Delhi University : अब मृत्यु से सुंदर कुछ भी नहीं है…क्षण क्षण मर रही हूं…! Social Media पर पूर्व प्रोफेसर की इस पोस्ट से मचाया हड़कंप…जानें

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नई दिल्ली। Delhi University : दिल्ली विश्वद्यालय की पूर्व प्राध्यापिका ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर कथित तौर पर नौकरी से निकाले जाने की पीड़ा व्यक्त की है। साथ ही उन्होंने इच्छा मृत्यु की मांग की है। डॉ. पार्वती ने अपने फेसबुक वाॅल पर लिखा कि, अब मृत्यु से सुंदर कुछ भी नहीं है। सांध्य से निकाले जाने के बाद क्षण क्षण मर रही हूं। आत्महत्या का विचार कई बार आया, लेकिन मैं इच्छा मृत्यु चाहती हूं। प्लीज इसमें मेरी मदद कीजिए।

भारत के हर नागरिक से अपील करती हूं कि मैं ही पार्वती हूं। अब जिंदा लाश के शक्ल में तब्दील हो चुकी हूं। सत्यवती कॉलेज, सांध्य से निकाले जाने के बाद क्षण क्षण मर रही हूं। अब चाहती हूं कि सदैव के लिए मेरी यह पीड़ा खत्म हो जाए। ईश्वर ने आंख की रोशनी छीनी, तो लगा कि किसी तरह पार घाट उतर जाऊंगी। मुझे क्या पता था कि बौद्धिकों के समाज में भी मेरी जैसी अभागन की आत्मा को भी चाकू से रौंदकर लहूलुहान कर दिया जाएगा।

10वीं कक्षा में आंखों की रोशनी चली गई

उन्होंने आगे लिखा है, “मैं जन्मांध पैदा नहीं हुई थी। 10वीं कक्षा में मेरी आंखों की रोशनी चली गई। कोमा में चली गई थी। करीब तीन महीने बाद जब मुझे होश आया तो मैं अपने आपको हॉस्पिटल में पाई। जहां मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।मैंने पापा से पूछा यहां लाइट चली गई है? पापा ने कहा ‘बेटी लाइट जली हुई है’। डॉक्टर को बुलाया गया। शुरू में न दिखने की समस्या को डॉक्टर ने मनोवैज्ञानिक बताया। बाद में भी रोशनी नहीं आई तो गहन जांच के बाद डॉक्टरों में मुझे अंधी घोषित कर दिया।

अब तक मैं अपने जीवन में अंधों को केवल भिखारीन के रूप में देखी थी। मुझे लगता था कि मेरे घर के लोग मुझे भीख मांगने के लिए छोड़ देंगे या मुझे मार डालेंगे। बेहद गरीब परिवार से होने के कारण मैं अब परिवार के ऊपर बोझ थी। मुझे अपने मां, बाप और परिवार के लोगों से भी डर लगता था कि कहीं वह हमारी हत्या न कर दे, लेकिन मैं हारी नहीं और डरी नहीं। मैं छड़ी के सहारे ही सही बंद आंखों से दुनिया को टटोलते हुए NIVH देहरादून गई। पार्वती के मुताबिक, उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई NIVH देहरादून से की।वहां ब्रेल लिपि के माध्यम से मेरी पढ़ाई शुरू हुई और मैंने 12वीं पास किया।”

समाज दिव्यांगों के प्रति संवेदनशील नहीं

पार्वती कुमारी ने कहा, अंधों के संघर्ष को आप नहीं जानते। जीवन के हर मोड़ पर मैं जूझती हूं। हमारी सारी इच्छाओं का दमन तो ईश्वर ने कर ही दिया था, इस घटना ने मानवता को शर्मशार कर दिया। हमारा समाज दिव्यांगों के प्रति संवेदनशील नहीं है। पुरुष के अंधेपन और महिला के अंधेपन में भी अंतर है। हम पर दोहरी मार पड़ती है। पुरुष को समाज में विशेषाधिकार प्राप्त है, लेकिन महिला को? मेरे जीवन की रोशनी यह तदर्थ की नौकरी थी। यह आशा और विश्वास हो चला था कि मेरी नौकरी स्थाई हो जाएगी। मैं किसी को शापित नहीं कर रही हूं, लेकिन आप सभी से गुहार लगा रही हूं कि देखिए आपका समाज कहां जा चुका है? केवल महाभारत में ही चीर-हरण नहीं हुआ था, आज भी अट्टहास के साथ मेरे साथ हुआ है।

मेरी नौकरी मुझसे छीन ली गई। जीवन में अंधापन फिर से गहरा हो गया है। हताशा और अवसाद से फिर घिर गई हूँ। मुझे लगता है कि मैं जीवन के उस मोड़ पर चली गई हूं जहां से अब मेरे जीवन में कुछ नहीं बचा है। आत्महत्या करने का विचार तो कई बार आया, लेकिन मैं इच्छामृत्यु चाहती हूं। इसमें मेरी मदद कर दीजिए प्लीज़।

निकाले जाने की उम्मीद नहीं थी

पार्वती ने बताया कि दिल्ली में अपने छोटे भाई के साथ रहती हैं, जो फिलहाल पढ़ाई कर रही है। डीयू की नौकरी से ही उनका जीवनयापन होता था। उनके माता-पिता झारखंड में रहते हैं। उन्होंने बताया कि डीयू में नौकरी पाने के लिए काफी संघर्ष किया। उन्होंने कहा, मुझे डीयू में बतौर शिक्षिका नियुक्त किया गया, लेकिन जब मुझे निकालना ही था तो नियुक्ति की ही क्यों गई। अब लगता है कि व्यर्थ में ही इतनी पढ़ाई की। मुझे उम्मीद नहीं थी कि मुझ दृष्टि बाधित को निकाल दिया जाएगा। उन्होंंने बताया कि उनकी किताब और कई लेख भी प्रकाशित हो चुके हैं।

एक और टीचर ने यूनिवर्सिटी को लिखा लेटर

वहीं, सत्यवती कॉलेज (Delhi University) के ही पूर्व शिक्षक अरमान अंसारी द्वारा डीयू वीसी को पत्र लिखा गया है। पत्र में उन्होंने लिखा है कि सत्यवती कॉलेज से निकाले जाने के बाद वह अब अवसाद में हैं और जीवन को लेकर असमंजस में पड़ गए हैं। उन्होंने लिखा कि उनके ऊपर कई जिम्मेदारियां हैं और उनकी नौकरी जाने से पूरा परिवार सड़क पर आ जाएगा। पत्र में उन्होंने अपने माता-पिता के संघर्ष से लेकर अपनी पढ़ाई पूरी करने की यात्रा को भी बताया है। उन्होंने कहा है कि अगर वे इस पद के लिए अयोग्य थे तो उनके द्वारा पढ़ाए गए बच्चे एमफिल, पीएचडी आदि कैसे कर रहे हैं। साथ ही यह भी लिखा है कि उन्हें ऐसा लग रहा है क जीवन का सफर जहां से शुरू हुआ था वहीं वापस आ गया है। इससे उनके परिवार का भविष्य अंधकार में चला गया है।