एकनाथ शिंदे ने शिवसेना पर दावा तो ठोक दिया लेकिन आसान नहीं है पार्टी पर अधिकार पाना, जानें किन कानूनी अड़चनों का करना पड़ेगा सामना

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शिवसेना के बागी विधायकों ने गुवाहाटी के फाइव स्टार होटल में मीटिंग कर एकनाथ शिंदे को अपना नेता चुन लिया है। इस मौके पर बागी विधायकों ने शिंदे को अपना समर्थन दिया, इसके साथ ही उनके नाम पर उन्हें कोई भी निर्णय लेने की छूट भी दी। मीटिंग के दौरान शिंदे ने बागी विधायकों को संबोधित भी किया।

शिंदे खेमे के सूत्र ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि हम उत्साहित हैं। हर कदम विचार विमर्श के बाद ही उठाया जा रहा है। हम प्रत्येक निर्णय के बारे में जानते हैं। एक बागी वरिष्ठ विधायक ने कहा कि शिंदे ने हम सभी को आश्वस्त किया है कि हम ही असली शिवसेना बनने जा रहे हैं।

विधायकों को दिए अपने संबोधन में शिंदे ने किसी भी पार्टी का नाम लिए बिना कहा, “एक राष्ट्रीय पार्टी हमारे साथ है, जिसने पाकिस्तान से सीधे मुकाबला किया था। उसने हमारे मुद्दे पर समर्थन जताया है।”

शिंदे गुट की ओर से दलबदल विरोधी कानून से बचने के लिए विधायकों की आवश्यक संख्या को जुटा लिया है। हालांकि उन्हें असली शिवसेना बनने के लिए कई कानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ेगा। वहीं, इस मुद्दे पर राज्य सचिवालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि दल बदल विरोधी कानून के तहत अलग समूह बनाने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होती है और इसके लिए उन्हें सदन में डिप्टी स्पीकर के सामने अपनी इस ताकत को दिखाना होगा।

शिंदे को एक अलग पार्टी बनाने के लिए कम से कम 37 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता होगी। इसके साथ ही उन्हें चुनाव आयोग में एक आवेदन ही दाखिल करना होगा और फिर इसके बाद चुनाव आयोग की तरफ से उनको चुनाव चिन्ह आदि प्रदान किया जाएगा। हालांकि सूत्रों का कहना है कि शिंदे शिवसेना पार्टी और उनके चुनाव चिन्ह तीर धनुष पर दावा कर सकते हैं।
शिंदे की ओर से शिवसेना पर दावा ठोकने को लेकर सूत्रों का कहना है कि शिंदे को शिवसेना का चुनाव चिन्ह तीर कमान लेने के लिए कई कानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ेगा। उन्हें निर्वाचित सदस्यों में ही विभाजन नहीं बल्कि पार्टी के पदाधिकारियों में भी विभाजन को सुनिश्चित करना होगा। ठाकरे खेमे ने शिंदे को पहले ही शिवसेना विधायक दल के नेता के पद से हटा दिया है। महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल ने भी अजय चौधरी को शिंदे की जगह सदन में शिवसेना समूह के नेता के रूप में नियुक्त करने को मंजूरी दे दी है।

शिंदे ने जिरवाल को लिखे एक पत्र में उनके निष्कासन का विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि पद से उनका निष्कासन अमान्य था, क्योंकि जिस बैठक में चौधरी को नियुक्त किया गया था, उसमें केवल 15 से 16 सदस्यों ने भाग लिया था। उन्होंने पत्र में आगे कहा कि वह सुनील प्रभु को भरत गोगावले की जगह शिवसेना विधायक दल का मुख्य सचेतक नियुक्त कर रहे हैं। विधानसभा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पत्र को लेकर कहा, “हमें शिंदे की ओर से ऐसा कोई भी पत्र नहीं मिला है।” भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि कुछ कानूनी अड़चनों का जरूर सामना करना पड़ सकता है। इसमें कुछ समय भी लग सकता है लेकिन महा विकास आघाड़ी सरकार का पतन बिल्कुल निश्चित है।