Unemployment Benefits: Seeing the anger in the youth, the Chief Minister remembered the promises made 4 years ago
Unemployment Benefits
रायपुर। Unemployment Benefits : आज से लगभग साढ़े 4 साल पहले 2018 विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में अनेकों झूठे वादे किए जिन्हें आज तक वो पूरी नहीं कर पायी उन्हीं वादों में से एक था प्रदेश के बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने का वादा जिसका कियान्वयन करने के बजाय दाऊ भूपेश बघेल की सरकार बेरोजगारी के झूठे आकड़ों का प्रचार करती रही है। अब इस घोषणा के बाद प्रदेश के युवाओं के मध्य यह भावना है कि 6 महीने बाद भूपेश बघेल स्वयं बेरोजगार होने वाले हैं, इसीलिए अंतिम समय में अपनी व्यवस्था कर रहे हैं”
गौरतलब है कि 2018 विधानसभा चुनाव (Unemployment Benefits) के पूर्व स्वयं राहुल गाँधी ने स्वयं छत्तीसगढ़ आकर माता बम्लेश्वरी की पावन भूमि डोंगरगढ़ से अपने घोषणापत्र में यह वादा प्रदेश के युवाओं से किया था लेकिन एक ओर जहाँ उन वादों को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नहीं निभाया वहीं दोबारा यह घोषणा कर दी है कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार नए वित्तीय वर्ष से बेरोजगारी भत्ता देने की शुरुआत करने जा रही है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए इसलिए “घोषणा पत्र” की कोई अहमियत नहीं है क्योंकि यह उनके समकक्ष रहे तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष टी एस सिंहदेव ने बनाया था? क्या उन्हें राहुल गाँधी के वादे को दरकिनार कर दोबारा घोषणा करने की आवश्यकता थी? क्या केवल झूठे वादों के दम पर सत्ता पाना ही दाऊ भूपेश बघेल की एकमात्र प्राथमिकता है? इन्हीं सवालों के साथ भारतीय जनता पार्टी का यह भी कहना है कि जब पहले ही घोषणा पत्र में बेरोजगारी भत्ता देने का वादा था तो उसे पूरा न करके 4 साल बाद दोबारा वही वादा करने का क्या कारण है?
यहाँ गौर करने योग्य बात यह है कि स्वयं टी एस सिंहदेव से भी कांग्रेस ने उन्हें ढाई साल मुख्यमंत्री बनाने का झूठा वादा किया था जो पूरा न होने पर स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव को अब यह कहना पड़ रहा है कि चुनाव लड़ना है कि नहीं यह भी तय नहीं है तो ऐसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस से यह कैसे उम्मीद की जाए कि वह आगे भी अपना वादा निभाते हुए बेरोजगारी भत्ता देना जारी रखेगी।
बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा के साथ ही प्रदेश में उठने लगे हैं सवाल, क्या युवाओं के बीच असंतोष की वजह से सरकार ने दबाव में लिया है फैसला?
एक तरफ कांग्रेस सरकार के वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री ने बेरोजगारी भत्ते के वादे को सिरे से ख़ारिज करते हुए पूर्व में बयान दिया था, जहाँ यह कयास लगाये जा रहे थे कि कांग्रेस सरकार अपने घोषणापत्र को पूरा करने से बचना चाहती है वहीं अंतिम वर्ष के गणतंत्र दिवस पर कांग्रेस सरकार का यह फैसला इस ओर इशारा कर रहा है कि शासन की स्थिति युवाओं के मध्य ठीक नहीं है।
अपने 4 वर्ष पूरे होने पर भूपेश बघेल की सरकार ने इसे “गौरव दिवस” बताया था, जिसमें छत्तीसगढ़ की सरकार ने बड़े-बड़े होर्डिंग के माध्यम से बताया कि छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी दर केवल 0.1% है तब प्रश्न यह उठता है कि जब प्रदेश में 0.1% से भी कम बेरोजगारी की स्थिति है तब शासन की घोषणा और दावों में बड़ा विरोधाभाष देखने को मिल रहा है।
इसके साथ ही प्रदेश के युवाओं में यह प्रश्न है कि छत्तीसगढ़ में लगभग 19 लाख पंजीकृत बेरोजगार युवा हैं, ऐसे में क्या छत्तीसगढ़ सरकार इन सभी 19 लाख बेरोजगारों को 2500 रूपये प्रतिमाह देने वाली है या फिर यह योजना भी सिर्फ कागजों और कांग्रेसियों तक ही सीमित रह जाएगी।
इस मामले पर पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने कहा कि
“चुनाव सामने देखकर दाऊ भूपेश बघेल को बेरोजगारी भत्ता याद आ गया। 52 महीनों तक युवाओं के ₹2500 का जिक्र नहीं किया, क्या कांग्रेस का घोषणापत्र सिर्फ आखिरी 6 महीनों के लिए था?
राहुल गाँधी के वादे के अनुरूप 4 साल से बकाया ₹12000 करोड़ तत्काल बेरोजगार युवाओं को दिए जाने चाहिए।
गौरतलब है कि पहले कांग्रेस के इन वादों को टी एस सिंहदेव ने घोषणापत्र में डाला और इसे पूरा नहीं किया, सत्ता में आने से पहले भूपेश बघेल ने प्रदेशवासियों से इन्हीं वादों को दोहराया लेकिन इसे पूरा नहीं किया, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गाँधी ने छत्तीसगढ़ आकर माता बम्लेश्वरी की पावन भूमि से यह वादे किये लेकिन इसे पूरा नहीं किया। अब पुनः चुनाव समीप आते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल उन्हीं वादों को दोहरा रहे हैं ऐसे में जनता के पास इन वादों पर भरोसा करने की कोई वजह ही नहीं है।
आज जनता भूपेश बघेल (Unemployment Benefits) के इस वादे के बाद उनसे यह सवाल कर रही है कि जो कांग्रेस सत्ता में आने के पहले वादे करती है और सत्ता में आने के बाद उन वादों के विपरीत कार्य करती है जिससे प्रदेश में बेरोजगारी और अपराध अपने चरम पर आ जाते हैं और चुनाव समीप आते ही पुनः उन्हीं वादों के राग अलापने लगती है।
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