Bulldozer and Bulldozer: आठ का रेत घाट, तस्करों के बड़े ठाठ,नदी उस पार…नेता जी..लोहे में टाटा और बाबू साहब नाटा,चुनावी साल और अफसर..

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आठ का रेत घाट, तस्करों के बड़े ठाठ

सफेद सोना के नाम से मशहूर रेत की मारामारी के बीच आठ पेटी के रेत घाट की चर्चा सुर्खियां बटोर रही है। तस्कर अब तो यह भी कहने लगे हैं आठ दे रहे है तो ठाठ तो रहेगा साहेब..! दरअसल वैध रेत घाट शुरू न होने से अवैध रेत तस्करों के हौसले बढ़ गए हैं। जब तस्कर तस्करी का तोड़ निकालने लगे हैं तो अफसरो में भी माल बटोरने की होड़ लग गई । यही से शुरू हुआ आपसी सहमति यानी कंडीशनल एग्रीमेंट का खेला..!

सूत्रों की माने तो बरबसपुर में एक रेत कारोबारी ने भंडारण का लाइसेंस लिया और रात को नदी से अवैध रेत निकालकर भंडारण करना शुरू किया। तो बहती गंगा में हाथ धोने अफसरों ने भी मंथली पैकेज की डिमांड कर आपसी डील कर अवैध धंधे को धार दे दी। यही हाल राताखार और बरमपुर का है। यहां भी आठ पेटी की बोली लगने की खबर उड़ रही है. .!

मतलब शहर में रेत से तेल निकालने का खेल उसी तरह से चल रहा जैसे शादी होने के पहले ही दामाद होने का दावा..! हरकत तो ससुराल आकर माल बटोरने जैसा है। इस खेल में खाकी और खादी दोनों साथ साथ विकास कर रहे हैं..! कहा तो यह भी जा रहा है जब अवैध रेत घाट से सोने के सिक्के निकल रहे हैं तो वैध रेत घाट शुरू करने की जरूरत ही क्यूं…!

नदी उस पार…नेता जी

शतरंज के खेल में अगर बाजी जीतना है तो राजा को सेफ करना पड़ता है। ठीक राजनीति के खेल में भी नदी उस पार के नेता को बचाने सेनापति ने सरेंडर कर “अमर की जीत ” सुनिश्चित करने की चाल चल दी है। शह मात का इस खेल में पब्लिक को नेता यानी राजा की गिरफ्तारी का बेसब्री से इंतजार है।

कोयला की काली कमाई और वर्चस्व की लड़ाई के लिए खदान में हुए खूनी संघर्ष के बाद नेताजी फरार हैं। कहा जा रहा है कि कोल ट्रांसपोर्टर को बचाने के लिए सत्ता पक्ष का पूरा कुनबा पूरा जोर लगा दिया। लेकिन, सिंघम कप्तान के आगे उनके दबाव और प्रभाव काम न आया ।

अब उन्हें भी अहसास होने लगा कि बचना है तो सरेंडर तो करना पड़ेगा। सलाहकारों के सलाह के बाद उनके सेनापति यानी मारपीट के मुख्य आरोपी ने हार मानते हुए सरेंडर कर दिया। अब नदी उस पार के फरार नेता की अगली चाल पर सबकी निगहें टिकी हुई हैं। पब्लिक की नजर तो पुलिस की कार्रवाई पर भी टिकी है और कह रहे हैं अब क्या नेता होगा गिरफ्तार ..! वैसे कवि की ये लाइन ” आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है…! कोल माइंस के रॉकी स्टाइल वाले नेता जी पर फिट बैठता है।

दरअसल दौलत की दौड़ में ये इतने आगे निकल गए हैं कि आज वे खुद उलझ गए हैं। खदान में हुए वर्चस्व की लड़ाई में नुकसान नेताजी को ही हुआ है। पुलिस में मामला दर्ज होने के बाद से नेताजी गायब हैं लेकिन, उनके सेनापति जरूर गिरफ्तार हुए हैं। पुलिस विभाग के पंडितों की माने तो रॉकी स्टार की गिरफ्तारी भी जल्द होने की संभावना है।

लोहे में टाटा और बाबू साहब नाटा

कहते है लोहे में टाटा , चप्पल में बाटा और हाइट में नाटा का कोई तोड़ नहीं है। ये लाइन ट्राइबल के नाटे बाबू साहब पर फिट बैठती है। बाबू साहब अब तक मेल अधिकारियों के नाक में नकेल कस उन्हें अपने इशारे पर भारतनाट्यम कराते रहे हैं। उनके झांसे में आने के बाद अधिकारी वही देखता है जो वो दिखाना चाहता है।

कायदे को ताक में रखकर अपने फायदे के लिए पटकथा लिखना उनका पुराना शौक है। मतलब उनके दस्तावेजी जुर्म की दुनिया में इंट्री करना तो आसान है लेकिन, निकलना असम्भव माना जाता है। अब तक विभाग में जो भी अधिकारी पदस्थ रहे उनकी पिछली हिस्ट्री खंगाले तो सभी लोचा लफड़ा और जलेबी फाफड़ा वाले कामों में नाटे बाबू साहब का हाथ ही नही बराबर का साथ रहा है।

