रायपुर। CG Text Book Corporation SCAM : छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम की कार्यशैली का अंदाज़ा कोई भी आसानी से लगा सकता है। निगम के मास्टर माइंड ने प्रदेश की स्कूलों की दशा-दिशा सुधरने की बजाये निगम की अब तक की कमाई को हर साल रद्दी छापने में खर्च कर दिया। निगम द्वारा विगत 5 से 7 सालों में करीबन 50 करोड़ रूपये की अर्जित राशि को मनमाफ़िक खर्च किया। CSR (प्रॉफिट )के 50 करोड़ में भी खेल पाठ्य पुस्तक निगम में हुआ है।जो कॉपिया बट गई है उनकी अगर ज़िलेवार सैंपलिंग कराई जाए तों कागज की गुणवत्ता में भी कई ख़ामिया निकलेंगी
निगम के विद्वान कर्ता-धर्ता अगर चाहते तो हर वर्ष तीन लाइन की कॉपी छपवाकर वितरित करने के बदले सरकारी स्कूलों में कांक्रीट काम कर सकते थे। लेकिन CSR मद की राशि से तीन लाइन की कॉपी छापने का ठेका और वितरण का ऐसा खेल किये कि उसकी तुलना रद्दी से किया जाना अतिश्योक्ति नहीं होगी। विभागीय कमाई की फ़िज़ूलख़र्ची के साथ CSR मद से कॉपी छापने का ठेका भी गलत तरीकों से दे दिया है। एमडी अगर अपने नेतृत्व मे कागज के लैब टेस्ट करवा लें तों बड़ा घोटाला सामने आ सकता है।
CSR मद की राशि से यहहोना चाहिए था
विभाग का प्रॉफिट का पैसा जो कट कट कर जमा हुआ। बता दें कि विभाग ने खुद को नॉन प्रॉफिट ORG. बता के इंकम टैक्स बचाया उसका भी समावेश इसमें ही कर लिया(50 cr)गया। करीब 5 से 7 वर्षों की इस प्रॉफिट को CSR मद कहा जा सकता है। विभाग और प्रशासनिक अधिकारी चाहते तो इन पैसों को राज्य की स्कूलों में एक्स्ट्रा क्लास रूम, बाथरूम -टॉयलेट, साफ पानी, डिजिटल ब्लेक बोर्ड, कंप्यूटर, लाइब्रेरी, प्रयोगशाला, स्पोर्ट्स, कंप्यूटर, स्कुल के अन्य चैरिटी के साथ साथ बच्चों के केरियर गाइडेंस के लिए खर्च कर सकते थे। लेकिन क्या सोचकर ऐसे ठोस काम इन विद्वानों ने नहीं किया यह अन्वेषण का मुद्दा है।
किताब वालों से ही कॉपी छपवाने में खेल
इनके लिए अलग अलग ठेकेदार को काम देना पड़ता इसलिए पाठ्य पुस्तक निगम के मास्टर माइंड ने किताब कॉपी मे ही पूरी राशि खर्च करने की योजना पर काम कर लिये। विभाग की प्रॉफिट का यह पैसा कट कट काट तक़रीबन 50 करोड़ को ऐसे उड़ दिया। स्कूल और स्कूली बच्चों के भविष्य की बजाय तीन लाइन की मुफ्त कॉपी के प्रकाशन का जिम्मा उन्हीं चेहते प्रकाशकों को सौंपा गया जो पहले से निगम के लिए किताब छापते हैं। चौंकाने वाली बात यह कि अमूमन अन्य विद्यालयों में दूसरी तक ही तीन लाइन कॉपी बाटी जाती है। ये पांचवीं तक दे रहे हैं, जिसका कोई औचित्य नहीं है। पाठ्य पुस्तक निगम के ये मास्टर माइंड अब कक्षा पांचवीं तक के बच्चों को मुफ्त तीन लाइन कॉपी देने का खास काम किताब छापने वालों को ही दे दिए हैं। जिम्मेदारों की पुराने चेहतों को प्रकाशन ठेका की जिम्मेदारी के पीछे की जो भी वजह हो लेकिन हर साल रद्दी हो जाने वाली कॉपी के बदले CSR मद को समझदारी से खर्च करना चाहिए। एमडी अगर अपने नेतृत्व मे कागज के लैब टेस्ट करवा लें तों बड़ा घोटाला सामने आ सकता है।