मैडम माया पर चला ट्रांसफर का….
पुलिस महकमा के अधीनस्थ कर्मचारियो पर हंटर चलाने वाली मैडम माया पर सरकार ने ट्रांसफर का हंटर चला दिया है। सरकार उनके काम काज से नाराज होकर उनका पोस्टिंग मैदानी एरिया से हटाकर बीहड़ जंगल में किया हैं। अब मैडम खुद अपने हमदर्दों से दर्द बांटते हुए आदेश को संशोधन कराने में लगी हैं। हालांकि उनका ये सपना सपना ही रहने वाला हैं।। वैसे तो ट्रांसफर एक रूटीन प्रक्रिया है लेकिन, जब समय से पहले किसी का स्थांतरण हो तो सवाल तो उठता है। कहा तो यह भी जा रहा मैडम कि पोस्टिंग के बाद अनुविभाग के थाने में बैठे थानेदारों से तालमेल नहीं बैठ पा रहा था।
हालांकि वे हमेशा अपने पसंदीदा टीआई की पोस्टिंग के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाती रही, पर वे अपनी मंशा में कामयाब नहीं हो पाई उल्टा उनका ही ट्रांसफर हो गया और वो भी उस बीहड़ जंगल मे जहां पानी भी खुद निकालकर पीना पड़ेगा। मतलब साफ है कि जैसा आप दूसरों को देंगे वैसा ही आपको वापस मिलेगा। चर्चा इस बात की भी कि पूरे प्रदेश में उरला और रायगढ़ के बाद यही अनुविभाग मलाईदार है। पुलिस के पंडित बताते है कि यहाँ के लिए बड़ी बोली लगती है। क्योंकि जिला के सभी बड़े थाना इसी के अंदर शामिल हैं।
IPL ऑक्शन की तरह लग रही बोली…
खनिज संपदा वाले विभाग में पोस्टिंग के लिए IPL मैच की तरह ऑक्शन चल रहा है। यूं तो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में रुपया का रुतबा घट रहा हैं। इसके बाद भी माइनिंग में तैनाती के लिए बोली बढ़ रही है। खबरीलाल की माने तो माइनिंग में तैनाती के लिए सैनिकों से 25 से 30 हजार तक की डिमांड की जा रही हैं। इतना ही नहीं जब तक जवान खनिज विभाग में ड्यूटी करेंगे तब तक हर महीने चढ़ावा अलग से!
नगर सैनिकों की लग रही बोली को लेकर जानकार भी माथा पिट रहे है और कह रहे हैं कि अब तक तो थाना चौकियों की…. सुने थे। मगर अब नगर सैनिकों का भी। ख़ैर यह मामला कोई नया नहीं है। इससे पहले भी थाना चौकियों में पोस्टिंग के साथ कमाऊ जगह में जाने वाले जवान भी जबान देकर अपने उच्च अधिकारियों को इटरटेंट करते रहे हैं।
ये बात अलग है कि इस तरह से ओपन बोली की परंपरा ने सबको चौका दिया हैं। ठीक भी है खनिज विभाग आखिर है तो धन कुबेरो का ! तभी तो पूर्व में पदस्थ साहब के घर आईटी का छापा के साथ मिले काला धन ने साबित कर दिया कि असली खनिज संपदा का उपयोग तो माइनिंग के अधिकारी ही कर रहे हैं।
गंगा की सौगंध और छत्तीसगढ़िया ओलंपिक
सूबे में चुनावी त्यो-हार का उत्सा्ह दिखने लगा है, तभी तो गंगा जल, गौ माता, कौशल्या माता, भांचा राम जैसे मंत्र सियासी पंडि़त अपनी-अपनी जुबान से बुदबुदाने लगे हैं। शराब बंदी को लेकर भाजपा गंगाजल कलश यात्रा लेकर गांव गांव पहुंच रही है वो कांग्रेस को झूठे वादे करने वाली सरकार बताने में लगी है तो कांग्रेस उसके जवाब में हमलावर हो गई। पूर्व मुख्यगमंत्री के आरोप पर उन्हें कानूनी नोटिस देने की बात हो रही है, पर प्रदेश में शराब बंदी होगी कि नहीं इस पर सभी की जुबान बंद है। यानि नेताओं की लफड़े झगड़े में राम तेरी गंगा मैली हो गई।
अब शराबबंदी की बात छोड़ो ये नेता और ठेकेदारों की बीच की बात है जनता इस लफड़े में क्यों पड़े, आओ गुल्ली डंडा खेले। खेलो इंडिया की तर्ज पर होने वाले छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में भौंरा, बांटी, गिल्ली-डंडा और पिट्ठुल खेलने का अलग ही मजा है। इन खेलों के साथ आपको अपने छत्तीसीगढि़या होने का अहसास होने लगेगा, रही शराबबंदी की बात वो बाद में देख लेंगे।
साहब का प्रमोशन और फिर अटैचमेंट…
जंगल विभाग में चल रहे जंगल राज में एक साहब का प्रमोशन हुआ और पोस्टिंग भी, पर उनको दीगर जिला रास न आया! फिर साहब ने जुगाड़ लगाया और फिर से मलाई मलाई खा रहे हैं।मतलब साहब को बढ़ा हुआ वेतन भी मिल रहा और डिवीजन के कार्यो का कमी…भी!
