BJP के प्रेम पर भारी पड़ रहे पुरुषोत्तम के परमार्थ, पंजा के मजबूत पकड़ से बिगड़ा कमल का कमाल..

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कोरबा। कटघोरा की सीट पर कमल की कामयाबी का आंकड़ा कम और कांग्रेसी जीत का ग्राफ हमेशा से अलग पायदान पर नजर आया। इस क्षेत्र में सामान्य और अन्य पिछड़ा वर्ग समेत 70 प्रतिशत मतदाता हैं, जबकि शेष आदिवासी। प्रतिशत में कम होकर भी आदिवासी वोटर ही कटघोरा के उम्मीदवार के लिए ज्यादातर बार निर्णायक की भूमिका निभाते रहे हैं। भाजपा ने तीसरी बार ओबीसी चाल चली है पर देखने वाली बात होगी कि कटघोरा जीत के इस मिशन में भाजपा की यह चाल काम आएगी या एक बार फिर कांग्रेस की जीत का परचम लहराएगा।

 

जिले की कटघोरा विधानसभा सीट पर कब्जे की चुनावी जंग जोर पकड़ रही है। चुनाव मैदान में भाजपा से पहली बार प्रेम चंद पटेल किस्मत आजमा रहे हैं, तो कांग्रेस ने लगातार दूसरी बार पुरुषोत्तम पटेल पर भरोसा जताया है। वैसे तो पटेल जिला पंचायत सदस्य के रूप में अपने क्षेत्र और समाज में खासे लोकप्रिय हैं पर चुनाव में जीत की सियासत सफल बनाने क्षेत्र और समाज की सीमाओं से काफी आगे की प्लानिंग करनी होगी और इस मामले में कांग्रेस प्रत्याशी व मौजूदा विधायक पुरुषोत्तम कंवर कहीं आगे निकलते दिखाई दे रहे हैं।

अनुभव  को आधार रखें, तो पिता एवं पूर्व विधायक बोधराम कंवर के दशकों की सियासत में बचपन से अब तक साथ-साथ चले पुरुषोत्तम ने इस विधानसभा क्षेत्र के हर गांव, हर कस्बे और उनकी गलियों को अपने कदमों से नापा है। स्वयं भी बतौर विधायक कटघोरा में निरंतर दौरे और शासन की योजनाओं को घर घर पहुंचाने के अपने अभियान के बूते उन्होंने जनता में अलग छाप छोड़ने में भी कामयाब साबित रहे हैं। उनके सबसे प्रभावी प्रतिस्पर्धी प्रेम चंद पटेल की बात करें, तो सामान्य सीट पर भाजपा ने तीसरी बार पिछड़ा वर्ग का फैक्टर आजमाया है। इस फैक्टर की फैक्ट फाइल और इतिहास पर गौर करने पर पता चलता है कि कटघोरा की जनता ने साढ़े सात दशक में बमुश्किल तीन बार ही ओबीसी को अपना नेता चुनने में दिलचस्पी दिखाई। उड़ती खबर तो यह भी है कि गांव के भोले भाले लोग जब आए दिन टीवी चैनलों की सुर्खियां बनती आ रही भाजपाई ईरानी को नहीं पहचान पाते, तो फिर कटघोरा सीट पर यूं अचानक कूद पड़े इस नए नवेले चेहरे को जब तक जानेंगे, मतदान की घड़ी गुजर चुकी होगी। भाजपा की रणनीति में एक सबसे बड़ा माइनस प्वाइंट यह भी माना जा रहा है कि पूर्व विधायक और संसदीय सचिव रहे देवांगन छत्तीसगढ़ से लेकर दिल्ली तक अपनी ही पार्टी की सत्ता में क्षेत्र के लिए ऐसा कुछ नहीं कर पाए, कि लोग उन्हें याद रखते। मौका दिया और मौका देकर देख भी लिया। ऐसे में फिर एक बार वही गलती दोहराने की बजाय, गांव, गरीब और किसानों के लिए सौगातों के द्वार खोलने वाली पार्टी पर भरोसा उन्हें पुरुषोत्तम में नजर आ रहा है। अब एक बार सामाजिक समीकरण पर भी थोड़ी गप शप करते चलें।

कटघोरा विधानसभा की सामान्य सीट से ओबीसी वर्ग के प्रत्याशी बनाए गए प्रेमचंद पटेल पिछले 20 सालों से भाजपा से जुड़े हुए है। वे मूलरूप से उतरदा के रेलडबरी निवासी हैं। वे मूलतः किसान हैं। वर्ष 2010 से 2015 तक हरदी बाजार मंडल अध्यक्ष रहे। पिछड़ा वर्ग मोर्चा जिला उपाध्यक्ष के पद पर भी रहे। बावजूद इसके इस सामान्य सीट में आदिवासी वोटर ही ज्यादातर बार अपने नेता को चुनकर विधानसभा भेजते आए हैं। आदिवासी समुदाय के यही 30 प्रतिशत मतदाता ही उम्मीदवारों की जीत हार तय करते रहे हैं। यहां आदिवासी उम्मीदवारों का दबदबा रहा है। सबसे ज्यादा असर डालने वाले आदिवासी फैक्टर के मद्देनजर कांग्रेस का किला कहे जाने वाले कटघोरा विधानसभा की सीट पर भाजपा का यह दांव महंगा पड़ता दिख रहा है।