Korba: इस हॉस्पिटल को कानून-पुलिस पर नहीं विश्वास..! बाउंसरों के भरोसे होगा इलाज और पीड़ित मरीजों के परिजनों से होगी वसूली…!!

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कोरबा। क्या छत्तीसगढ़ की कानून व्यवस्था इस कदर बिगड़ चुकीं है कि हॉस्पिटल में किसी कानूनी विवाद से निपटने के लिए डॉक्टर के सेवाभावी पेशे में बाउंसरों की आवश्यकता पड़ जाए ? क्या विवादों को लेकर पुलिस की व्यवस्था पर्याप्त नहीं है? वह पुलिस जो शहर के एक चर्चित हॉस्पिटल से लगभग 300 मीटर ही पास में है।


शहर का एक नामी हॉस्पिटल फिर जिले में चर्चा का विषय बना हुआ है। अब कारण उपचार में लापरवाही से नही बल्कि हॉस्पिटल के द्वारा जारी विज्ञापनों को लेकर है। दरअसल हॉस्पिटल प्रबंधन द्वारा अब 10 बाउंसर की भर्ती के लिए वैकेंसी निकाली गई है। वैकेंसी जारी होने के बाद से ये जनचर्चा का विषय बन गया है और लोग आश्चर्यचकित कि बियर बार में तो बाउंसर समझ मे आता है लेकिन हॉस्पिटल में ना बाबा रे ना..! वैसे अस्पताल के सिस्टम को समझने वाले पंडितों की माने तो बाउंसर का उपयोग हॉस्पिटल में भर्ती होने वाले मरीजों के परिजनों से रकम वसूली के लिए होगा।

बता दें कि शहर के एक निजी हॉस्पिटल के कारनामें हमेशा शहर में चर्चा का कारण बनते रहे है। हॉस्पिटल प्रबंधन अब बाउंसरों की भर्ती निकालकर सुर्खियों में है। जनचर्चा है कि साहब अब सफेद सूट में लूट के लिए बाउंसर भी रखने वाले है।

जानकारों की माने तो यह निजी हॉस्पिटल संचालक कभी इलाज के नाम पर लूट को लेकर तो कभी शहर में जमीन खरीदी को लेकर चर्चा में बने रहे हैं। अब हॉस्पिटल प्रबंधन अपने विज्ञापनों के कारण सुर्खिया बटोर रहा है। चर्चा भी जायज है क्योंकि हॉस्पिटल प्रबंधन की ओर से जारी विज्ञापन में अन्य पदों के साथ बाउंसर की भी भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला गया है।

विज्ञापन को देखने से मात्र से ही हॉस्पिटल प्रबंधन की मंशा स्पष्ट हो जाती है कि वह पीड़ित मरीजों के परिजनों के लिए हॉस्पिटल में किस प्रकार की व्यवस्था बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। अन्य पदों के लिए योग्यता तो मांगी गई है लेकिन बाउंसरों की भर्ती के लिए किसी भी प्रकार की कोई भी शैक्षणिक योग्यता नहीं मांगी गई है। जिले के शांत वातावरण को सुलगाने या सुलझाने का किस प्रकार का प्रयास है?

इसके साथ ही यह भी चर्चा का विषय बना हुआ है कि लगभग हर महीने-दो महीने में इस प्रकार से कर्मचारियों की भर्ती क्यों होती है ? क्या कारण है कि लोग टिक नहीं पा रहे ? क्या नए कर्मचारियों की हर बार बदलाव होने से उनके अप्रशिक्षित होने से मरीजों की जान खतरे में नही पड़ेगी ? किसी मरीज की अगर अप्रशिक्षित स्टाफ के कारण जान चली जाती है तो जिम्मेदारी किसकी होगी ?

…और सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न तो यही है कि क्या अप्रशिक्षित स्टॉफ के कारण होने वाले आक्रोश को दबाने के लिए बाउंसरों की नियुक्ति की जा रही है ?

 

टेलर और कारपेंटर की भी निकाल चुके है वैकेंसी

 

कोसाबाड़ी के कृष्णा विहार में संचालित ये हॉस्पिटल संचालक पहले भी कारपेन्टर और टेलर की वेकेंसी निकाल कर चर्चा में आ चुके है। अब एक बार फिर बाउंसर भर्ती की विज्ञापन से उनके वैकेंसी की गंभीरता कम चुटकी ज्यादा ली जा रही है।

 

इलाज कम विवाद ज्यादा

 

शहर के नामी ग्रामी अस्पताल में हर दूसरे तीसरे महीने मरीजों के साथ विवाद होता है। कभी इलाज में लापरवाही का तो कभी एक्सट्रा बिल की वजह से.! माना जा रहा है कि बढ़ते विवाद की वजह से बाउंसरों की भर्ती की जा रही है जिससे मरीज के परिजनों से मनमाना चार्ज वसूला जा सके।

        इनका कहना 

“निजी हॉस्पिटल में बाउंसर रखने और न रखने का कोई गाइडलाइन नही है। हॉस्पिटल में बाउंसर की वैकेंसी से उनके विश्वसनीयता पर सवाल जरूर उठता है। सेवा के काम बाउंसर की जररूत नही होनी चाहिए।”

एस एन केशरी, जिला स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी – कोरबा

 

“हॉस्पिटल में बाउंसर रखने का मामला गंभीर है लेकिन निजी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा गार्ड रखा जा सकता है । बाउंसर की भर्ती समझ से परे है।”

अभिषेक वर्मा, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक कोरबा