“ना नि” की बोली और ले ली लालू राम में कोठी …
जिले के एक बाबूसाहब के दरबार मे “ना नि ” की भी बोली लग रही है। लिहाजा, साहब ने लालू राम में एक कोठी ले ली है। वैसे तो नौकरशाहों को कुछ खरीदीने के लिए विभागीय अनुमति की जरूरत पड़ती है पर बाबूसाहब को कहाँ किसी की परमिशन की जरूरत है। वे तो बस हरफनमौला है जिसे चाहे फटक देते है और दबोच लेते है तो अनुमति कैसा?
खैर ऊपरी कमाई से धन बरसता हो तो शौंक भी बढ़ जाते हैं। बाबू साहब पर काली कमाई का असर होने लगा तो साहब ने लालू राम कॉलोनी के अपार्टमेंट में एक महंगी कोठी खरीद ली! कोठी महंगी हो तो इंटीरियर भी महंगा होना चाहिए तो साहब ने इंटीरियर पर भी खूब माल लुटाया। खबरीलाल की माने तो कोठी की कीमत लगभग 50 पेटी से ऊपर का है और इंटीरियर 20 पेटी से ऊपर का…!
बाबू से प्रभारी बने साहब को शार्ट कट से धन कमाने की इतनी जल्दी है कि वो पंजीयन के लिए दफ्तर पहुँचने वाले सभी लोगो से माथा देखकर ट्रीट करते हैं। पेपर में छोटी गलती मतलब छांछ के साथ मलाई…। कहा तो यह भी जा रहा है कि पंजीयन में नाम की मात्रा में अंतर होने पर आधा पेटी तक जबरना सूला जा रहा है।
एक डिपार्टमेन्टल सोर्स की माने तो उनका डेली का कलेक्शन एक से दो पेटी का है। वैसे कहा तो यह भी जा रहा है कि बाबूसाहब की पोस्टिंग जिले के दूरस्थ ब्लाक में हैं और काम मुख्यालय के कार्यालय में! मतलब सेटिंग के बादशाह हैं तभी तो पद बाबु का और काम अधिकारी का कर रहे हैं। वैसे बाबू साहब महंगी गाड़ियों के भी शौकीन हैं…!
बानी की “बा ण ” से हुए घायल
बानी की “बा ण ” से निगम का तकनीकी अमला घायल हो गया है। दरसअल जिले के एक विभाग में तकनीकी अमले अटैचमेंट को खत्म करने के आदेश के बाद चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है। कहा जा रहा है कि तकनीकी अमले की ठेकेदारों से साठगांठ की वजह से निर्माण कार्यों से टेक्निकल टीम को दुरुस्त किया गया है।
खैर चर्चा तो की भी है कि विभाग के अधिकारियों में तालमेल की कमी की वजह से बानी को मैदान में उतारा गया है। अब बात करें अगर बानी की तो बानी ने “बा ण ” में तीर भरकर राज्य शासन से पोस्टिंग तो करा ली। लेकिन, प्रभारी उप यंत्री के पद पर! वैसे भी डिपार्टमेंट में दूसरे विभाग के टेक्निकल अमले के अटैचमेंट को लेकर पहले से हो हल्ला मचा हुआ है तो बानी ने ठाना की तीर कमान से तो चलाना ही पड़ेगा।
लिहाजा, साहब ने दंभ भरा और महाभारत के अर्जुन की तरह एक तीर से कई लोगों को भेद दिया। उपयंत्री के प्रभार के आदेश जारी होते ही सेटिंगबाज ठेकेदारों में खलबली मच गई है। खैर अभी बानी के “बा ण ” से विभागीय कार्यों को भेदने की निपुणता बाकी है। उनका रणभेदी “बा ण ” विभागीय कार्यों में चल पाता है या वे खुद ही षड्यंत्र का शिकार हो जाते हैं ये देखना होगा …!
थानेदार पर 376 लेकिन चर्चा 3.75 की…
ऊर्जा नगरी के एक ऊर्जावान थानेदार पर 376 की शिकायत क्या हुई साहब ने मामले को 3.75 में तब्दील कर दिया। लिहाजा, साहब की एक चूक ने बुद्धजीवी वर्ग के इस प्रकरण में नया ट्विस्ट ला दिया है जो इन दिनों शहर से लेकर राजधानी तक सुर्खियां बटोर रही हैं।
सही भी है जब वास्तव में दरोगा जी पर 376 का प्रकरण हो तो चर्चा तो होनी ही है। पीड़िता के दारुण क्रंदन से पुलिस डिपार्टमेंट में खलबली मची तो कुर्सी जाने का साहब को भय सताने लगा। साहब ने प्रकरण को रफादफा करने कुछ सुलझे और उलझे पंडितों को मैनजमेंट करने सक्रिय किया। थानेदार को बचाने स्क्रिप्ट लिखकर शिकायतकर्ता को रिझाने, समझाने का प्रयास किया गया और पुलिसिया लहजे में भी आश्वाशन दिया गया।
यानी कुल जमा यह कि साम-दाम-दण्ड-भेद की सारी नीतियों पर काम हुआ। आखिरकार गंभीर प्रकरण को सुलझाने का दंभ दरोगा जी करने लगे। अब उन्हें क्या पता उनके सलाहकार की गलती से फिर से प्रकरण उलझ जाएगा। हुआ भी यही महिला ने दबाव में कोरे कागजों पर हस्ताक्षर कराने का आरोप लगाते हुए फिर दारुण गुहार लगा दी.. !
अब लोगों के कान पुलिस कप्तान की कार्यवाही की ओर है कि कोई नया धमाका होगा या…। वैसे पीड़िता की शिकायत के बाद जिस कदर शहर का एक गैंग मीडिया मैनजमेंट और महिला पर दबाव बनाने के लिए सक्रिय हुआ उसकी भी शहर में जमकर चर्चा है। हो भी क्यों न आखिर इस लड़ाई में मलाई का सवाल जो था। खैर इसीलिए तो कवि प्रदीप ने लिखा है कोई लाख करे चतुराई, करम का लेख मिटे ना रे भाई…!
धरने पर विधायक और राजधानी में शोर
सूबे में कोयले के अवैध परिवहन और मनीलांड्रिंग को लेकर ईडी से लेकर इनकम टैक्स की टीम डेरा डाले बैठी है। अब तक करोड़ों रुपए की बेनामी संपति के कागजात जांच अधिकारियों के हाथ लगे। इस कारोबार में कुछ नेता, प्रशासनिक अधिकारी और कोयला दलाल जेल में सलाखों तक पहुंच गए हैं। बड़े पैमाने पर खेल गए इस खेल में बड़े खिलाड़ी तक तो जांच एजेंसी पहुंच गई मगर इस खेल के जो छोटे और मैदानी खिलाड़ी हैं उन तक छत्तीसगढ़ की पुलिस नहीं पहुंच पाई।
अगर ऐसा होता तो विधायक को चरचा पुलिस थाने में धरने पर नहीं बैठना पड़ता वो भी अपनी ही सरकार के खिलाफ। बैकुंठपुर की विधायक एवं सरकार की संसदीय सचिव अंबिका सिंहदेव के धरने पर बैठने का शोर राजधानी रायपुर तक पहुंच रहा है। लोग अब सवाल उठा रहे हैं कि कोल माइंस में अफसरों और सुरक्षा गार्डो को रंगदारी दिखाने वाले छोटे कोल माफिया पर कब लगाम लगेगी। कोल माइंस में कोयला के साथ डीजल और कबड़ा चोरी होना तो रोजमर्रा की बात हो चली है। अब विधायक के धरने से विपक्ष को बैठे बैठाए सरकार को घेरने का मौका मिल गया है।