रायपुर।छत्तीसगढ़ में क्षेत्रीय दल के उदय का इतिहास जब भी लिखा जाएगा ,, उसमे जनता कांग्रेस जोगी का नाम पहला और प्रमुख होगा,, अपने गठबन्धन के 12% से अधिक वोट और 5सीट लाने वाली जनता कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का सपना था ,, जो शुरू तो सही शुरुवात के साथ हुआ पर कांग्रेस की आंधी की धुंध में उस उगते हुए सूरज की चमक को गायब सी हो गई,, नए बने इस दल के लिए विपक्ष की तपिश को सह कर आगे बढ़ना एक बड़ी चुनौती थी ,, छोटा दल और गठबन्धन के साथी का चुनाव के बाद साथ नही मिलना जैसी परिस्थितियों ने दल के लिए मुश्किलें तो बढ़ाई ही ,, जिस विचारधारा से अलग हो कर पार्टी बनी उसी पार्टी के सरकार आने से भी छोटे दल के सामने अपनी पहचान की नई चुनौती आई और संगठन का पूरा ढांचा धीरे धीरे खत्म होने लगा था 2020 में सुप्रीमो अजित जोगी का निधन ,और पुत्र अमित जोगी की जाति प्रमाण पत्र रद्द होने से बनी परिस्थिति ने दल को कमजोर कर दिया ,,
खैर जैसे तैसे दल बना हुआ था ,, रेणु जोगी और अमित जोगी ने पारिवारिक विरासत को बचाने की कोशिश जारी रखी लेकिन विधायको में फूट रही है विधायकी की प्रतिबद्धता के कारण विधायक जुड़े तो रहे पर नेतृत्व की समस्या और स्वीकारिता नही हो पाई ,,जब खैरागढ़ विधायक देवव्रत सिंह के निधन के बाद विधायको की संख्या 3 बची , ऐसे में खबरों की दुनिया मे ये बात तैरने लगी कि दल के दो और सदस्य पार्टी छोड़ लेने वाले है , खबरों और कयासों को बल तब मिला जब अमित शाह के मोदी की किताब मोदी@0.20 के व्याख्यान में धर्मजीत और प्रमोद शर्मा शामिल हुए ,
,वैसे अब जो पार्टी के अध्यक्ष अमित जोगी के फैसले के पीछे की वजह को लेकर सबका अपना अपना आकलन है ,, पर असली वजह ये है कि 3 विधायको वाली पार्टी में से दो विधायक पार्टी छोड़ कर नही बल्कि पूरी पार्टी को लेकर जाते ,,हालाकि इसमे अभी भी कई अगर मगर है पर पार्टी के अस्तिव में ही संकट गहराने को जोगी परिवार कानूनी रूप से बेहतर तरीके से जानता था कि पार्टी के दो विधायको का जाना कितना सामान्य है और इसका किस तरीके से क्या असर होगा,, ऐसे में धर्मजीत सिंह के जरिए भाजपा के राजनीतिक कदम के पहले अमित जी से कोई समझदारी भरा कदम उठाने की उम्मीद थी हालांकि इस तरीके के फैसले से पार्टी की छवि के साथ एकता पर खासा असर करने वाला था पर महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे ने जो कदम उठाकर उधव ठाकरे के सामने एक धर्म संकट की स्थिति पैदा कर दी वैसी परिस्थिति छत्तीसगढ़ में ना बने इसलिए धर्मजीत सिंह को पार्टी से बाहर करने का फैसला लेना पड़ा,, धर्मजीत क्योंकि विधायक दल के अधिकृत रूप से विधानसभा में नेता थे इसलिए उनका पार्टी के बहुमत सदस्यों के साथ किसी दल में शामिल होना जोगी कांग्रेस के अस्तित्व के लिए संकट बनकर आता इससे बचने के लिए ही धर्मजीत को पार्टी है अनुशासन की कार्यवाही के नाम पर बाहर किया गया है फिलहाल बयानों से साफ है कि प्रमोद शर्मा अभी भी धर्मजीत सिंह के साथ हैं,, ऐसे में पार्टी जनता कांग्रेस जोगी जरूर कमजोर हुई है पर उसने अपने अस्तित्व को बचा लिया है हालांकि अमित जोगी के इस कदम से धर्मजीत सिंह के लिए भी एक रास्ता साफ हुआ है कि वह अकेले भाजपा में आसानी से जा सकते हैं क्योंकि दल छोड़ने पर पिंकी विधायक की को लेकर भी जनता कांग्रेस जोगी चैलेंज कर सकती थी क्योंकि प्रदेश में कांग्रेस सरकार है ऐसे में भाजपा की मजबूती ना हो इसके लिए धर्मजीत सिंह की विधायकी पर संकट आ सकता था
और यही वजह है कि धर्मजीत के पास एक ही रास्ता बचता कि वह अपने साथ प्रमोद शर्मा को लाकर पहले विधानसभा अध्यक्ष से मिलकर 2 विधायकों के बहुमत के साथ दल की मान्यता के लिए आवेदन करते और फिर पार्टी पर दावेदारी करते सम्भव है कि इसके बाद में कानूनी लड़ाई जैसी स्थिति में विलय जैसी प्रक्रिया कर अपनी विधायकी बचा लेते,, जिसे जनता कांग्रेस संविधानिक अस्तिव ही संदिग्ध हो जाता अब अमित जोगी के द्वारा किए गए इस फैसले से सांप भी मरेगा लाठी भी नहीं टूटेगी जनता कांग्रेस जोगी पार्टी का अस्तित्व भी बना रहेगा और धर्मजीत के लिए दूसरी पार्टी में जाने का रास्ता बंद हो सकता हो गया है क्योंकि वह अब वे असम्बन्ध विधायक के रुप में किसी दल में शामिल नहीं हो पाएंगे,( जैसे 2016 में अमित जोगी के साथ कांग्रेस से निष्कासन के बाद हुआ था ) और प्रमोद शर्मा ने के लिए फौरी तौर पर पार्टी छोड़ने का रास्ता भी बंद हो गया है अब पार्टी अनुशासन ताक पर रखकर विधायकी खतरे में रखने के जोखिम में ही वो पार्टी छोड़ेंगे ,!! ऐसे में एक फैसले से तीन चीजों को साधने की कोशिश की गई है,,,,,
कुल मिलाकर धर्मजीत सिंह के पार्टी निलंबन के बड़े फैसले के जरिये अमित जोगी ने अपने पिता की पार्टी को बचाने की कोशिश की है,, जिसमें कुछ समय के लिए ही सही वह सफल भी दिख रहे है,,, मूल रूप से अमित जोगी ने अपने पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह बचाने के लिए यह सारे उपक्रम किए हैं जिसे 1 तरीके से नियमों के जरिये ही सही अभी तो संकट टाल लिया गया है लेकिन पार्टी की स्थिति और नेताओं के भविष्य पर,, जनाधार पर ,,संकट के बादल अभी छटे नही है ,,,🌧️
✍️ लेखक मोहन तिवारी रायपुर