नई दिल्ली। Earthquake Risk : भूकंप के झटकों ने मंगलवार मध्य रात्रि दिल्ली-एनसीआर को झकझोर दिया। झटका इतना तेज था कि लोग घरों से बाहर निकल आए। द्वारका, रोहिणी, साउथ दिल्ली समेत दूसरे इलाकों की कई बहुमंजिला इमारतों के फ्लैट से बाहर आने के लिए अफरातफरी का माहौल भी रहा। 6.3 तीव्रता के भूकंप का केंद्र नेपाल होने से दिल्ली-एनसीआर में किसी तरह के जान-मााल का नुकसान नहीं हुआ।
उधर, विशेषज्ञ बताते हैं कि दिल्ली-एनसीआर सिस्मिक जोन-4 में है। भूकंप के लिहाज से यह संवेदनशील है। यहां छह-सात तीव्रता तक के भूकंप आने की आशंका बनी रहती है। ऐसा होने की सूरत में बड़े पैमाने पर नुकसान होगा। दिल्ली में करीब 50 लाख इमारतें हैं। इसमें आलीशान बहुमंजिला इमारतें भी हैं और दिल्ली देहात के मकान भी। अनधिकृत कॉलोनियों में बड़ी संख्या में चार-पांच मंजिला मकान बने हैं। अलग-अलग समय में डीडीए, एमसीडी, आपदा प्रबंधन विभाग समेत दूसरी सरकारी एजेंसियों ने इमारतों का सर्वे किया है। इसमें भूकंपीय क्षेत्र-4 को ध्यान में रखकर इमारतों की सुरक्षा की जांच की गई है।
80 फीसदी इमारतें तेज भूकंप से सुरक्षित नहीं
डीडीए के टाउन प्लानर रहे एके जैन बताते हैं कि सभी एजेंसियों के (Earthquake Risk) आंकड़ों पर गौर करने से पता चलता है कि मोटे तौर पर 80 फीसदी इमारतें जोन-4 के झटके को सहने में सक्षम नहीं हैं। अगर भूकंप का केंद्र दिल्ली-एनीआर हुआ और तीव्रता भी ज्यादा रही तो दिल्ली की हालत 2001 के गुजरात के भूकंप सरीखी हो सकती है। भुज भी जोन-4 में ही आता है। यह बड़ी आपदा होगी, जिससे होने तबाही का अंदाजा लगाना मुमकिन नहीं। सरकारों को इमारतों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संजीदा कदम उठाने होंगे।
सरकारी इमारतें भी सुरक्षित नहीं
नाम उजागर न करने की शर्त पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि दिल्ली सचिवालय, पीएचक्यू, जीटीबी अस्पताल, लुडलो कैसल स्कूल एवं मंडलायुक्त कार्यालय भवन पुराने भारतीय मानकों के आधार पर बने हुए हैं। सात तीव्रता के भूकंप की दशा में इन भवनों के ब्लॉक आपस में टकराएंगे। इससे बड़े पैमाने पर नुकसान हो सकता है। ऐसे में इमारतों को नए सिरे से मजबूत करने की जरूरत है। जरूरत के हिसाब से इमारतों की मरम्मत के साथ रेट्रोफिटिंग या ढांचागत बदलाव किया जा सकता है। अगर तीनों तरीकों से बात नहीं बनती तो उसे गिरा देना बेहतर होगा।
खतरे की जद में दिल्ली-एनसीआर
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) में प्रोग्राम डायरेक्टर, सस्टेनेबल हैबिटेट प्रोग्राम रजनीश सरीन बताते हैं कि सिस्मिक जोन-4 में होने से एनसीआर निश्चित ही खतरे की जद में तो है ही, यहां निर्माण भी तेजी से हो रहा है। 30-35 मंजिला गगनचुंबी इमारतें बड़ी संख्या में बन रही हैं। सवाल यही है कि लिहाजा क्या ये फ्लैट भूकंप रोधी हैं? क्या इन फ्लैटों या इमारतों को भूकंप के दौरान नुकसान नहीं होगा और यहां रहने वाले लोग सुरक्षित होंगे? जवाब नकारात्मक ही मिलता है। एक मिनट के लिए मान लें कि सरकारी इमारतें ठीक हो सकती हैं, लेकिन बड़ी संख्या में अनधिकृत कॉलोनियों में इसका कोई खास ध्यान नहीं है।
कई चीजों से मिलती इमारतों को मजबूती
एके जैन व रजनीश सरीन बताते हैं कि हाई राइज इमारतों की सुरक्षा कई चीजों पर निर्भर करती है। मसलन, उस इमारत की फाउंडेशन बेहतर हो। स्लैब व बीम में इतनी जगह हो, जो झटके को सह सके। निर्माण में इस्तेमाल होने वाली सरिया आदि की लैब में जांच करवाई जाए। ऐसा न होने और नई या पुरानी इमारत के आसपास लंबे समय तक वाटर लॉगिंग की समस्या, मेंटेनेंस का अभाव, कई सालों तक इमारत पर पेंट न होना या सीमेंट का उखड़ते रहना, खराब माल का इस्तेमाल आदि भी इमारतों को कमजोर बनाता है। दिल्ली के हर इलाके में इस तरह की समस्या दिख जाती है।
