Religious war on synod: जंगल की रानी और सड़क की कहानी,तीर भी चलाने हैं और परिंदे भी बचानें हैं..गंदा है पर धंधा है,अबला पर बरसी आसमानी बला..

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जंगल की रानी और सड़क की कहानी

वैसे तो हर कहानी में जंगल का राजा होता और उसकी अपनी कहानी होती है, पर जंगल में इस बार रानी है और उसकी सड़क की कहानी भी है। दरअसल मामला पसरखेत रेंज का है। 2 किमी की डब्ल्यूबीएम सड़क निर्माण के लिए 30 लाख मंजूर किए गए हैं। अब सड़क निर्माण वैसे तो डिपार्टमेंट का काम है लेकिन, काम एक अघोषित ठेकेदार कर रहा है। वो भी अपने कंडीशन में..!

मतलब 30 लाख की सड़क को 5 लाख में बनाने का ठेका। सड़क निर्माण बिना मापदंड के कुछ गिट्टी और वन विभाग की मिट्टी से बन रहा है। मामला तो तब सुर्खिया बटोरने लगा जब राजस्व भूमि से मुरुम निकालकर सड़क में उपयोग करने लगे। जब इसकी भनक राजस्व अमले को लगी तो मौका में चौका मारने अफसर पहुंच गए।

राजस्व अमला को देखते ही ठेकेदार सर से पैर तक पसीना पसीना हो गया। आखिर रायल्टी चोरी का जो मामला था। सो ठेकेदार ने स्थानीय लाइजनरों से कंसर्ट किया और मामले को रफा दफा करने की स्क्रिप्ट लिखी। अब घर आई लक्ष्मी को भला कोई छोड़ता है सो राजस्व अमले ने भी घर आई लक्ष्मी का स्वागत किया और मामला रफा दफा करने का आश्वासन दे दिया। अब इसमें मजे वाली बात यह है सड़क निर्माण बिना टेक्निकल पर्सन के कैसे हो रहा है मतलब “कोका कोला नहीं यहाँ कैम्पा में गोला ही गोला है”…!

तीर भी चलाने हैं और परिंदे भी बचानें हैं…

पुलिस की हत्या के आरोपियों को पकड़ने चल रही जांच के बीच शांत रहकर कप्तान को “तीर भी चलाने हैं और परिंदे भी बचाने हैं”, सो समय तो लगेगा का संदेश दिया है। मामला खाकी पर हुए प्रहार की गुत्थी सुलझाने का है। ब्लाइंड मर्डर को सुलझाने में भले ही वक्त लग रहा हो लेकिन, हत्यारे की आंखों में पुलिस झांक चुकी है।

हत्या को लभगभ 10 दिन बीत चुके हैं और पुलिस की कार्रवाई को लेकर 10 तरह की बातें भी! इन सबके बीच कप्तान की चुप्पी और एक्सपर्ट टीम की मेहनत कई संदेश दे गए हैं। कहते है” मन का हो तो अच्छा है और जब मन का न हो तो और अच्छा है ” ठीक इस शब्द पर फोकस करते ही पुलिस विभाग की टीम बिना थके बिना रुके रहस्यमयी हत्या को सुलझाने में लगी है।

विभागीय पंडितों की माने तो ऐसे हत्या के मामले में बहुत ही सूक्ष्मता से गहरे तक जांच करनी होती है क्योंकि “तीर भी चलाने हैं और परिंदे को भी बचाने हैं” जिससे सही आरोपियों की पहचान की जा सके।

दशक के इस चर्चित हत्याकांड पर पूरे जिलेवासियों की नजर टिकी है और पुलिस की नजर आरोपियों पर! कहा यह भी जा रहा है जिस अंदाज में वारदात को अंजाम दिया गया है उससे अपनों के हाथ होने की संभावना बढ़ जाती है।

