शहर के थानेदारों में इन दिनों पुलिसिंग काम को छोड़ नम्बर बढ़ाने की होड़ लगी है। सही भी है साहब को खुश करना है और अपने थानेदारी बचना है तो अर्जी और फर्जी तो लगाना ही पड़ेगा। सो थानेदार भी स्पेशल अभियान में मुंडी गिना कर पीठ थपथपा रहे हैं।
अब शहर के एक तेजतर्रार चौकी प्रभारी को ही ले लीजिए! साहब नशा छोड़ने और छोड़ने की तैयारी करने वालों से भी ताली बजवा रहे हैं। वैसे तो काम करने वाले भी जिले में कई जांबाज सिपाही है जो “नेकी कर और दरिया में डाल”की कहावत को अमल करते हुए अपने काम को शिद्दत से करते हैं। लेकिन, कुछ अफसर ऐसे भी हैं जो महज सोशल मीडिया के सहारे थानेदारी कर रहे हैं।
कहा तो यह भी जा रहा है कि जिले में कई ऐसे एसआई है जो खाली डिब्बा के साथ लोगों की फ़ोटो क्लिक कराकर स्मार्ट पुलिसिंग का खिताब जीत चुके हैं। खैर ऐसे अफसरों को एक सुपर अफसर का आशीर्वाद है जिसके बदौलत थानेदारी रुआब से कर रहे हैं। ऐसे अफसरों की वजह से काम करने वाले जाबांजों का कांफिडेंस कम हो रहा है। वैसे एक चौकी प्रभारी पर लोग ये तंज कसते हुए कह रहे है साहब का रस्सी जल गई पर भी ऐठन नहीं गई..!
खनिज माफियाओं की धुन पर कदम ताल…
खनिज संपदा से परिपूर्ण कोयले की नगरी में खनिज संपदाओं की लूट मची है। अब बात फोरलेन निर्माण को ही ले लिजिये गिट्टी लोकल खदान से और रायल्टी दूसरे जिले का पेश कर गांव को मिलने वाले करोड़ों की धनराशि के गबन का खेल मजे से चल रहा है। कहावत है ” चोर चोर मौसेरे भाई…” इसका अर्थ सभी जानते हैं। लेकिन, इसका दूसरा पहलू यह भी है जब दो चोर आपस मे संगठित होकर काम करने लगते है तो तीसरा उनकी एकता के सामने बेबस हो जाता है।
कुछ इसी तरह का सीन कोरबा-चाम्पा के निर्माणाधीन सड़क में देखा जा सकता है। चोरी की गिट्टी और चोरी की मिट्टी को अंजाम देने में निर्माण ठेकेदार व अधिकारी मौसेरे भाई की तरह काम कर रहे हैं। भाई लोगों का भी अपना अलग अंदाज है, यानि कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा की थीम पर काम हो रहा है।
मिट्टी भी आसपास की सरकारी जमीनों को खोदकर ला रहे है। जबकि, गिट्टी घाटाद्वारी के अवैध खदान से.. रायल्टी अकलतरा पर्ची की लगाई जा रही है। मजे वाली बात माइनिंग अफसरों की है जो सब कुछ जानते हुए भी अनजान बनकर खनिज माफियाओं की धुन पर कदम ताल कर रहे हैं।
46 लाख का लिफ्ट बना अफसरों का गिफ्ट…
अदनान सामी का वो गाना तो आपने सुना ही होगा मुझको को भी तो लिफ्ट करा दे… यह गाना कोरबा जिले में प्रशासनिक भवनों में लगे लिफ्ट पर सटीक बैठता है। निर्माण की राशि तो शिफ्ट हो चुकी है लेकिन, लिफ्ट वहीं की वहीं बनी हुई है।
बात खनिज न्यास मद के राशि की है। डीएमएफ से जनता का विकास कम अधिकारियों का ज्यादा हुआ है। अब कलेक्ट्रेट कार्यालय में बने लिफ्ट को ही ले लीजिए। अब तक 4 जिलाधीश बदले गए लेकिन, लिफ्ट की सुविधा शुरू नहीं हो सकी। तभी तो जनदर्शन में दूर दराज से आने ग्रामीण अब दबी जुबां से कहने लगे है 46 लाख का लिफ्ट अधिकारियों का गिफ्ट बनकर रह गया है।
सही भी है जब जिला मुख्यालय का ये हाल है तो ग्रामीण अंचलों के कार्यों का आंकलन सहज ही किया जा सकता है। वैसे लिफ्ट शुरू न होने का ठीकरा लोक निर्माण विभाग ईएंडएम पर फोड़ा जा रहा है, पर क्या किसी भी काम को दूसरों पर डालने से अफसरों की जवाबदेही खत्म थोड़े हो जाती है। वैसे जनश्रुति भी है “हम सुधरेंगे जग सुधरेगा…”
कब तक ठगा जाएगा कटघोरा
चुनाव से पहले कटघोरा को जिला बनाएं जाने का सपना पाले आंदोलनकारियों को अभी और इंतजार करना होगा..! पाली तानाखार में भेंट मुलाकात करने पहुंचे प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल ने सरकार का इरादा साफ कर दिया है।
ऐसे में जिला बनाने के लिए लंबे समय से आंदोलन कर रहे कटघोरावासियों का गुस्सा भड़कना स्वाभाविक है। न तो कटघोरावासियों का आंदोलन काम आया न ही युवा कांग्रेस की रायपुर तक की पद यात्रा, यहां तक की स्थानीय विधायकों को भी जवाब नहीं सूझ रहा है। आठ महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, जनता जब सवाल पूछेगी तो क्या जवाब देंगे।
पहले जब कटघोरा में अतिरिक्त कलेक्टर और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक का पद शासन ने स्वीकृत किया था तो लोगों को उम्मीद थी कि चुनाव से पहले सरकार अपना वादा पूरा करेगी और कटघोरा को जिला बना दिया जाएगा। लेकिन अब वो ना उम्मीद हो गए हैं। सबसे ज्यादा परेशानी उन विधायक को होगी जिन्होंने चुनाव के दौरान बाकायदा पंपलेट छपवा कर कटघोरा को जिला बनाने का वादा जनता से किया था। कटघोरा की जनता खुद को ठगा महसूस कर रही है। चर्चा इस बात की है कि आखिर कटघोरा को कब तक ऐसे ही ठगा जाएगा, इस सवाल का जवाब वहां की पब्लिक को खुद ढ़ूढना होगा।
रासुका और धर्मांतरण
छत्तीसगढ़ में लगातार ईडी का छापा, सवाल जवाब…हल्लाबोल, आरोप प्रत्यारोप, रैली, आंदोलन इससे लगने लगा है कि चुनाव की तारीख जल्द करीब आने वाली है। ताजा मामला रासुका और धर्मांतरण को लेकर उठा है, जिसमें पूर्व सीएम रमन सिंह और प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल के बीच बयानों की झड़ी लगी हुई है।
बस्तर ही नहीं सभी आदिवासी जिलों में मिशनरियों द्वारा प्रलोभन या दबाव से धर्मांतरण कराना संवेदनशील मुद्दा है। इसे केवल राजनीतिक नजरिए से देखना उचित नहीं होगा, उन आदिवासियों की समस्या पर भी गौर करना होगा जो किसी न किसी कारण से धर्मांतरित हो रहे हैं।
मिशनरिज के चैरिटी कार्यक्रम में लोगों का जुड़ाव क्यों हो रहा है, ये देखना भी सरकार का काम है, केवल एक दूसरे पर आरोप लगाने से काम नहीं चलेगा। सीधी बात कहें तो जो काम सरकार को करना था वो मिशनरिज कर रही हैं, मसलन स्कूल, हास्पिटल जैसी सुविधा!
ऐसे में केवल साम्प्रदायिक भेदभाव को आधार बनाकर रासुका का प्रयोग किया जाना क्या उचित होगा। पूरा विवाद सरकार के इसी विधेयक को लेकर उठा है। हालांकि राज्य सरकार द्वारा ये साफ कर दिया गया है कि ये कोई नया कानून नहीं है केवल इसका रिनीवल किया गया है। ऐसे में सरकार को धर्मांतरण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर रासुका लागू करने से पहले संयम बरतना होगा। तभी छत्तीसगढ़ शांति का टापू बना रह सकता है।