2019 के हाईकोर्ट के आदेश का सही तरीके से नहीं हुआ पालन
एके जैन का कहना है कि हाईकोर्ट में 2019 में आदेश दिया था कि 30 साल पुरानी इमारतों के बिल्डिंग प्लान तैयार करने के साथ उसकी ढांचागत ऑडिट भी करवाई जाए। एमसीडी ने इसका नोटिस भी जारी किया था। बावजूद इसके अभी तक कुछ खास नहीं हो सका है। वहीं, रजनीश सरीन का कहना है कि उस वक्त जो नोटिस आई थी, उसमें भौतिक सर्वे की ही बात थी। जबकि इनकी तकनीकी जांच होनी चाहिए। इमारत देखकर उसकी मजबूती का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। उसके लिए लैब में जांच करनी भी जरूरी है। दूसरी तरफ एमसीडी का कहना है कि इस मामले में अभी तक 4655 इमारतों की पहचान की गई। इसमें से 4463 को नोटिस दिया गया। 758 की ढांचागत ऑडिट कराई गई। 53 को गिराया गया और 16 इमारतों की रिट्रोफिटिंग की जा रही है।
सरकारी नियमों का भी हो कायदे से पालन
रजनीश कहते हैं कि नेपाल में आए भूकंप के बाद केंद्र सरकार की ओर से इमारतों या कंस्ट्रक्शन साइटों के रीसर्टिफिकेशन को लेकर नई गाइडलाइंस भी जारी की गई थीं। इनमें पुरानी बिल्डिंगों को स्ट्रक्चरल इंजीनियर्स से रीसर्टिफाई कराना अनिवार्य किया गया है लेकिन इसके लिए पैच टेस्ट करना होता है, जिसमें कंक्रीट का सैंपल लेकर उसे लैब में भेजा जाता है। वहीं, भवन निर्माण में जो सरिया का इस्तेमाल होता है, उसकी भी जांच कराई जानी जरूरी है लेकिन हो क्या रहा है? 2007-08 के बाद निर्माण कार्य अब कोरोना के बाद बहुत तेज गति से हो रहा है लेकिन उस गति से नियमों का पालन नहीं हो रहा।
मेट्रो मजबूत, 7.5 तीव्रता का झटका भी लेगी झेल
डीएमआरसी का कहना है कि मेट्रो निर्माण में ऐसे स्टैंडर्ड डिजाइन का इस्तेमाल किया गया है कि रिएक्टर स्केल पर 7.5 तीव्रता तक के भूंकप पर कोई नुकसान नहीं होगा। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दिल्ली में भूकंप आने पर जरूरत के हिसाब से ट्रेन ऑपरेशन को रोका या धीमा किया जाता है। इससे मेट्रो को चलाने में कोई अड़चन नहीं होगी।
दिल्ली को बचाने के लिए तुरंत उठाने होंगे कदम
-मकान की संरचनात्मक डिजाइन और निर्माण-तकनीक की सघन भौतिक व तकनीकी जांच।
-भारतीय मानक ब्यूरो के मानकों पर सही न उतरने से कराएं सुदृढ़ीकरण।
-जरूरत के हिसाब से मरम्मत, रेट्रोफिटिंग व ढांचागत बदलाव।
-मकान की खरीद-फरोख्त के वक्त सबसे पहले सुरक्षा प्रमाण पत्र देखना जरूरी।
-एक सक्षम एवं अनुभवी संरचना-इंजीनियर से भूकंप से सुरक्षा हेतु अपनी भवन की समीक्षा करवाएं।
भूकंप के दौरान इन तरीकों को अपनाए
-भूकंप के दौरान फर्श पर लेटकर किसी मजबूत डेस्क या मेज के नीचे चले जाएं।
-मेज पर बनाए रखें मजबूत (Earthquake Risk) पकड़।
-खुले स्थान पर जाने की करें कोशिश।
-लिफ्ट या एस्कलेटर का प्रयोग न करें।
-कंपन रुकने के बाद खुले स्थान तक पहुंचने के लिए सीढ़ी का इस्तेमाल करें।
-यदि आप निकास द्वार से नजदीक नहीं हैं या किसी बहुमंजिला इमारत की ऊपरी मंजिल पर हैं, तो वहीं बने रहें। घबराएं नहीं, शांत रहें।
-बिजली की लाइनों, खंभो, दीवारों, फाल्स सीलिंग, मुंडरे, गमलों तथा गिरने या ढहने की आशंका वाली अन्य वस्तुओं से दूर हो जाएं।
-कांच फलक वाली इमारतों से दूर रहें।
-वाहन चलाते समय सड़क के किनारे होकर रुक जाएं और गाड़ी से बाहर आ जाएं।
-क्षतिग्रस्त हो गए पुल या फ्लाइओवर को पार करने की कोशिश न करें।