✍️ नरेन्द्र मेहता, कोरबा
कोरबा: कटघोरा को जिला बनाने का वादा ना तो कांग्रेस और ना ही भाजपा ने पूरा किया.15 साल भाजपा सत्ता में रही और अभी कांग्रेस के सत्ता में रहने के 5 साल पूरे होने वाले हैं.इस मुद्दे का कितना असर कटघोरा विधानसभा चुनाव 2023 में होगा कुछ कहा नहीं जा सकता.छले गए मतदाताओ की नजर में कांग्रेस और भाजपा एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं।
दरअसल समाचार की शुरुआत कटघोरा को जिला बनाने के मुद्दे से इसलिए करनी पड़ी. क्योंकि चुनावी रण में यह प्रमुख मुद्दा होगा और कांग्रेस-भाजपा इस पर ही आरोप प्रत्यारोप करते दिखेंगे.
कटघोरा विधानसभा सीट भले ही सामान्य सीट हैं. लेकिन यहां पर आदिवासी उम्मीदवारो का अच्छा खासा दबदबा हैं. यहां पर करीब 70 प्रतिशत सामान्य और पिछड़ा वर्ग के मतदाता हैं तो करीब 30 प्रतिशत मतदाता आदिवासी समाज के हैं. यही 30 प्रतिशत मतदाता हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं. कटघोरा सीट का बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्र से घिरा हुआ हैं और यहां के करीब 60 प्रतिशत भूभाग में कोयला खदानें हैं.कोयला खदानों से अरबों का राजस्व भी सरकार को मिलता हैं. इसके बावजूद भी यहां विकास जिस गति से होना था नहीं हो पाया.यहां सबसे बड़ी समस्या भुविस्थापन की हैं.साऊथ ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड (एसईसीएल)ने कोयला खदानों के लिए अधिकृत की गई जमीन पर पुनर्वास नीति से बड़ी संख्या में किसान खुश नहीं हैं. कई लोगो को उचित मुआवजा तक नहीं मिल सका हैं. इस मुद्दे को लेकर आक्रोशित भूविस्थापित किसानों का संघर्ष जारी हैं. क्योंकि यहां इन्हें ना बेहतर विस्थापन मिला हैं और ना वादे के मुताबिक नोकरी मिली.कहने को यहां कोयला खदानें ओर उद्योग हैं लेकिन स्थानीय लोगों को रोजगार के लिए आज भी इधर उधर भटकना पड़ रहा हैं. पेयजल की समस्या यहां बनी हुई हैं, स्वास्थ्य सुविधाएं भी बेहतर नहीं हैं वजह हैं कि मरीजो को जिला मुख्यालय आना पड़ता हैं.देखा जाए तो संसाधन होने के बावजूद कटघोरा बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।
पिछले दिनों भुविस्थापित किसानों ने एसईसीएल की वादा खिलाफी से तंग आकर अपनी 14 सूत्री मांग को लेकर क्लेट्रेट कोरबा का घेराव भी कर दिया था.प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत है.भुविस्थापित किसानों की चुनाव में भूमिका क्या होगी यह पहेली फिलहाल बनी हुई हैं दरअसर अपने आंदोलन से भुविस्थापितो ने कांग्रेस और भाजपा के नेताओ को दूर ही रखा हैं.
कटघोरा सीट से कांग्रेस के मौजूदा विधायक पुरुषोत्तम कंवर सशक्त दावेदार हैं और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की गुडबुक में भी उनका नाम हैं इसलिए संभावना कम है कि उनकी टिकट काटकर किसी दूसरे को टिकट दी जाएगी. टिकट के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त पुरुषोत्तम लगातार अपने क्षेत्र में चुनावी जनसंपर्क में जुटे हुए हैं. मतलब साफ है कि पुरुषोत्तम को कांग्रेस हाईकमान से इशारा मिल गया हैं कि चुनाव उन्हें ही लड़ना हैं. वैसे कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश परसाई ,अजय जायसवाल, मदन राठौड़, नरेश देवांगन, प्रशांत मिश्रा ने भी इस सीट से दावेदारी की हैं,इन्हें उलट फेर होने की पूरी संभावना लगती हैं और कांग्रेस उम्मीदवारो की अधिकृत सूची जारी होने तक यह टिकट के लिए गुणाभाग में जुटे हुये हैं.दूसरी तरफ़ कटघोरा में भाजपा टिकट के दावेदार कांग्रेस से ज्यादा है. काफी विचार मंथन के बाद अब तीन नाम प्रेमचंद पटेल,विकास महतो और केदारनाथ अग्रवाल की सर्वाधिक चर्चा हैं इनमें से किसी एक को टिकट मिल सकती हैं. भाजपा के भरोसे मंद सूत्रों का तो यह कहना हैं कि यहां से किसी महिला को टिकट दी जाएगी.
आदिवासी बाहुल्य कटघोरा सीट पर सबसे ज्यादा समय तक कांग्रेस का दबदबा रहा हैं. सीट पर सबसे ज्यादा 6 बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड छतीसगढ़ के गांधी कहे जाने वाले आदिवासी नेता बोधराम कंवर के नाम हैं.6 बार में से एकबार 1972 में वे निर्दलीय चुने गए.इसके बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए औऱ हर बार चुनाव जीतते रहे.लेकिन 2013 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने कोरबा निगम में महापौर रह चुके लखनलाल देवांगन को मैदान में उतारा इस चुनाव में 6 बार के विजेता बोधराम कंवर चुनाव हार गए.हार का मुख्य कारण आदिवासी समाज की किसी बात को लेकर नाराजगी बताई गई. हार के बाद बोधराम कंवर और समाज के वरिष्ठ जनों को यह एहसास हुआ कि उनका निर्णय गलत था क्योंकि चुनाव जीतने के बाद लखनलाल देवांगन ने आदिवासी समाज से दूरी बना ली.वहीं बोधराम कंवर व उनके पुत्र पुरुषोत्तम कंवर ने फिर से समाज के लोगो का मन जीत लिया. जिसका नतीजा यह हुआ कि 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने बोधराम कंवर की जगह उनके बेटे पुरुषोत्तम कंवर को टिकट दिया.पुरुषोत्तम ने अपने पिता की हार का बदला ले लिया. लखनलाल देवांगन करीब 11511 वोट से चुनाव हार गये।यहां मुकाबला त्रिकोण था.कांग्रेस के पुरुषोत्तम कंवर को चुनाव में 59,227 वोट मिले तो भाजपा के लखनलाल देवांगन को 47,716 वोट मिले.जनता कांग्रेस(जोगी) के उम्मीदवार गोविंद सिंह राजपूत के खाते में 30,509 वोट आये.कुल 1,97,527 मतदाता थे जिसमें से 1,51,128 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था वोट का प्रतिशत 70.0%रहा नोटा के पक्ष में 2,867 वोट डाले गए।
यदि आज हम जोगी कांग्रेस की बात करते हैं तो अब पहले जैसी पकड़ जनता में पार्टी की नहीं रही .इसलिए 2023 का चुनाव यहां कांग्रेस और भाजपा के बीच होना तय है.
कटघोरा विधानसभा का इतिहास
कटघोरा विधानसभा के इतिहास पर नजर डाले तो यह सीट परंपरागत रूप से कांग्रेस का गढ़ हैं.विधानसभा चुनाव 1962 से 2018 तक कुल 13 चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस 9 बार तथा भाजपा 3 बार चुनाव जीतने में कामयाब रही. आदिवासी नेता बोधराम कंवर पहली बार 1972 में निर्दलीय विधायक चुने गए.फिर कांग्रेस प्रवेश कर लिया. देशव्यापी कांग्रेस विरोधी लहर के दौरान भी 1977 में वे चुने गए.बोधराम कंवर के नाम 7 बार विधानसभा चुनाव जीतने और विधायक बनने का रिकॉर्ड दर्ज हैं. कटघोरा से 6 बार और तानाख़ार से 1बार.इस प्रकार 6 बार कटघोरा विधानसभा से चुनाव जीतने का रिकार्ड उनके नाम दर्ज हैं. कटघोरा सीट से पहली बार 1990 मे बोधराम कंवर की कांग्रेस की टिकट काट दी और गैर आदिवासी व पिछड़ा वर्ग के कांग्रेस ने कृष्णा लाल जायसवाल (गुरु जी) को चुनाव मैदान में उतारा.त्रिकोणी मुकाबले में कांग्रेस के कृष्णलाल जायसवाल चुनाव जीत गए.गुरुजी को 21719 वोट मिले वहां इनके प्रतिद्वंद्वी रहे जनता दल (जेडी)के मूरित राम साहू को 16626 और निर्दलीय केदारनाथ अग्रवाल को 16152 वोट से संतुष्ट होना पड़ा.1993 में फिर एक बार कांग्रेस ने कृष्णा लाल जायसवाल को टिकट दी.इस चुनाव में उनके प्रतिद्वंद्वी भाजपा के बनवारीलाल अग्रवाल ने चुनाव जीता औऱ पहली बार भाजपा का परचम यहां लहराया.बनवारी लाल अग्रवाल(भाजपा) को 44,780,कृष्णा लाल जायसवाल (कांग्रेस) को 37,374 और डॉ जयपाल सींग (बसपा)को 13,482 वोट मिले थे.इस प्रकार कांग्रेस ने 1998 के चुनाव में गैर आदिवासी नेता जयसिंह अग्रवाल को टिकट दी किन्तु वे भाजपा के बनवारी लाल अग्रवाल से चुवाव हार गये. बनवारी लाल अग्रवाल को 52,367,जयसिंह अग्रवाल को 38,272 और केदारनाथ अग्रवाल को 14,099 वोट मिले.यह पहला चुनाव था कि तीन अग्रवाल चुनावी रण में उतरे थे.
1962 से 2018 तक के विधायकों की सूची
1: 1962 -रूद्रशरण प्रताप सिंह (कांग्रेस)
2: 1967 – नोबत राम (कांग्रेस)
3: 1972 – बोधराम कंवर (निर्दलीय)
4: 1977 – बोधराम कंवर (कांग्रेस)
5: 1980 -बोधराम कंवर (कांग्रेस)
6: 1985 -बोधराम कंवर (कांग्रेस)
7: 1990 -कृष्णालाल जायसवाल (कांग्रेस)
8: 1993 – बनवारी लाल अग्रवाल (भाजपा)
9: 1998 -बनवारी लाल अग्रवाल (भाजपा)
10: 2003 -बोधराम कंवर (कांग्रेस)
11: 2008 -बोधराम कंवर (कांग्रेस)
12: 2013 -लखनलाल देवांगन (भाजपा)
13: 2018 -पुरुषोत्तम कंवर (कांग्रेस)