मैडम माया का चला हंटर,गर्दिश में सितारे…75 साल और भ्रष्टाचार,आजादी और…रेवड़ीवाल और… 

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मैडम माया का चला हंटर, तीन टीआई…

खिलाड़ियों का खिलाड़ी  में अभिनेत्री रेखा को मैडम माया के रूप में खूब सराहा गया था। अब मैडम माया के किरदार में जिले के एक पुलिस अधिकारी हैं,  जिनकी चर्चा पुलिस महकमे में सुर्खियां बटोर रही हैं। चर्चा इस बात की है कि जिले के तीन थानेदारों पर मैडम का हंटर चला है और तीनों को नोटिस थमा दिया गया है। अब मैडम को जो लोग हल्के में आंक रहे थे उनके लिए ये बड़ा सबक हैं। 
असल मे कुछ थानेदार उनको हल्के में ले रहे थे तो मैडम ने मौका पाकर ये बता दिया कि मुझे कम आंकने की भूल न करें, और फोन तो क्या मेरी आहट को भी पुलिस कर्मियों को पहचानना होगा। दरअसल हुआ यूं कि तीन थाना प्रभारियों की रात्रि गश्ती में ड्यूटी रहती हैं जिसमें एक जिम्मेदार बड़े अधिकारी भी शामिल रहते हैं। यह गश्ती वैसे तो उच्च अधिकारियों के रहमो करम में औपचारिक हो जाती है,  पर कोई ठान ले तो ड्यूटी तो करनी ही पड़ती है। 
कुछ दिन पहले कटघोरा, कुसमुंडा और कोतवाली के थानेदारों की ड्यूटी मैडम के साथ थी । मैडम ने अचानक तीनों को फोन से संपर्क करने को कहा तो तीनों नदारद रहे ,फिर क्या था मैड़म ने उच्‍च  अधिकारियों को रिपोर्टिंग कर दी और साहब ने ड्यूटी में लापरवाही को अनुशासनहीनता मानते हुए तीनों को नोटिस जारी कर दिया। अब नोटिस जारी होने के बाद मैडम ने हंटर चलवा कर अपने पॉवर तो दिखा दिया, पर दो थानेदार जो ड्यूटी में तैनात थे जिनका रिकार्ड  में तैनाती रहा वे तो अब इसे गलत बता कर आर पार की लड़ाई लड़ने के मूड में हैं। वैसे तो मैडम माया के हर कार्य चर्चा और बिना खर्चा के होता नहीं तो अब उनके इस तेवर की सिर्फ चर्चा होती है या …! हां एक बात और मैडम पुलिस विभाग के दूसरे नंबर के अधिकारी को बाईपास कर सीधे संपर्क साधने की जुगत लगा रहे हैं। ताकि आने वाले समय मे पूछ-परख बढ़े!

गर्दिश में सितारे…

जिले में दो नम्बर का ओहदा रखने वाले अधिकारी के सितारे इन दिनों गर्दिश में हैं। कल तक इन अधिकारी के चरण स्पर्श के लिए ठेकेदारों की लाइन लगी रहती थीं और और तो और इन अधिकारी के इशारे भर से मुश्किल से मुश्किल काम चुटकियों में हो जाता था पर सितारे गर्दिश में हो तो ऐसा ही हाल हो जाता है। 
कहा तो यह भी जा रहा हैं नए साहब के आते ही उनके पर कतरने शुरू हो गए। तभी तो जिले के विकास को गति देने के लिए सीएसआर जैसे सेक्शन को छीन गया और अब खनिज संपदा वाले साहब के संभाल रहे हैं। वैसे चर्चा तो यह भी है कि जिले के गतिविधियों के लिए अब वे सिर्फ मुखबिरी का काम कर रहे हैं। चर्चा तो निर्माण कार्यो का हो रहे हाल बेहाल का भी है । विभाग में अटैच इंजीनियर निगम को छोड़कर  न निरीक्षण कर पा रहे हैं और न ही गुणवत्ता पर ध्यान दें पा रहे हैं। हां ये बात अलग हैं कि अधिकारी के मोहमाया से प्राक्कलन के आधार पर  मूल्यांकन कर अपना उल्लू सीधा कर रहें हैं।

 

आजादी के 75 साल और भ्रष्टाचार…

आजादी के 75 सालों में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या के रुप में सामने आई है। आजादी के 75 साल के इतिहास को उठाकर देखे तो भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े घोटालों से इतिहास के पन्ने भरे हुए हैं। ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ की विश्व के भ्रष्ट देशों की रैकिंग में भारत 86 वें स्थान पर है  जो यह बताने के लिए काफी है कि भ्रष्टाचार की जड़े किस कदर हमारे समाज को अंदर ही अंदर खोखला कर रही है। 
आज जरूरत है कि सरकार कड़े और कठोर कानून के साथ सामाजिक जागरुकता के माध्यम से देश को भ्रष्टाचार रुपी बीमारी से आजादी दिलाएं। अगर बात हम खनिज संपदा से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ की करें तो जिस रफ्तार से प्रदेश के विकास को गति दी गई वो अवरुद्ध हो चुका है। अधिकारी अपने फायदे के लिए कायदे बना रहे हैं और खनिज संपदा का भरपूर दोहन कर रहे हैं। हालात यह है कि सरकारी काम काज बिना सेवा शुल्क के नहीं सरकता!  कुल मिलाकर अभिषेक बच्चन के 10वीं मूवी का डायलॉग बिना काम के तो सैलरी मिलती है और “काम करने के तो अलग से”… आज के दौर पर फिट बैठ रहा है।

आजादी और……  कितनी आजादी

 

देश और प्रदेश में आजादी के 75 साल पूरे होने पर अमृत उत्‍सव मनाया जा रहा है। देश ध्‍यान से देख रहा है कि जिन मायनों के लिए आजादी की लड़ाई लड़ी गई थी उसके मायने कितने बदल गए। राजधानी रायपुर में भी इसका असर दिखा। बीजेपी तिरंगा  लेकर लोगों तक पहुंच  रही है तो कांग्रेस तिरंगा लेकर गौरव यात्रा पर निकल पड़ी  है। आजाद लोकतंत्र में तिरंगा दो खेमों में बंटता दिख रहा है। 
बीजेपी आज विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाकर देश के विभाजन की त्रासदी लोगों को याद दिला रही है तो कांग्रेस ने इस त्रासदी के लिए सावरकर और नाथू राम गोडसे को जिम्‍मेदार ठहरा रही है, जो भी हो पर इसे आजादी का अमृत उत्‍सव तो कतई नहीं कहा जा सकता।  विडंबना यहीं है कि ये सब कुछ आजादी के नाम के पर हो रहा है।

 रेवड़ीवाल और केजरीवाल

देश में इस वक्‍त रेवड़ी कल्चर को लेकर जोरदार बहस छिड़ी हुई है। चुनाव के पहले लोगों को पानी, बिजली, शिक्षा, इलाज जैसी सुविधा मुफ्त में देने का वादा करना सियासी पंडि़तों की आदत बन गई है। अब तो इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी बहस चल पड़ी है। सवाल ये है कि सरकारी फंड से चलने वाली इन योजनाओं को जनता के हित में लागू करना ज्‍यादा जरूरी है या उन दलों के मर्जी चलेगी जो खुद को सरकार से ऊपर समझने लगे हैं। चुनाव से पहले वोट के लिए ऐसे ही मुफ्त आॅफर हर बार जनता को दिए जाते हैं जिसे रेवड़ी बांटना ही कहा जा सकता है।
रेवड़ी कल्चर को लेकर दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल सबसे ज्‍यादा मुखर हैं, इसके पीछे उनका दिल्‍ली माडल छुपा हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रेवड़ी कल्चर से काफी नाराज चल रहे हैं। तो इसके जवाब में अपने दिल्ली माडल को सही साबित करने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल रेवड़ी कल्चर पर जनमत संग्रह की बात करने लगे हैं।  फिलहाल इस वक्‍त आजादी के अमृत उत्‍सव के बाद  देश में रेवड़ीवाल और अरविंद केजरीवाल का दिल्‍ली माडल ही सबसे ज्‍यादा चर्चा में है।
   

    ✍️ अनिल द्विवेदी , ईश्वर चन्द्रा