अनिल द्विवेदी
सियासत।कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए कर्नाटक के दलित नेता खड़गे का नाम आगे कर पार्टी ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग के मुकाबले कांग्रेस के रणनीतिकार खड़गे को तुरुप के पत्ते की तरह देख रहे हैं। कांग्रेस के पंडितों का मानना है इससे पार्टी को न सिर्फ कर्नाटक विधानसभा चुनाव में फायदा मिलेगा , बल्कि देशभर के दलित पिछड़े आदिवासी वोट बैंक में अच्छा संदेश जाएगा।
खड़गे का नाम आने के बाद पार्टी के असंतुष्ट G 23 के नेताओं के तेवर भी ढीले पढ़ने लगे, क्योंकि उनकी मुख्य मांग ही रही है कि पार्टी को पूर्णकालिक अध्यक्ष मिले। इतना ही नहीं कांग्रेस आलाकमान यह भी संदेश देने में सफल रहा है की विपरीत परिस्थितियों में भी उसे अपने इकबाल को बुलंद रखना आता है। अध्यक्ष के दावेदार माने जा रहे गहलोत ने न सिर्फ 10 जनपद जाकर माफी मांगी बल्कि रेस से बाहर हो गए। उन्हें यह भी कहना पड़ा कि कांग्रेस उन्हें बहुत कुछ दिया है और वह बिना किसी पद के ही पार्टी के लिए काम करते रहेंगे। जो खड़गे पर्यवेक्षक के रुप में जयपुर गए थे उन्हें विधायकों से मिले बिना वापस लौटना पड़ा था, गहलोत उन्हीं के प्रस्तावक भी बने। गांधी नेहरू परिवार के किसी बाहर के व्यक्ति के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद अब भाजपा के लिए उन पर परिवारवाद का आरोप लगाना भी मुश्किल हो जाएगा।
खड़के की उम्र को लेकर भी विपक्ष सवाल खड़ा कर सकता है
खड़गे की उम्र 80 बरस हो चुकी है इसलिए उनकी उम्मीदवारी पर कुछ लोग सवाल जरूर खड़ा रहे हैं, लेकिन पार्टी के रणनीतिकारों कहना है कि वे देश के जाने माने दलित नेता है। उन्होंने कर्नाटक में 8 बार विधानसभा दो बार लोकसभा के चुनाव जीता है। खड़गे खाटी कांग्रेसी और गांधी नेहरू परिवार के वफादार माने जाते हैं। साथ ही सरकार और संगठन का उन्हें लंबा अनुभव है। कर्नाटक का होने के बावजूद भी वे अच्छी हिंदी बोलते हैं। लंबे राजनीतिक जीवन में उनके ऊपर किसी तरह का आरोप भी नहीं है। उनके कांग्रेस अध्यक्ष बनने से दलित वोट बैंक में काफी अच्छा संदेश जाएगा। साथ ही विपक्षी दलों के नेताओं में भी उनके अच्छे रिश्ते हैं, जिससे 24 के लोक सभा चुनाव में व्यापक गठबंधन तैयार करने में मदद मिलेगी।
सबकी निगाहें राजस्थान पर
कांग्रेस ने कहा है कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी राजस्थान के मुख्यमंत्री के बारे में एक-दो दिन में फैसला ले लेगी ।इसके बाद सभी की निगाहें राजस्थान पर टिकी है ,हालांकि अशोक गहलोत ने कहा है कि उनके लिए कोई पद मायने नहीं रखता और पार्टी को मजबूत बनाना चाहते हैं।