कोरबा। कछुओं से जुड़ी मान्यताएं ही उनके स्वतंत्रता की दुश्मन बन गई हैं। प्रकृति और पर्यावरण के लिए जरूरी कछुए घर और दुकानों की कैद से आजाद नहीं हो पा रहे हैं। जिला मुख्यालय कोरबा के विभिन्न स्थानों पर सड़क किनारे मछली के साथ पकड़ कर लाये गए कछुए खुलकर बेचे जा रहे हैं। इन्हें आजाद कराने की जिम्मेदारी वन विभाग की है, लेकिन अधिकारी जिले में जागरूकता कार्यक्रम तक नहीं चला रहे हैं।
वन विभाग द्वारा संरक्षित प्रजाति में शामिल किए गए पशु-पक्षियों की शहर में धड़ल्ले से खरीद-फरोख्त चल रही है। रामपुर थाने से कुछ दूर पर ही वाल्मीकि आश्रम के आसपास सड़क पर रोज कछुए बिक्री के लिए लाए जा रहे हैं।
कुछ वास्तुविद कहते हैं कि कछुए को कैद करने से समृद्धि आती है लेकिन इसके विपरीत कुछ वास्तुविद कहते हैं कि जो कछुए या किसी भी जीव को कैद करने की सलाह देते हैं उनको जीवन में एक बार जेल जाने की सजा मिलती ही है।
शहर के कुछ दुकानों में खुलेआम एक्वेरियम में कछुए रखे हुए हैं। जरा से लालच के लिए दुकानदार और तस्कर प्रकृति के संतुलन में बेहद अहम कड़ी कछुओं की कीमत 500 से 700 रुपए ही लगाते हैं। शहर के लगभग सभी फिश प्वॉइंट्स एक्वेरियम में कछुओं की खुलेआम बिक्री हो रही है।