए है, क्योंकि इसमें शुद्ध कपड़ों और नेचुरल कलर का इस्तेमाल कर बनाया गया है। ये राखियां गौठानों के माध्यम से तैयार की जा रही हैं।

लाभ में महिलाएं

डिजाइनर सुरभि गुप्ता ने बताया कि यहां पर कुल 60 महिलाएं प्रशिक्षण ले रही हैं और 20 महिलाओं की इस काम में हिस्सेदारी है। इस तरह कुल 80 महिलाएं इस काम में शामिल हैं।

उन्होंने बताया कि पहले यहां पर कुछ स्थानीय बुनकरों से कपड़े मंगाए गए और एक सैंपल बनाया गया। फिर उन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से प्रसारित किया गया। जिसके बाद इनकी काफी डिमांड आने लगी। अभी तक सभी राखियां बिक चुकी हैं और महिलाएं प्रॉफिट कमा रही हैं।

अनार के छिलकों, गेंदे के फूल समेत इन चीजों का इस्तेमाल

महिलाएं और युवतियां जो राखियां तैयार कर रही हैं, उसमें वे वेजिटेबल कलर का इस्तेमाल कर रही हैं। ये राखियां पूरी तरह से ईको फ्रेंडली हैं। इसमें किसी भी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया गया है। राखियों को बनाने के लिए अनार के छिलके, गेंदे के फूल, लोहे और गुड़ के मिश्रण, गोंद, चायपत्ती, हिना, कत्था का प्रयोग किया जा रहा है, जो सप्तरंगी छटा बिखेरते हैं। इन्हें इस तरह से लगाया जाता है कि ये पक्के रंग में तब्दील हो जाए।

गेंदे के फूल से पीला रंग बनाया जाता है। गुड़ और लोहे को मिलाकर काला रंग बनता है, मेहंदी से हरा रंग मिलता है। इस तरह से प्राकृतिक रंग बनाया जाता है, जिसका इस्तेमाल राखियों को बनाने में किया जाता है। राखियां काफी रंग-बिरंगी हैं और प्रिंटिंग भी खूबसूरत है, जो लोगों को तुरंत लुभा लेती हैं।