The Duniyadari: रक्षाबंधन पर हर बहन अपने भाई को राखी बांधती हैं. रक्षाबंधन के मौके पर मध्य प्रदेश के बालाघाट की एक बहन ने अपने भाई को खत लिखा. दरअसल, उसका भाई पाकिस्तान की जेल में बंद है, जिसे छुड़ाने के लिए 4 साल से बहन सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही है. बालाघाट के खैरलांजी के प्रसन्नजीत रंगारी ने साल 2011 में बी. फार्मेसी की पढ़ाई पूरी की. मानसिक स्थिति खराब होने की वजह से वह आगे की पढ़ाई छोड़ कर घर लौट आया था.
इसके बाद कुछ साल बाद वह घर से अचानक लापता हो गया. घर वालों ने काफी ढूंढ़ा, जब वह कहीं नहीं मिला तो उन्हें लगा कि अब प्रसन्नजीत इस दुनिया में नहीं है, लेकिन 2021 में उसकी बहन संघमित्रा को कॉल आया और बताया गया कि आपका भाई पाकिस्तान की जेल में बंद है. तभी से बहन संघमित्रा भाई को छुड़ाने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहीं है. अब रक्षाबंधन पर उन्होंने अपने भाई के लिए खत लिखा है.
संघमित्रा ने लिखा, “भाई रक्षाबंधन पर बहुत याद करती हूं. मैं तुम्हें राखी भेजना चाहती हूं, लेकिन तू भारत से बहुत दूर है. मैं तुझे राखी भेजना चाहती हूं. प्यार से भेजी राखी भारत सरकार कुबूल करें और पाकिस्तान के लाहौर कोट लखपत जेल भेजकर बहन का भाई को राखी बांधने का अरमान पूरा करें. हर बहन अपने भाई को राखी बांधती है, लेकिन मैं बदनसीब बहन अपने भाई को राखी नहीं बांध सकती. मां तुम्हें बहुत याद करती हैं और तेरा इंतजार करती हैं. तुम्हारी भांजियां भी तुम्हें याद करती हैं और देखना चाहती हैं.”
प्रसन्नजीत पाकिस्तान की कोट लखपत सेंट्रल जेल में करीब 6 सालों से बंद है. हालांकि, उसे घर से गए हुए करीब 14 साल हो गए हैं और तब से ही संघमित्रा ने अपने भाई को राखी नहीं बांधी है. अब संघमित्रा का खत भी उसके भाई तक नहीं पहुंच सकता. क्योंकि पहलगाम हमले के बाद से पाकिस्तान में चिट्ठी या कुरियर की सर्विस बंद कर दी गई थी. बहन संघमित्रा का कहना है कि उन्होंने कसम खाई है कि वह तब तक किसी को राखी नहीं बांधेंगी. जब तक वह अपने भाई को पाकिस्तान की जेल से छुड़वा कर न ले आए.
प्रसन्नजीत की बहन ने क्या बताया?
बहन संघमित्रा ने बताया कि प्रसन्नजीत रंगारी पढ़ाई में बहुत तेज था. बाबूजी लोपचंद रंगारी ने प्रसन्नजीत को जबलपुर के गुरु रामदास खालसा इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से बी. फार्मेसी की पढ़ाई कराई थी. पढ़ाई पूरी कर साल 2011 एमपी स्टेट फॉर्मसी काउंसिल में रजिस्ट्रेशन किया था. आगे की पढ़ाई के लिए भेजा भी गया, लेकिन उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से उसकी पढ़ाई छूट गई थी.
इसके बाद वह घर छोड़कर भाग गया था, लेकिन खुद ही 8 महीने बाद लौट आया था. फिर वह अपनी बहन के घर रहने लगा. कुछ दिन बाद वह अपने माता-पिता के पास रहने चला गया. फिर से वह अपनी बहन के घर कटंगी तहसील के ग्राम महकेपार गांव में रहने के लिए आया और अचानक घर से लापता हो गया. इसके बाद कुछ दिनों तक तलाश की गई, लेकिन कोई खबर नहीं मिली. ऐसे में प्रसन्ननजीत के परिवार ने उसे मरा हुआ मान लिया था.
फोन पर मिली जिंदा होने की जानकारी
साल 2021 में अचानक महकेपार में रह रही बहन संघमित्रा खोब्रागड़े के लिए एक फोन आता है. ये फोन था कुलदीप सिंह का, जो 29 साल पाकिस्तान की उसी जेल में रहकर आए, जहां प्रसन्नजीत भी बंद है और उसने बताया कि आपका भाई प्रसन्नजीत पाकिस्तान के लाहौर के कोट लखपत जेल में बंद है. तब से लेकर अब तक बहन संघमित्रा अपने भाई को छुड़ाने के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रही है. उन्हें उम्मीद है कि वह अपने भाई को जेल से छुड़वा लेगी.
बहन संघमित्रा खोब्रागड़े ने कहा कि मंत्रालय से प्रसन्नजीत की पहचान के लिए दस्तावेज मंगाए गए थे. उन्हीं में कुछ दस्तावेज थे, उसमें प्रसन्नजीत का जिक्र था. पाकिस्तान की जेल में सुनिल अदे के नाम से बंद है. वहीं, उसने वहां अपना असली नाम और रिश्तेदारों के नाम भी बताए. बहन ने आगे बताया कि 1 अक्तूबर 2019 में प्रसन्नजीत को पाकिस्तान के बाटापुर से हिरासत में लिया गया. उस समय तक उस पर किसी तरह के आरोप तय नहीं हुए थे.
पिता की मौत के दिन दस्तावेज आए
वेरिफिकेशन के दस्तावेज भी उसी दिन आए थे, जिस दिन संघमित्रा और प्रसन्नजीत के पिता लोपचंद रंगारी की मौत हुई थी. बेटे के इंतजार में दुनिया से चल बसे और मां को लगता है कि उनका बेटा अब जबलपुर में है. वह मानसिक रूप से बीमार हैं और पड़ोसियों से खाना लेकर अपना गुजारा कर रही हैं.पाकिस्तान की जेल में प्रसन्नजीत को छुड़ाने की जिम्मेदारी बहन संघमित्रा के ऊपर है. वह पूरे साल मजदूरी करके अपना जीवन यापन करती हैं. उनकी दो बेटियां हैं. उनके पालन पोषण की भी जिम्मेदारी है.
वहीं, उनके पति राजेश खोब्रागड़े भी मजदूरी करते हैं और उनकी सास बीड़ी बनाने का काम करती हैं. परिवार अपना गुजारा बड़ी मुश्किल से कर रहा है. प्रसन्नजीत के जीजा राजेश खोब्रागड़े का कहना है कि इस प्रक्रिया में काफी खर्च होता है. कई दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं. ऐसे में काफी खर्चा हो जाता है. उन्होंने सरकार से मदद की गुहार लगाई है.