गंदा है पर धंधा है

जिले में इन दिनों सेवा करने वाले नेताओं की बहार है। हो भी क्यों न आखिर सेवा धंधा जो बन गया है। दरसअल हम बात कर रहे है बालको आंदोलन के त्रिपक्षीय वार्ता की। आंदोलन करने वाले तीन दिन तक डटे रहे और अपने हक की आवाज बुलंद करते रहे। लेकिन, जब समझौता हुआ तो महफ़िल का श्रेय नेता जी ने लूट लिया।

आंदोलन के समापन पर हुए घटना क्रम पर ये पंक्ति “महंगाई में शरीफों को ईमान बेचता हूं दिल की बात छोड़ो मैं जान बेचता हूं” एल्युमिनियम नगर के एक कारोबारी कम नेता पर सटीक बैठता है। एल्युमिनियम कंपनी के प्रदूषण और मनमानी का मार झेल रहे आमजन जब भी आन्दोलन करते हैं तो श्रेय लेने टपक जाते हैं नेता जी।

खबरीलाल की माने तो प्रबन्धन का हाथ नेता जी के सर पर है तो वे उनके प्रतिनिधित्व करने और जनता का हितचिंतक बनने समय समय पर ड्रामे करते रहते हैं। वे कहते हैं क्या करें जनता के बीच जाकर उनके जैसा बनने का नाटक करना किसी फिल्म में कलाकारी करने से कम नहीं है। वैसे ठीक भी है नेतागिरी किसी धंधे से कम थोड़ी है। तभी तो कह रहे है गंदा है पर ये धंधा है।

धर्मसभा पर धर्म युद्ध

राजधानी रायपुर में देशभर से पहुंचे साधु संतों ने आज धर्मसभा की। धर्मसभा में धर्म की बात हुई….धर्मातंरण का मुद्दा भी गूंजा, हिन्दू राष्ट्र बनाने का संकल्प भी लिया गया। मगर, बात यहीं खत्म नहीं हुई।

धर्मसभा को लेकर सूबे के सीएम और पूर्व सीएम में धर्म युद्ध शुरु हो गया। धर्म सभा के औचित्य पर सवाल उठाते हुए बघेल ने कहा कि संतों को हिंदू राष्ट्र की मांग केंद्र सरकार से करना चाहिए। केंद्रीय गृह मंत्री भी आ रहे हैं उनसे करना चाहिए, जिन्होंने भी कहा है कि देश संविधान से चलेगा। बहुत सारे साधु और संत भाजपा समर्थित हैं और यह लोग बरगलाने का काम कर रहे हैं।

भाजपा का नाम आने पर भला रमन सिंह कहा चुप रहने वाले थे।
रमन ने कांग्रेस को सीख देते हुए कहा कि, भूपेश को समझ नहीं आएगा, यह साधु-संतों की रैली है और साधु-संत किसी भी पार्टी के नहीं होते, वह केवल सर्व समाज के होते हैं। यह एक धर्म सभा है। भूपेश को तो सभी भाजपा के ही दिखते हैं। पता नहीं कांग्रेस में कौन हैं।

अबला पर बरसी आसमानी बला

राजधानी के बूढ़ातालाब ​के धरना स्थल पर करीब 154 दिन से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठी दिवंगत शिक्षाकर्मियों की विधवा महिलाओं पर न तो सरकार मेहरबान हो रही है और न भगवान…। अब तो भगवान भी इनके सब्र की परीक्षा लेने पर तुला हुआ है।

अनुकंपा नियुक्ति की आस में पाई.पाई जोड़कर पंडाल लगाए बैठी इन महिलाओं को आज राजधानी के लोगों ने हवा पानी और तूफान में बारिश से लड़ते भींगते देखा…। मगर क्या करें जब तक सरकार की इन अनुकंपा नहीं हो जाए तब तक इनकी परेशानी दूर नहीं होने वाली।

राजधानी में विधानसभा चल रही है। नेता मंत्रियों का आना जाना भी चल रहा है। लेकिन, इनकी कोई सुध लेने वाला कोई नहीं है, यहां तक जिला प्रशासन के अफसर भी इस ओर आने से बचते हैं। भला इनसे हमदर्दी दिखाकर सरकार की नाराजगी मोल लेना कहां की बुद्धिमानी है।

     ✍️अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा