दिल के अरमां आंसुओं में बह गए,काम करने का तरीका बदलना होगा तेवर नहीं..फंड हाथियों का और पल रहे…हे सखी सावन ना आयो!

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दिल के अरमां आंसुओं में बह गए…

हसन कमाल के लिखे और सलमा आगा पर फिल्माया गया गीत पुलिस विभाग पर क्या खूब जम रहा है। दरअसल हुआ यूं कि पिछले दिनों राज्य सरकार ने ये घोषणा की कि कटघोरा में एडिशनल कलेक्टर और एडिशनल एसपी की पोस्टिंग की जाएगी। एक प्रकार से यह कटघोरावासियों के आंदोलन पर मरहम लगाने जैसा था।

इस घोषणा के बाद कुछ पुलिस अधिकारी कटघोरा एडिशनल एसपी बनने का सपना संजोकर पोस्टिंग कराने के जुगाड़ में लग गए। इसी बीच सरकार ने अति.पुलिस अधीक्षकों की एक ट्रांसफर सूची जारी की और कोढ़ में खाज वाली बात ये कि सूची में कटघोरा एएसपी का जिक्र ही नहीं था। फिर क्या कटघोरा ग्रामीण एएसपी बनने का सपना अधूरा रह गया। अब तो “दिल के अरमां भी आंसुओं में बह गए….!”

जानकारों की माने तो कोयले के गढ़ में बिना दाग लगे हीरा तराशने की मंशा पुलिस अधिकारियों की धरी की धरी रह गई। इन साहबों का ट्रांसफर तो हो गया लेकिन एक दर्द छोड़ गए..”न दिल ही मिला न विसाल.ए.सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे!” खैर जहां चाह है वहां राह भी हैं..इस आस के साथ नई गोटी बैठाने के जुगाड़ में लग गए हैं।

काम करने का तरीका बदलना होगा तेवर नहीं…

अजय देवगन का वो मशहूर डायलॉग” मैंने काम करने का तरीका बदला है तेवर नहीं” भाजपा के केंद्रीय मंत्री पर सटीक बैठ रहा है। दरअसल मंत्री ने योजनाओं की समीक्षाओं के साथ-साथ पार्टी नेताओं के कार्यों की भी आंतरिक समीक्षा कर दी।

नेतागिरी के सहारे दुकानदारी करने वाले नेताओं की दुखती रग पर बातों-बातों में ही हाथ रख दिया। उनके तेवर देख अब लोकल नेता कहने लगे हैं.. काम करने का तरीका बदलना होगा!

कहा तो यह भी जा रहा है कि पार्टी की बैठक में एक नेता ने अपना परिचय झुग्गी झोपड़ी प्रकोष्ठ पदाधिकारी होने का दिया तो मंत्री जी ने कहा कि तुम्हारा पहनावा तो झुग्गी झोपड़ी के नेताओं वाला नहीं है।

मतलब लोकल नेता को मुंह की खानी पड़ी और तो और उनके तेवर देख पार्टी के बड़े-बड़े लीडरों की भी बोलती बंद हो गई। हो भी क्यों ना यहां तो नेता कम व्यापारी ज्यादा हैं। अपने फायदे के लिए राजनीति कर अपनी जेबें भर रहे हैं।

खबरीलाल की माने तो मंत्री के तेवर से टिकट के दावेदारों की भी बोलती बंद हो गई। मंत्री जी के तेवर से संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों व पोस्टरबाज नेताओं में खलबली मची हुई है।

फंड हाथियों का और पल रहे…

हाथियों के लिए मिलने वाले फंड से फारेस्ट के अधिकारी पल रहे हैं.. ये बात भले ही अटपटी लग रही हो पर यह सच है। अब अधिकारियों के बीच वन्यप्राणियों के संरक्षण के लिए मिलने वाले फंड की जमकर बंदरबाट हो रही है। एलिफेंट कॉरिडोर यानि हाथियों के गुजरने वाले रास्ते में लाखों का तालाब और उनके लिए अनुकूल वातावरण बनाने के नाम पर तो कागजों में जमकर खर्च हो रहा था। लेकिन, अब उन निरीह जीवों के आहार पर भी गोलमाल हो रहा है।

दरअसल जिले का 40 फीसदी भूभाग फारेस्ट एरिया में आता है तो स्वाभाविक है कि वन्यप्राणियों का रहवास भी बहुतायत है। जंगल में विचरण करने वाले वन्यप्राणियों के संरक्षण के लिए सरकार हर साल बजट देती है और अधिकारी उसे कागजों पर खर्च हजम कर जाते हैं।

अब पिछले साल के ज्वार के लिए बजट को ही ले लीजिए, हाथियों के लिए ज्वार खिलाने के लिए 5 लाख का बजट भेजा, पर शायद ही हाथियों को ज्वार खाने को मिला होगा। अब इस बार 10 लाख की लागत से फिर से हाथियों के लिए विभाग के अधिकारी केला और मक्का की खेती करा रहे हैं।

मतलब साफ है नाम हाथियों का और मलाई विभाग के अधिकारियों खा रहे हैं। खैर जंगल विभाग कुछ भी कर दें तो कोई अचंभा नहीं है क्योंकि 12वीं पास बीटगार्ड भी बीई होल्डर इंजीनियर को चैलेंज कर लाखों का डैम और पुलिया बना रहे हैं।

….हे सखी सावन ना आयो!

कहावत है कि बादल अगर उल्टे बरसने लगे तो हरियाली कहां से आएगी, कुछ ऐसा ही हाल प्रदेश की राजधानी में भी देखने को मिल रहा है। यानि खंड वर्षा मतलब जहां बरस गया वहां हरियाली…जहां नहीं बरसा वहां सूखा। वैसे शहर में हरियाली ढ़ूंढना सावन में आसमान पर सूरज ढ़ूंढने जैसा ही है। हां कुछ ​हरियाली नया रायपुर में मंत्रालय, संचालनालय में देखने को जरूरी मिली पर अब वहां भी सूखा सूखा नजर आ रहा है।

करीब सप्ताह भर पहले मंत्रालय और संचालनालय में अफसर बाबू सावन उत्सव मनाने की तैयारी कर रहे थे। दफ्तरों में सावन उत्सव की फाइल तैयार हो रही थी, उम्मीद थी कि एक बार सरकार से तबादला करने की छूट मिला तो अपना भी सावन मन जाएगा। कुछ माननीय विधायकों ने भी अपनी अपनी लिस्ट तैयार कर मंत्रियों के बंगलों पर भी पहुंचा दी। मगर प्रदेश की मुखिया के आवास जो कैबिनेट की बैठक हुई उसने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

सभी को बता दिया गया कि अभी तो तबादला होने से रहा। सामने चुनाव आने वाला है तबादला तो होंगे मगर समन्वय की फाइल चलना जरूरी है। यानि हरियाली हर किसी के हिस्से में नहीं आने वाली…।

सीएम हाउस से निकली ये खबर सावन की बादलों के साथ उड़ते हुए जब मंत्रालय तक पहुंची तो वहां सभी के चेहरे लटक गए। अफसर बाबू सभी यहीं चर्चा करते मिले कि ….हे सखी अबकि सावन ना आयो……ब​ल्कि इस बार सावन की जगह समन्वय ने ले ली….!

       ✍️ अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा