लागी छूटे न… अब तो,डीएमएफ के काम और ..चावल पर फूड इंस्पेक्टर,बेवजह उदासी का…काफिला देख पुराने…

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लागी छूटे न… अब तो…

काली टोपी लाल रुमाल फिल्म- का लता मंगेश्कर का गाया वो गीत “लागी छूटे न अब तो सनम” पुलिस महकमा पर फिट बैठ रहा हैं। दरअसल कोयले की खान से निकलने वाले काला हीरा और ध्रुव स्वर्ण के कारोबार से मलाई खा चुके अधिकारियों का ट्रांसफर के बाद भी लागी नहीं छूट रही है। खबरीलाल की मानें तो ध्रुव स्वर्ण के कारोबार को संचालित करने के लिए फिर से मोहरे फिट किए जा रहे हैं।

कहा तो यह भी जा रहा है कि एसईसीएल कुसमुंडा में अवैध धंधा को संचालित करने वाले साहब अपने पुराने गुर्गे को आगे बढ़ा रहे हैं। जिससे आने वाले समय में कोयला के कारोबार में भी कब्जा जमाया जा सकें। पूर्व कार्यकाल में विभाग को अपनी उंगली पर नचाने वाले कर्मचारी अवैध कारोबार को संचालित करने की प्लानिंग कर रहे हैं। हालांकि नए साहब के सख्त तेवर से अवैध कारोबारियों के तोते जरूर उड़े हैं जिससे पुराने कामों को शुरू करना आसान नहीं होगा पर जानकारों की माने तो नामुमकिन भी नही हैं।

खैर जिस अंदाज में मोहरे फिट किए जा रहे हैं उससे हर कोई मात खाता नजर आ रहा हैं। फिलहाल इस कारोबार को समझने वालों की नजर अब इस बात पर टिकी है कि ध्रुव स्वर्ण के कारोबार शुरू होगा तो सुपर…. का कब्जा रहेगा या किसी और का..!

डीएमएफ के काम और …

यूं तो कोरबा जिले के लिए खनिज न्यास मद की राशि किसी लॉटरी से कम नहीं है। इसके बाद भी ग्रामीण विकास की बाट जोह रहे है और अधिकारी और जनप्रतिनिधि अपने हिसाब से विकास की गाथा लिखते रहे हैं। हालांकि इसमें कोयला के डस्ट खा रहे खदान प्रभावितों का तो भला नहीं हो रहा ,पर जिले के मलाईदार अधिकारियों का विकास जरूर हो जाता है।

खबरीलाल की माने तो भाजपा सरकार के कार्यकाल में यानी 17 -18 में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए जो बुनियादी कार्य स्वीकृत हुए थे वे भी अधूरे पड़े हुए हैं। नए अधिकारी आते हैं तो पुराने की बात भुलाकर नए की बात करते हैं। मतलब आगे पाट पीछे सपाट ।

डीएमएफ के अधिकांश कामों में स्वकृति और प्रथम किश्त जारी होने तक जवाबदेहों की जिम्मेदारी रहती है। उसके बाद अग्रिम जारी होते ही अपना काम बनता तो …. में जाए जनता ! , कहते हुए विकास कार्यों से एक दूसरे पर मॉनिटरिंग एजेंसी दोषारोपण करते रहती है। खामियाजा ये मिला कि जो काम के लिए फाइल चली वो फाइल में सिमट कर सिमट गई या राशि के अभाव में आधे-अधुरे हो गए। कहा तो यह भी जा रहा है कि पंचायतों में स्वीकृत कार्य आधे अधूरे पड़े हैं। यही नहीं कई ऐसे पंचायत हैं जो 40 प्रतिशत अग्रिम राशि लेकर कार्य शुरू भी नहीं कर सकें। हां ऐसे पंचायतों में बड़े साहबों की मेहरबानी जरूर है जो जानते हुए भी अनजान बनकर बैठे हैं।

अब बात जनप्रतिनिधियों की तो वे भी इस खेल में बराबर के भागीदारी हैं। क्षेत्र के विकास प्लान अधिकारियों को यही सुझाते हैं और ये भी बताते हैं कि इस काम में बचत इतना और…. हिस्सा..!