वैसे तो विभाग की खरीदी और वन्यप्राणियों के नाम से मिलने वाले फंड को विभागीय अधिकारी डकार रहे हैं। तभी तो चापलूस और करप्ट कर्मचारियों को डिवीजन खूब भा रहा है। बात है विभाग में पदस्थ एक अधिकारी की.. तो पदोन्नति के साथ उनका तबादला बिलासपुर वृत्त में हुआ था। उनके कुर्सी छोड़ने के बाद विभाग के कुछ और कर्मचारियों को उम्मीद जगी कि चलिए अब हमें भी डिवीजन की कप्तानी पारी खेलने का मौका मिलेगा, पर उनकी आशाओं पर तुषारापात हो गया।
साहब तो लंबे समय से विभाग में कप्तानी कर रहे हैं सो अपने अनुभव का लाभ लेते हुए जुगाड़ ऐसे लगाया कि सब चारों खाने चित्त हो गए। साहब बिलासपुर पदस्थ रहकर खुद को कोरबा डिवीजन में अटैच कराकर फिर से चौका छक्का लगा रहे हैं। अब उनके इस जुगाड़ को देखकर विभागीय साथी कसमसा रहे हैं। बेचरे एक दूसरे को फिर रहे हैं ” क्या बताए हमारी तो किस्मत ही खराब हैं।” खैर जिस अंदाज में बाबू की कुर्सी पर साहब का कब्जा है उससे तो बाहर के लोगों को कम अंदर बैठे उनके सहकर्मी ज्यादा टेंशन में हैं।
मुझे पीने का शौक नहीं पीता हूं गम भुलाने को…
अस्सी के दशक में आई फिल्म कुली का ये गीत शराबी भाइयों के हृदय पटल पर आज भी छाया हुआ है। पर हैरत कि बात यह है कि जिस शराब को गम भुलाने के लिए पीया जा रहा है उस ब्रांड को गायब कर मंदिरा प्रेमियों को गमगीन किया जा रहा है।
सुरा प्रेमियों की माने तो सरकारी शराब दुकान की मनमानी चरम पर है। कभी ब्रांड के नाम पर बिना ब्रांड की बोतल तो कभी कम पैकिंग की बोतल दुकानों से गायब कर दी जा रही है। मतलब ग्राहकों की जेब पर डांका डालने के लिए कई तरीका इजाद किया जा रहा है। कहा तो यह भी जा रहा हैं कम दाम की शराब यानी माध्यम वर्गीय लोगों के लिए बिक्री के लिए बनी शराब में मिलावट भी जमकर हो रही हैं। हो भी क्या न क्योंकि शराब की रॉयल्टी से ही सरकार को आर्थिक मजबूती मिल रही है और अधिकारियों को मुनाफा। तभी तो कहा जाता है शराब माफिया इस कदर हावी है कि सरकार बना भी सकते है बदल भी।
उच्च अधिकारियों से मिली छूट की वजह से आबकारी विभाग के अधिकारी पानी से पैसा बनाकर धन कुबेर बन रहे हैं। तो दुकान चाहे सरकारी हो या निजी मिलावट करना तो शराब कारोबारियों का जन्म सिद्ध अधिकार है। हाँ ये बात अलग है उच्च अधिकारियों का डंडा जब चलता है तो मिलावटी शराब फिर से शुद्धता मिलना शुरू हो जाती है। खैर इस वाइन के खेल में छोटे पियक्कड़ बेमोल हो गए हैं।
✍️ अनिल द्विवेदी , ईश्वर चन्द्रा