ओडिशा। Odisha Bar Association : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ओडिशा में बार एसोसिएशन को अपने एक सदस्य की मौत का हवाला देते हुए एक दिन के लिए अदालती काम से दूर रहने के लिए नोटिस जारी किया। कोर्ट ने रायगढ़ बार एसोसिएशन के फैसले पर आलोचनात्मक रुख अपनाते हुए कहा कि भले ही वकील की मौत दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, लेकिन यह न्यायिक काम को ठप करने का कारण नहीं हो सकता।
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की खंडपीठ पिछले साल ओडिशा में हड़ताल के दौरान अदालत परिसर में तोड़फोड़ करने वाले वकीलों के खिलाफ शुरू की गई अवमानना कार्यवाही पर सुनवाई कर रही थी। पिछली सुनवाई में न्यायालय ने ओडिशा में बार एसोसिएशनों द्वारा वकील की मृत्यु पर शोक व्यक्त करने के लिए पूरे दिन का काम निलंबित करने की प्रथा पर अस्वीकृति व्यक्त की थी।
उड़ीसा हाईकोर्ट की ओर से पेश वकील ने खंडपीठ को सूचित किया कि एक वकील के निधन के कारण रायगढ़ बार एसोसिएशन द्वारा एक दिन की हड़ताल को छोड़कर पिछले आदेशों के बाद अब तक कोई हड़ताल नहीं हुई है।
इस संबंध में बेंच ने कहा, “यह घटना जितनी भी दुर्भाग्यपूर्ण हो, इससे न्यायिक कामकाज ठप नहीं हो सकता।”
इसके साथ ही कोर्ट ने संबंधित बार एसोसिएशन को नोटिस जारी किया।
जस्टिस कौल ने कहा
“उन्हें आकर कहने दीजिए कि वे भविष्य में ऐसा नहीं करेंगे।”
कोर्ट ने अवमाननाकर्ताओं को अपना हलफनामा दाखिल करने का आखिरी मौका भी दिया। इसमें चेतावनी दी गई कि जो लोग दो सप्ताह के भीतर अपना हलफनामा दाखिल करने में विफल रहेंगे, उन्हें अदालत के समक्ष उपस्थित रहना होगा।
सुनवाई के दौरान, एक वकील ने हाल ही में हुई हड़ताल का जिक्र किया, जो पिछले हफ्ते हापुड में वकीलों पर पुलिसकर्मियों द्वारा किए गए हमले के विरोध में इलाहाबाद हाईकोर्ट में हुई थी।
जस्टिस कौल ने इस पर जवाब दिया
“अगर यह हमारे सामने आएगा तो हम उससे उसी तरह निपटेंगे।”
वर्तमान अवमानना कार्यवाही सभी बार एसोसिएशनों की केंद्रीय कार्रवाई समिति द्वारा उड़ीसा हाईकोर्ट की अतिरिक्त बेंचों की मांग को लेकर की गई हड़ताल की पृष्ठभूमि में शुरू हुई। देखते ही देखते आंदोलन उग्र हो गया जब वकील हिंसा पर उतारू हो गए। इस संदर्भ में न्यायालय ने कहा था कि सभी बार एसोसिएशनों के सभी पदाधिकारियों, जिन्होंने हड़ताल में भाग लिया था और हिंसा की थी, उनको अवमानना नोटिस जारी किया जाएगा।
गौरतलब है कि उक्त घटना सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2022 में पारित आदेश के बाद भी हुई थी, जिसमें कोर्ट ने विरोध करने वाले वकीलों को विशेष रूप से चेतावनी दी थी कि वे काम पर वापस लौट आएं या अवमानना की कार्रवाई और लाइसेंस निलंबन का सामना करें।
इस दौरान बेंच ने फटकार लगाते हुए कहा कि हड़ताल के कारण 1 जनवरी से 30 सितंबर 2022 के बीच अधीनस्थ अदालतों में 2,14,176 न्यायिक कार्य घंटे बर्बाद हो गए।
जस्टिस कौल ने कहा
“इसका मकसद व्यावहारिक रूप से न्यायिक प्रणाली के कामकाज को ठप करना था, जिससे मुकदमा करने वाली जनता खतरे में पड़ गई।”
अपनी पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने जिन 190 वकीलों को नोटिस जारी किया था, उनमें से 33 ने अभी तक अपना हलफनामा दाखिल नहीं किया है। मामले पर अगली सुनवाई 07 नवंबर, 2023 को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों की हड़ताल के खिलाफ बार-बार निर्देश जारी किए हैं।