जहां मैं जाता हूं वही चले आते हो…समाधान शिविर की जरूरत कलेक्टोरेट में..यूथ कांग्रेस के जिला अध्यक्ष की तलाश किसके गुट सजेगा सरताज….

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नवा रायपुर में पुरानी बात….’ऊपरवाले’ पर भरोसा

नवा रायपुर के किसान अपनी मांगों को लेकर डटे हुए हैं। पहले कृषि मंत्री समझाने आए जब बात नहीं बनी तो मंत्री मोहम्मद अकबर को सामने कर दिया कहने का मतलब है तुम्हारा विभाग है तुम जानों… दरअसल मामला किसानों का है….और किसानों के झमेले में पड़ना यानि सीधे सीधे हाईकमान की नजर में चढ़ना। अब बेचारे आवास मंत्री मोहम्मद अकबर को ही इस समस्या का हल निकलना पड़ेगा नहीं तो किसान सीधे राहुल गांधी से मिलने की धमकी दे रहे हैं। यानि मामला जोखिम बढ़ाने वाला है।

वैसे भी मंत्री मोहम्मद अकबर के लिए इस बार सत्ता आसान नहीं रही, पहले उनके पास खाद्य विभाग था जिसे लेकर कका ने अमरजीत भगत को दे दिया, फिर कवर्धा झंडा मामला से जैसे तैसे उबरे अब नवा रायपुर के किसान उनके पीछे पड़ गए हैं। सामने विधानसभा का सत्र भी है, अब इस परेशानी से तो ‘ऊपरवाला’ यानि…. की बचा सकता है।

जहां मैं जाता हूं वही चले आते हो….

56 के दशक में फ़िल्म चोरी चोरी का एक गाना हिट हुआ था। फीमेल वर्जन का ये गाना जहां मैं जाती हूँ वहीं चले आते हों ये तो बताओ तुम… यह गाना इन दिनों मेल वर्जन के साथ जिले एक थानेदार पर फिट बैठता दिख रहा है। और वो मजाकिया लहजे में गाना भी गुनगुना रहें है ..जहां जहां मैं जाता हूँ वहीं चले आते हो ये बताओ तुम… खैर जिस थाने की बात हम कर रहे हैं वो कोयलांचल का एक थाना है और नव पदस्थ थानेदार ने जिले में थानेदारी की शुरुआत वहीं से की थी। हां एक बात और इस थाने की खासियत है कि इस थाने में बिना थानेदारी किए कोई बड़ा थाना नहीं मिलता। रामपुर, दर्री, बांकी का पीछा नहीं छोड़ने वाले थानेदार भी अब वही गीत गाने लगे हैं। पीछे पीछे पाली से अब दर्री पता नहीं अब कितने घाट घाट का पानी पीना पड़ेगा। अब लोग कहने लगे हैं अच्छे थाने में पोस्टिंग पाना है तो एक बार दर्री बांकी जरूर जाए अब राकेश, विजय, राजेश, रामेन्द्र को ही ले लीजिए बांकी से अपने हुनर का जलवा बिखेरकर कोतवाली जैसे बड़े थाने की थानेदारी कर रहे हैं। यही नहीं इस थाने में 2016 के आसपास एक आईपीएस जो इन दिनों कप्तानी पारी खेल रहे हैं वे भी थाना प्रभारी रह चुके है। सो अब साहब का क्या इरादा है कोतवाली या दीपका… खैर अभी अभी पोस्टिंग हुई है तो अभी संभव नहीं है पर कोयला की तपिश बढ़ी तो कुछ भी हो सकता है।

नेताओं का किस्मत दांव पर और दावा सटोरियों का…

मिनी भारत कहे जाने वाले कोरबा में हर प्रान्त के लोग रहते हैं और अपने क्षेत्र की राजनीतिक खुमारी से पीछे नहीं रहते,यहीं वजह है चुनाव कहीं भी पर ऊर्जाधानी के ऊर्जावान नेता अपनी पार्टी की बातों में जितने कोई कसर नहीं छोड़ते। होना भी यही चाहिए क्योंकि समर्थक तो हर हाल में अपने नेताओं के सर ताज देखना चाहता है। अब यूपी का चुनाव को ही ले लीजिए चुनाव भले ही उत्तरप्रदेश में है पर चर्चा कोरबा में सर चढ़कर कर है। चुनाव वहां हो रहा है और हार जीत का दांव यहां लग रहा है। वैसे यूपी चुनाव में हमारे शहर के भी कुछ पार्टियों के सुरमा चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे हैं। अपने घर में भले ही 100 वोट ना जुटा पाए लेकिन उधर से आने के बाद शेख चिल्ली बन गए हैं, उस तुर्रा ये है कि उनके प्रचार से प्रत्याशी को जीत मिल चुकी है। परिणाम की घोषणा बाकी है। वैसे इन दिनों यूपी चुनाव को लेकर खास गहमागहमी है।

दिलचस्प तथ्य यह है शहर के राजनीतिक सुरमा भाजपा गठबंधन को सत्ता के करीब पहुंचा रहा है वहीं सपा गठबंधन को दूसरे नंबर पर है औऱ कॉंग्रेस को किंगमेकर बना रहे हैं। जिले की एक बड़ी आबादी उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखती है, इसलिए तेल के साथ तेल की धार देखना उन्हें बखूबी आता है। अब परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा कि जिले के लालबुझक्कड़ टाइप नेताओं की भविष्यवाणी कहां तक सही होती है।

समाधान शिविर की जरूरत कलेक्टोरेट में…

एक खबर इन दिनों खूब चर्चा में रही कि अब आम लोगों की समस्या सुनने अधिकारी ग्रामीण अंचलों में शिविर लगाएंगे। शिविर लगाने की बात सुनकर चौक चौराहो में खबर आम होने लगी है कि कलेक्टर दफ्तर में लंबित मामलों के लिए भी एक शिविर लगाया जाए ताकि रोज रोज लोगों को दफ्तर का चक्कर लगाना न पड़े।

आयडिया बुरा भी नहीं है। क्योंकि वैसे तो आम ही या खास किसी का काम हो नहीं रहा। समस्या से ग्रसित जनमानस कार्यालय जाते हैं तो पता चलता है आज अधिकारी मीटिंग में हैं, दौरे में हैं। ऐसे में पब्लिक करें तो करें क्या अब अपने उच्च अधिकारी को सलाह तो दे नहीं सकते। तो चलो कम से कम चर्चा कर लेते हैं। सही भी है जब कलेक्टोरेट कार्यालय का ये हाल है तो गांव ने शिविर … लोगों की समस्या और निराकरण … की बातें बेमानी लगती है।

यूथ कांग्रेस के जिला अध्यक्ष की तलाश किसके गुट सजेगा सरताज

यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई में चल रही गुटबाजी किसी से छुपा हुई नही है। बुजुर्गों की राजनीति में गुटबाजी हो तो युवा वर्ग इससे अछूता कैसे रहें ??

हाल ही में शहर के एक कद्दावर नेता गुट को एनएसयूआई का ताज पहनाया गया तो इसकी सुगबुगाहट राजधानी तक पहुंच गई । फिर क्या था। यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष को उर्जानगरी आकार प्रेस वार्ता लेकर कहना पड़ा कि यूथ जिला अध्यक्ष की नियुक्ति जल्द होगी। मतलब साफ है हम किसी से कम नही की तर्ज पर हो रही राजनीति से वर्चस्व की लड़ाई में अपनों के बीच दरार आ रही है। खैर अब देखना होगा कि यूथ कांग्रेस का नेतृत्व किस गुट को मिलता है??

कही बात दिल्ली लेबल पर गईं तो अगले 8-10 बरस तक युवा दावेदारी पेश करते हुए बुढ़ापे की शरण में पहुंच जाएंगे।

 

                  अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा