सावन के अंधे को सब तरफ,एक चिट्ठी और जनपदों…बिजली के लिए कोयला और ‘आप’ का पौधा,शराब हैं जो चढ़ नहीं…

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सावन के अंधे को सब तरफ….

” सावन के अंधे को सब तरफ हरा हरा दिखता है” ये कहावत लोगों कहते आपने अक्सर सुना पर इसे सही साबित कर दिखाया है देश की शान कहलाने वाली एल्युमिनियम कंपनी प्रबंधन ने!

कहने को केंद्रीय टीम के एनजीटी की प्रदूषण को लेकर जांच करने राखड़ डेम पहुंची, पर प्रबंधन के प्रपंच में उलझकर रह गई। खबरीलाल की माने तो प्रबंधन सब तरफ हरा हरा दिखाने को गाड़ियों की आवाजाही बंद कर रखी थी, और तो और कंपनी के कलाकारों ने राखड़ डेम के रास्ते को फूलों से सजाकर यानी पानी क्विरिंग के साथ साथ हर तरह के खास इंतजाम कर रखा था। जिससे साबित कर सके की पर्यावरण का जो मानक है उससे अधिक प्रदूषण नहीं हैं।

मतलब साफ है एनजीटी की टीम संतुष्ट करना। हालांकि कुछ दिनों से राखड फांक रहे कोरबावासी भी इस बात को लेकर हैरान है कि,संयंत्रों के राख को खपाने में लगे दैत्याकार वाहनों के पहिए आखिर थम क्यों गए थे।
बहरहाल एनजीटी की आंखों में धूल झोंकने में कामयाब संयंत्रों के वे नुमाइंदे अपनी वाहवाही करते नहीं थक रहे हैं।

एक चिट्ठी और जनपदों में ब्रेक डांस…

जनपद पंचायत के अधिकारी निर्माण विभाग के एक चिट्ठी बाद ब्रेक डांस करने लगे हैं। करें भी क्यों न इस राशि पर जनपद के अधिकारियों का एकाधिकार जो रहा है। खबरीलाल की माने तो कंटेंजेन्सी की राशि का अगर ठीक से कैल्कुलेशन हो तो हर एक जनपदों का ये राशि करोड़ों में होगी।

आकस्मिक ब्यय की राशि को हर निर्माण कार्य के प्राक्कलन यानी एस्टीमेट में जोड़ा जाता है। मतलब साफ है अरबों के काम में करोड़ नहीं तो लाखों का आंकड़ा तो होगा ही। इस राशि को इसलिए जोड़ा जाता है ताकि ग्रामीण अंचल में होने वाले कार्यों के लिए पेपर वर्क के साथ अन्य खर्चे मेंटेन हो सके। लेकिन यहां तो एस्टीमेट तैयार करने वाले विभाग को ये राशि न मिलाकर जनपद के अधिकारी ही अपने सुविधा अनुसार खर्च कर लेते हैं।

मतलब काम किसी और का और दाम किसी को! वैसे देखा जाए तो ग्रामीण अंचलों के समुचित विकास के लिए पंचायतों में कई योजनाएं संचालित हैं। इस योजनाओं के लिए स्वीकृत राशि में आकस्मिक ब्यय को लेकर पहली बार चिट्ठी लिखी गई है। चिट्ठी में आकस्मिक ब्यय की राशि को वापस करने को कहा गया है। आकस्मिक ब्यय की राशि से लग्जरी वाहन की सवारी करने वाले अधिकारियों से रकम वापस करने की मांग की गई है तो अफसरों में ब्रेक डांस तो शुरू होगा ही!

