Onion Price: जब प्‍याज की ऊंची कीमतों के चलते ग‍िर गई केंद्र सरकार

0
39

नई दिल्ली– प्याज को अक्सर मजाक में ‘सियासी सब्जी’ कहा जाता है। देश में प्याज पर जितनी राजनीति हुई है, दूसरी सब्जियां उसके आस-पास भी नहीं पहुंच पाई हैं। दूसरी सब्जियों से अलग प्याज अपने दम पर सरकारें बनाता और गिराता रहा है।

सुनने में आपको यह कितना काल्पनिक लग रहा होगा कि प्याज ने ऐसा क्या किया कि सरकार गिर गई। बता दें कि जब प्याज के ऊंचे दाम की वजह से केंद्र में सरकार गिरी थी, तो विपक्ष ने नारा लगाया था कि जिस सरकार का दाम पर नियंत्रण नहीं है, उसे देश चलाने का अधिकार नहीं है।

यह पहली बार नहीं है जब प्याज की कीमतें केंद्र या राज्य सरकार के लिए चुनौती बनी हैं। 1980 में केंद्र में जनता पार्टी की सरकार थी। उस समय इंदिरा गांधी की कांग्रेस विपक्ष में थी। उन दिनों प्याज की कीमतें तेजी से बढ़ी थीं। उस समय सीएम स्टीफन केरल से कांग्रेस के सांसद हुआ करते थे।

महंगे प्याज की ओर सदन का ध्यान खींचने के लिए वे प्याज की माला पहनकर संसद पहुंच गए थे। इसके बाद प्याज की बढ़ी कीमतों पर खूब चर्चा हुई और इंदिरा गांधी सहानुभूति बटोरने में सफल रहीं। इससे जनता पार्टी की सरकार बैकफुट पर आ गई थी।

1980 के आम चुनाव में विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया और इंदिरा गांधी प्याज की माला पहनकर चुनाव प्रचार करने गईं।

चुनावी नारा भी बना कि जिस सरकार का कीमतों पर नियंत्रण नहीं है, उसे देश चलाने का अधिकार नहीं है। जब चुनाव के नतीजे आए तो जनता पार्टी हार गई और कांग्रेस ने सरकार बना ली। नतीजों के बाद कहा गया कि प्याज की कीमतों की वजह से जनता पार्टी चुनाव हारी।

1980 के चुनाव में कांग्रेस-आई को भारी बहुमत मिला था। प्रचार के दौरान इंदिरा गांधी ने अखबारों में विज्ञापन दिया था कि प्याज की कीमतों में बढ़ोतरी के पीछे उनके राजनीतिक विरोधी हैं।

इंदिरा के जीतते ही प्याज की कीमतें अपने आप गिर गईं, जो चुनाव से पहले 6 रुपये प्रति किलो तक महंगी हो गई थीं। अगले दिन अखबारों में यह सबसे बड़ी हेडलाइन थी। दरअसल प्याज व्यापारियों ने इंदिरा की सरकार बनने के बाद होने वाली सख्ती को भांपते हुए खुद ही प्याज के दाम कम कर दिए थे।

बता दें कि 1980 के आम चुनाव में कांग्रेस (आई) को 353 सीटें मिली थीं और जनता पार्टी को सिर्फ़ 31 सीटें मिली थीं, जबकि चरण सिंह की जनता पार्टी (सेक्युलर) को 41 सीटें मिली थीं। इसके बाद के सालों में जनता पार्टी गठबंधन में मतभेद जारी रहे।