हां ये बात अलग है जब भी दस्तावेजी प्रमाण में फंसे तो सिर्फ अधिकारी ही.. क्योंकि नाटे बाबू एक राग अलाप देते है मैं क्या करूंगा जैसा बड़े साहब ने कहा वैसा मैंने किया.. आदि आदि का डायलॉग देकर अपने आप को कागजी फ्राड से बाहर रखने का प्रयास करते हैं।

कहा तो यह भी जा रहा है कि सीएसआर के टेंडर में विवाद बढ़ा तो साहेब ने उसका भी तोड़ निकालते हुए आत्मानन्द स्कूलों का निर्माण का नाम ग्राम पंचायत को और बाकी काम ठेकेदारों को सौंप दिया। जबकि जानकारों की माने तो आत्मानन्द स्कूल की निर्माण एजेंसी पंचायत को नहीं बनाया जा सकता। इसके बाद भी पंचायत को एजेंसी बनाकर बड़े साहब के कलम को गर्दन तक फंसा दिया.. मतलब अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए बाबू साहेब किसी हद तक जाने में कोई संकोच नही करते..!

बैला गाड़ी और बुलडोजर

जापान की कंस्ट्रक्शन मशीनरी कंपनी Hitachi के साथ मिलकर Tata Telcon ने जब से बुलडोजर क्या बनाना शुरु किया देश में जिधर देखो, बस बुलडोजर की बात चल रही है। चुनाव से पहले उत्तरप्रदेश की बुलडोजर पॉलिटिक्स का असर छत्तीसगढ़ में भी दिखाई देने लगा है।

चुनाव से ठीक पहले बिरनपुर की घटना से बुलडोजर पॉलिटिक्स को और बूस्ट मिल गया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और बीजेपी के बीच जुबानी बुलडोजर अपना पावर दिखा रहे हैं। पहले बुलडोजर की ये लड़ाई सीएम और बीजेपी अध्यक्ष अरुण साव के बीच शुरु हुई अब इस लड़ाई में अपना बुलडोजर लेकर पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और मंत्री अमरजीत भगत भी कूद पड़े हैं।

अगर इसी तरह एक के बाद बुलडोजर आते रहे तो पॉलिटिक्स की सड़क पर बुलडोजर ही बुलडोजर नजर आने लगेंगे। छत्तीसगढ़ शांति का टापू है और यहां बुलडोजर नहीं बैलागाड़ी वाली पॉलिटिक्स से ही काम होता आया है। बैलागाड़ी सुरक्षित भी है और छत्तीसगढ़ की पहचान भी।

यहां के लोग शांतिप्रिय है। छत्त्तीसगढ़ की पॉलिटिक्स को बैलागाड़ी की तरह ही हांका जाए तो ये सूकून से चलती रहेगी। अगर इसे बुलडोजर पॉलिटिक्स से जोता गया तो फिर शांति के टापू को यूपी बनते देर नहीं लगेगी। जो कहीं से शुभ संकेत तो नहीं हो सकता।

चुनावी साल और अफसर

छतीसगढ़ में करीब 6 महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं और चलन के मुताबिक चुनाव से पहले हर सरकार अपने अपने हिसाब से बड़ी प्रशासनिक सर्जरी करती है। यह सर्जरी उन अफसरों पर की जाती है जो चुनाव कराने में माहिर माने जाते हैं। खबर है कि कलेक्टर और एसपी के एक तबादला लिस्ट इसी सप्ताह या मई के पहले वीक में किसी भी वक्त निकलने वाली है।

इस खबर के बाद मलाईदार जिलों में जमे कलेक्टर और एसपी की धड़कनें बढ़नी ही है। जो अफसर कभी अपने फोन पर व्हाट्सएप आन ही नहीं करते थे वो व्हाट्सएप पर मैसेज देखकर ही चौंक जाते हैं। आईएएस और आईपीएस अब अपने व्हाट्सएप ग्रुप पर हर समय आनलाइन दिखने लगे हैं, पता नहीं कब लिस्ट आ आए….और उन्हें अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ा जाए।

अफसरों के व्हाट्सएप ग्रुप में इस बात की चैटिंग बढ़ गई है कि कौन किस जिले में जा रहा और किसकी छुट्टी हो रही है.। इस व्हाट्सएप चैटिंग से घोटालों की जांच करने आए ईडी के अफसर भी परेशान हैं…कहां आए थे घोटालों की जांच करने यहां तबादला लिस्ट पीछे पड़ गई है। तो आला सरकार परेशान मत हो लिस्ट तैयार बस मैसेज का इंतजार कीजिए।

    ✍️अनिल द्विवेदी , ईश्वर चन्द्रा