 

चावल के अवैध करोबार और फूड इंस्पेक्टर…

गरीबों को मिलने वाले चावल के अवैध कारोबार में फूड इंस्पेक्टर हिस्सेदार बनते दिख रहे हैं। खबरीलाल की खबर में तो शहरी क्षेत्र के राशन दुकानों से महीने में करोड़ों का अवैध कारोबार हो रहा है। चावल की अफरा तफरी की शिकायत खुद पूर्व गृहमंत्री भी कर चुके हैं, पर इस कारोबार पर कोई असर इसलिए नहीं पड़ रहा है क्योंकि फूड इंस्पेक्टर सोसायटी संचालकों के पार्टनर बनकर काम कर रहे हैं। तभी तो शिकायत की सुगबुगाहट की खबर मिलते ही खाद्य निरीक्षक दुकानदारों को सतर्क रहकर मॉल निकालने की हिदायत देते हैं। जिससे बंधा बंधाया सेटिंग न बिगड़े और अपना हिस्सा तयशुदा तारीख पर मिलता रहे।

चर्चा तो यह भी है कि शहर में अधिकांश दुकानों के संचालक गरीबों का चावल बेचकर अपना महल खड़ा कर रहे हैं। सरकारी चावल को बेचने के मामले में इन संचालकों पर लाखों की वसूली के लिए नोटिस जारी भी किया गया है। हां ये बात अलग है कि समय समय पर होने वाली जांच यानी सत्यापन और नियमित मॉनिटरिंग के अभाव में दुकान संचालकों का अवैध कारोबार फल फूल रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि गरीबों के जिस चावल के लिए व्याापारी हाय तौबा करते हैं वे भी इस कारोबार से मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। वैसे इस बात की चर्चा भी खूब है शहर के धन्ना सेठों ने एक के बाद एक राइसमिल लगाकर कर गरीबों के चावल से अपने विकास को नई दिशा दे रहे हैं।

 

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी लोग बेवजह उदासी का…..

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी लोग बेवजह उदासी का सबब ..मशहूर गजल गायक के म्‍यूजिक एलबम की ये गजल उस जमाने में भी हिट थी और आज भी हिट है। जब बात निकल ही गई है तो आपको भी बताए देते हैं…..कि वाकया क्‍या हुआ। दरअसल छत्‍तीसगढ़ के सरकारी मुलाजिम सप्‍ताह भर से कलमबंद हड़ताल पर हैं…..वो समझौते के लिए तैयार नहीं हैं और ना ही सरकार उनकी मांगे मानने के लिए। प्रदेश मुखिया भी कह चुके हैं कर्मचारियों की मनमानी नहीं चलेगी सरकार अपना काम करेगी….बात यहीं तक निकली होती तो उदासी का सबब कोई नहीं पूछता लेकिन जब बात दूर तलक निकल जाए तो हर कोई पूछेगा। छत्‍तीसगढ़ में यही हुआ।
दरअसल एक दिन पहले अपनी मांगों को लेकर कुछ हड़ताली नेता प्रदेश के एक बड़े मंत्री से मिलने पहुंचे थे, अपनी मांग उनके सामने रख दी। मंत्री जी ने साफ कह दिया सरकार के पास पैसा नहीं है महंगाई भत्‍ता कहां से दें बस इतनी सी बात निकली कि वो दूर तलक पहुंच गई। बात विपक्ष के कानों तक पहुंची और बात का बतंगड़ बन गया। पूर्व मुख्‍यमंत्री ने पूरी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। मंत्री जी को भी उम्‍मीद नहीं थी कि बात इतनी दूर तलक तक पहुंच जाएगी कि रायपुर से दिल्‍ली तक कोहराम मच जाएगा। और जब बात निकल ही गई तो तब मंत्री जी को सफाई तक देना पड़ा। ये तो रही सरकार की बात मगर बात अभी खत्‍म नहीं हुई है……लोग पूछ रहे हैं इस सफाई का…सबब ?

 

काफिला देख पुराने दिन हुए ताजा…

अवसर था सार्वजनिक उपक्रम के निरीक्षण का, जब नेता जी का काफिला गुजरा तो लगा की सही में कोई जनाधार वाला नेता आया है। असल में पुराने दौर में नेता मतलबी कम होते थे जिसकी वजह से कार्यकर्ता भी निस्वार्थ भाव से मिलने चले आते थे। समय का पहिया घुमा और अब बिना काम के न नेता कार्यकर्ता को याद करते हैं और न कार्यकर्ता नेता को!

लेकिन, पिछले दिनों सीएसईबी के संयंत्रों का निरीक्षण कर रहे नेता जी के पीछे लगी सैकड़ों गाड़ियों ने साबित कर दिया कि अभी भी जनाधार वाले नेता हैं जिनके आने की खबर से ही सारा शहर जुड़ जाता हैं। उनका वही पुराना अंदाज और चित्त परिचित लहजे में बातें सुनकर लगा कि समय के पहिये के साथ हम तो बदले पर वे वही हैं। आज भी लोगों को अपनेपन का अहसास करा गए। हां ये भी हैं उनके जिले में कदम रखने भर से लोगों को रोजगार और विकास की आस जग गई है।

                  🖊️अनिल द्विवेदी, ईश्वर चंद्रा