Korba : गुंडों के बल पर आदिवासी भूमि पर कब्जा, खसरा नंबर बदला फिर मिट्टी पाटकर अफरातफरी

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0 छग क्रांति सेना के प्रदेश मंत्री अधिवक्ता दिलीप मिरी ने की दादरखुर्द पटवारी हल्का नंबर 21 में हो रहे कब्जे को लेकर लिखित में शिकायत, कहा- शासकीय भूमि चढ़ी भू माफिया के भेंट, प्रशासन मौन।

कोरबा। गुंडों के बल पर दादरखूर्द के भोले भाले आदिवासी परिवार अपनी जमीन छोड़ने को मजबूर किए जा रहे हैं। दादरखुर्द के पटवारी हल्का नंबर 21 में भूमियाफिया की नजर है और यहां की सरकारी जमीनों पर जमकर कब्जे का खेल खेला जा रहा है। शिकायतों और न्यायालय के आदेश को नजरंदाज कर प्रशासन भी मौन है और इस मौन सहमति का शिकार आम जनता हो रही है।
यह आरोप छत्तीसगढ़ क्रांति सेना के प्रदेश मंत्री और अधिवक्ता दिलीप मिरी ने लगाते हुए लिखित में शिकायत की है। उन्होंने ग्राम दादरखुर्द पटवारी हल्का नंबर 21 में हो रहे शासकीय भूमि एवं आदिवासी भूमि पर दूसरे जगह के खसरा क्रमांक को प्रतिस्थापित कर मिट्टी पाटने एवं बेचने का प्रयास किए जाने के विरुद्ध यह लिखित शिकायत की गई है। तथ्य यह है कि ग्राम दादर खुर्द के मूल खसरा क्रमांक 412 रकबा 6.16 एकड़ जो मिसल 1930 में आदिवासी के स्वामित्व की भूमि थी। जिसका वर्ष 1954 55 के अधिकार अभिलेख में कई बटांकन को एनसीडीसी द्वारा अधिगृहीत किया गया जिसमें खसरा क्रमांक 412/12 भी शामिल था। वर्ष 1992 – 93 के खसरा मसाहती में उक्त खसरा क्रमांक 412/12, 412/14 इत्यादि की भौगोलिक स्थिति विश्रामपुर तरफ स्थित दर्शित है जो वर्तमान में कोयला खदान के समीप है। उक्त खसरा क्रमांक को सर्वप्रथम एनसीडीसी के नाम से अपने नाम करवा कर जवाहर अग्रवाल द्वारा राजस्व अधिकारियों से सांठ गांठ कर भू अभिलेखों में कूट रचना करते हुए नक्शे में दूसरे जगह प्रतिस्थापित किया गया और साथ ही नया नंबर 858 भी दिया जा कर धड़ल्ले से मिट्टी फीलिंग और विक्रय करने का प्रयास किया जा रहा है। इस संबंध में दिलीप मीरी द्वारा जिला प्रशासन के समक्ष पूर्व में भी शिकायत की गई थी। जिस पर प्रशासन द्वारा किसी तरह की कोई भी कार्यवाही नहीं किया जाना संदेह की स्थिति निर्मित करता है। गौरतलब है कि इस भूमि के खसरा क्रमांक 859, 857, 851 इत्यादि भी नजूल अधिकारी के प्रतिवेदन 4 सितंबर 2018 में जांच की सूची में हैं। जिस पर संज्ञान लेते हुए छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर द्वारा जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिनांक 25 सितंबर 2020 को स्थगन जारी किया था* फिर भी न तो जिला प्रशासन, न तो पुलिस प्रशासन और न ही जवाहर अग्रवाल जैसे भू माफियाओं को न्यायालय के आदेश की अवहेलना का भय रहा और न ही किसी तरह की कोई जवाबदेही। वास्तव में यहां आदिवासी व्यक्ति की भूमि है। जिस पर नया नंबर फिट कर दूसरे जगह का खसरा क्रमांक को प्रतिस्थापित किया जा रहा है और भोले भाले आदिवासी समाज के व्यक्तिगणों को गुंडों के बल पर अपने जमीन छोड़ने का दबाव बनाया जा रहा है, जिससे अराजकता जैसी स्थिति निर्मित हो गई है। भू स्वामी आदिवासी द्वारा भी बार बार जिला प्रशासन से अपने भूमि पर हो रहे इस बलात कब्जा के विरुद्ध शिकायतें की जा रही है। लेकिन किसी तरह की कोई भी निष्पक्ष कार्यवाही नहीं होने से आदिवासी व्यक्ति अपने गाढ़ी कमाई से खरीदे इस जमीन से बेदखल हो जाने से भयभीत है। इन तमाम अपराधो को अंजाम देने, जिनके दस्तावेजी साक्ष्य भी अपराध को स्व प्रमाणित करते हैं। बावजूद प्रशासन द्वारा कार्यवाही नहीं किया जाना, राजस्व एवं पुलिस विभाग की संलिप्तता को दर्शाता है।