बिजली के लिए कोयला और ‘आप’ का पौधा

सूबे में आज विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है। लेकिन, विश्व पर्यावरण दिवस पर भी हसदेव में काटे जा रहे जंगल की चिंता राजनीति की दुकान नहीं दिखी। कल बस्तर में सीएम ने कहा दिया है बिजली के लिए कोयला जरूरी जो लोग कोयला उत्खनन का विरोध कर रहे हैं वो पहले अपने घरों की बिजली बंद कर दें फिर विरोध करें। वहां जितने पेड़ काटे जाएंगे उससे ज्यादा लगाए जाएंगे…यानि वो छत्तीसगढ़ की नहीं राजस्थान के चिंता कर रहे ​थे।

विरोध की बात आई तो चुनाव के पहले मौका की तलाश में लगी आम आदमी पार्टी के नेता झाडू छाप टोपी लेकर कांग्रेस को टोपी पहनाने निकले पड़े। राजधानी रायपुर में आज आप नेता हाथों में पौधा लिए विधायकों के घरों के आगे डेरा सजा लिया…और उनसे जवाब मांगते दिखे।

अब कोई उनको कैसे समझाए कि बिजली के लिए कोयला तो जरूरी है सांस लेने के लिए हवा भी जरूरी है….और हवा के लिए जंगलों का होना। बेहतर तो यही होता की आम आदमी पार्टी आज गमलों में राजनीति का जंगल उगाने के बजाए जहां पेड़ काटे गए हैं वहां कुछ पौधों को रौंप देती। इससे जंगल भी बच जाते और उनकी दुकान भी….।

ये क्या सरकारी दुकान की शराब हैं जो चढ़ नहीं रही…

शराब पीने वाले इन दिनों परेशान हैं। उनकी परेशानियों की लंबी फेहरिस्त है और पीने वालों का आरोप है कि यह सब कुछ शराब माफियाओं की वजह से हो रहा है।
असल में जब से सरकार ने खुद ही शराब बेच रही है तब से शराब दुकान में न तो ब्रांडेड शराब मिल रही है और जो मिल रही है वो चढ़ भी नहीं रही। अब कोई खर्चा भी करे और चढ़े भी न… ये तो गलत बात है।

ये पहली दफा नहीं है जो इस तरह की ब्रांड और वाइन की क्वालिटी पर सवाल उठ रहा है, इससे पहले भी इस तरह की शिकायतें मिलती रही हैं। अब अधिकारी करें तो करें क्या शराब सप्लाई में उनका वश तो है नहीं, जो सप्लाई हो रही है उसी में अपना हिस्सा निकालना है। ऐसे में पीने वाले नशा चढ़े या न चढ़े, अपना काम बनता तो परेशान रहे जनता!

कहा तो यह भी जा रहा है कि शराब के इस खेल में एक बड़े साहब को कलेक्शन की वजह से विभाग का कप्तान बनाया गया है। मतलब साफ है जो शराब माफियाओं के हिसाब काम करेगा उसे जल्दी मुकाम मिलेगा।

नए लाइन में और पुराने खेल में…

पुलिस महकमा के नए निरीक्षक लाइन में बैठकर थाना पोस्टिंग के लिए बैटिंग में लगे हैं तो पुराने अधिकारी थाना चौकियों में बैठकर चौका छक्का जड़ रहे हैं। खबर तो ये भी है कि जो दो बड़े थाना के थानेदार लाइन अटैच हुए हैं वे अब पोस्टिंग के लिए हड़बड़ा रहे हैं।

हालांकि उनकी पोस्टिंग अभी संभव नहीं है फिर भी प्रयास तो बनता है। वैसे जिले में चार नए निरीक्षक की पोस्टिंग हुई है, जिसमें से तीन ने आमद देकर लाइन में बैठे हैं। वे भी ठीक ठाक यानी कुछ नाम और कुछ काम और कुछ दाम वाले थाने में थानेदारी करना चाहते हैं, लेकिन पिछले दिनों विभाग की हुई बदनामी के बाद अब विभाग के मुखिया फूंक फूंक कर कदम रख रहे हैं। जिससे किसी तरह की कोई चूक न हो जाए और पुलिस के कार्यों को लेकर सवाल उठे।

सही भी है जब समय साथ नहीं हो तो चुप रहने में ही बुद्धिमानी है। खैर कोरबा के माटी की तासीर ही ऐसी है कि जो एक बार कोरबा आता हो वो बार बार आना चाहता है। इन सबके बीच खाकी की निगाहें जिला पुलिस कार्यालय के ट्रांसफर लिस्ट पर टिकी हैं और विभाग के जानकार कह रहे हैं कि ट्रांसफर लिस्ट को अपने फायदे के हिसाब से कौन जारी करा पाता है।

✍🏻 अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा