जांचा परखा फिर किया श्रीगणेश…
ऐसा कहते है कि “एक अच्छी शुरुआत एक अच्छे अंत तक ले जाती है।” ठीक उसी तरह कप्तान ने भी पहले जांचा , परखा और फिर एसएचओ की पोस्टिंग का श्री गणेश किया। अमुमन होता ये है कि कप्तान के आते ही जिले के थानेदारों को बदल देते हैं फिर शिकायत और घटना घटने पर फिर नया तालमेल! मतलब हर महीने दो महीने में एक लिस्ट। इस तरह की स्थितियों से विभाग में अस्थिरता दिखने लगती हैं। इसे बचने हर समझदार अधिकारी सोच समझकर कलम चलाते हैं।
जिले के थानेदारों की जारी लिस्ट और कप्तान के काबिलियत की हर कोई तारीफ कर रहा है। वैसे कहा तो यह भी जा रहा की कप्तान के दिशा निर्देश ही खेल के पूरे पारी को मजबूती प्रदान करती हैं। कप्तान भी पहले सोचते हैं फिर समझते हैं उसके बाद पूरी जिम्मेदारी से फील्डिंग बैठाकर कार्य का श्री गणेश करते हैं।
अरसे पहले एक फ़िल्म आई थी नया दौर जिसमें साहिर लुधियानवी का एक गीत था साथी हाथ बढ़ाना… साथियों का विश्वास लिए बगैर महकमे के काम को अंजाम तक पंहुचने में हर कप्तान को मुश्किल होती है। इसे आसान करते हुए पारी की शुरुआत की कवायद हो चुकी है। कप्तान की इस पारी को लेकर उनके साथियों में उत्साह तो देखा जा रहा है लेकिन कप्तान इसे पूरी जीत तभी मानेंगे जब धरातल पर काम आम जन के हित के लिए होता दिखाई पड़ेगा । वैसे बता दें कि कप्तान ने जिस तरह से पारी की शुरूआत की है, उसको लेकर जनमानस भी हसरत भरी निगाह उन पर जमाए बैठी है।
बिच्छु का मंत्र नहीं मालूम और सांप के बिल में हाथ…
दुनिया मे ऐसे भी लोग होते हैं जिन्हें बिच्छु का मंत्र तो मालूम नहीं होता और सांप के बिल में हाथ डाल देते हैं। यानि जब तजुर्बा हो तभी उस काम को किया जाना चहिए नहीं तो गिरधर कवि उक्ति की तरह बिना बिचारे जो करें सो पाछे पछताए ! जनप्रतिनिधियों को कौन कंहा कब इस्तेमाल कर ले यह वे खुद नहीं जानते ।
पंचायती राज की ऐतिहासिक कुंडली खोलकर देखा जाए तो ऐसे कई पंचायत प्रतिनिधि के नाम सामने आएंगे, जिन्होंने माल उड़ाया तो नहीं लेकिन, कुड़की उनके घर तक पहुचं गई। हम बात कर रहे हैं हाल ही में पंचायतों को दिए गए उस अधिकार की जिसमें उन्हें 50 लाख तक कार्य करने की सरकारी अनुमति है। इसके पहले 20 लाख तक क्षमता के दिये कार्यो की लिस्ट देखें तो अधिकांश में दस प्रतिशत का घोटाला है। जाहिर सी बात कि जब पचास लाख के काम करने की बात आएगी तो इसमें 25 की खानगी बैठेगी।
ठीक भी है पंचायत प्रतिनिधियों के शक्ति को बढ़ाया गया है, पर काम को पूर्ण करने की न कोई समय सीमा निर्धारित है और न ही कार्यवाही का भय! मतलब साफ हैं सिर्फ और सिर्फ पैसे की बर्बादी। अब देखिए न ऊर्जा नगरी के ग्रामीण अंचलों में 16 -17 के छोटे छोटे के काम पूर्ण नहीं हुए हैं तो 50 लाख के काम की तो बात ही निराली होगी। खैर काम से मतलब भी किसे हैं पंचायत के काम 40 परसेंट एडवांस और आधा अधिकारी का और आधा जनप्रतिनिधियों के नाम। तभी तो अकेले कोरबा ब्लाक में शौचालय निर्माण में करोड़ों की धांधली हो गईं और कार्यवाही सिर्फ दफ़्तर के चक्कर लगा रही हैं।
बाबू जी धीरे चलना…
वैसे तो ये गाना” बाबूजी धीरे चलना प्यार में ज़रा सम्भालना हाँ बड़े धोखे हैं बड़े धोखे हैं इस राह में ..1954 में आई (आर पार) मूवी का है जो बाद में रिलिक्स रिलीज हुआ और लोगों को पसंद भी खूब आया। अब ये गाना कुसमुंडा दीपका रोड में सफर करने वाले बाबू जी जरा संभलना बड़े गड्ढे से इस मार्ग में…. गुनगुना रहे हैं। पब्लिक करे भी क्या… क्योंकि यह मार्ग राजनीति और कूटनीति का शिकार हो गई। सड़क निर्माण के लिए एसईसीएल ने राशि तो प्रशासन को सौप दिया फिर ठेकेदार से हिसाब ले लिया। अब क्या करें हिसाब और जवाब के चक्कर के पब्लिक पिसा रही है। जो हिसाब मंगा वो भी मजे में है और जवाब मांगा वो मजे में… मतलब आम लोगों की पीड़ा से न नेताओं को लेना देना है और न अधिकारियों को!
अब बात खबरीलाल की माने तो कुसमुंडा में डीएवी का स्कूल भी है जंहा कोरबा से बच्चे पढ़ने जाते हैं, पर क्या करें वाहन फंसा तो स्कूल बस वापस आ जाती हैं। मतलब बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है।
चीतों को मिल गए ‘मित्र’, हाथी को कब मिलेंगे ‘साथी’ ?