The Duniyadari: बिलासपुर- छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में पुलिस की जांच पर सवाल उठाते हुए गहरी नाराजगी जाहिर की है। साथ ही कहा कि केवल आई लव यू कहना सेक्सुअल ह्रासमेंट नहीं है। इसमें छेड़छाड़ या अश्लील हरकत साबित होना जरूरी है।
इस टिप्पणी के साथ हाईकोर्ट ने ट्रॉयल कोर्ट के फैसले के खिलाफ शासन की अपील को खारिज कर दिया है। साथ ही ट्रॉयल कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए आरोपी को बरी करने का आदेश दिया है। दरअसल, 15 साल की अनुसूचित जाति की छात्रा ने कुरुद थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिसमें बताया कि उसके स्कूल से लौटते वक्त आरोपी ने उसके साथ छेड़छाड़ की।
साथ ही टिप्पणी करते हुए आई लव यू बोला। पहले भी कई बार उसे परेशान करता था। पीड़िता के बयान के आधार पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 354-डी, 509, पॉक्सो एक्ट के साथ ही एट्रोसिटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया।
मामले की जांच के बाद पुलिस ने कोर्ट में चार्जशीट प्रस्तुत किया। जिसके बाद धमतरी के स्पेशल कोर्ट में ट्रायल हुआ। 27 मई 2022 को कोर्ट ने आरोपी को सभी धाराओं से बरी कर दिया, जिसके खिलाफ राज्य सरकार ने अपील की थी।
राज्य शासन की तरफ से कहा गया कि ट्रायल कोर्ट ने सबूतों की अनदेखी की। पीड़िता के जन्म प्रमाण पत्र में स्पष्ट रूप से उसकी जन्मतिथि 29 नवंबर 2004 दर्ज है, जिससे साबित होता है वह घटना के समय नाबालिग थी। आरोपी ने जानबूझकर अनुसूचित जाति की छात्रा को निशाना बनाया, उस पर बुरी नजर रखकर उसके साथ छेड़छाड़ किया।
उसकी हरकत पाक्सो एक्ट व एट्रोसिटी एक्ट के तहत गंभीर अपराध है। वहीं, आरोपी की ओर से उसके वकील ने कहा कि लड़की के नाबालिग होने का कोई ठोस सबूत कोर्ट में पेश नहीं किया गया। उसके जन्म प्रमाण पत्र की न तो मूल प्रति दी गई और न ही कोई गवाह पेश किया गया। न ही स्कूल का रिकार्ड प्रस्तुत किया गया।
ट्रायल कोर्ट ने कहा कि यदि दस्तावेज को प्रमाणित नहीं किया जाता, तो नाबालिग होने का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता। आरोपी के वकील ने सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि सिर्फ आई लव यू कहना, बिना दुर्व्यवहार या शारीरिक संपर्क के पॉक्सो एक्ट या आईपीसी की गंभीर धाराओं के तहत अपराध नहीं बनता।
हाईकोर्ट ने सबूतों और दस्तावेजों को देखने के बाद कहा कि पीड़िता के नाबालिग होने का स्पष्ट और प्रमाणिक साक्ष्य रिकॉर्ड में नहीं है। पीड़िता ने अपने बयान में कहा कि आरोपी ने केवल एक बार आई लव यू कहा और उसके बाद किसी प्रकार की अश्लील हरकत या बार-बार पीछा करने का कोई सबूत नहीं है। पीड़िता की सहेलियां या माता-पिता भी ऐसे किसी आरोप की पुष्टि नहीं करते।
हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान पुलिस की जांच और गवाही पर सवाल उठाए। साथ ही कहा कि आरोप पत्र में ऐसा कुछ नहीं है, जिससे साबित हो सके कि आरोपी ने पीड़िता के साथ यौन उद्देश्य या जातिगत विद्वेष से अपराध किया हो। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि यौन उत्पीड़न के लिए सिर्फ टच या फिजिकल कान्टैक्ट ही नहीं, बल्कि उसमें यौन मंशा का होना आवश्यक है। आरोपी का कृत्य इस परिभाषा में नहीं आता।