बिलासपुर- मांग की रफ्तार ऐसी बनी रही, तो मुंगेली और डोंगरगांव का पलाश फूल कीर्तिमान बना सकता है क्योंकि हर्बल कलर बनाने वाली यूनिटें यहां के फूलों की खरीदी प्राथमिकता से कर रहीं हैं।

होली के लिए होलसेल मार्केट की डिमांड रंग बनाने वाली इकाइयों तक पहुंचने लगी हैं। इसमें बड़ा परिवर्तन यह देखा जा रहा है कि इस बरस, हर्बल कलर की डिमांड में हैरत में डालने वाली तेजी आ रही है। ऐसे रंग की खरीदी तो दूर, पूछ-परख भी नहीं है, जिनसे त्वचा को हानि पहुंचने की आशंका बनती है। रंग बनाने वाली यूनिटों के अनुसार हर्बल कलर की हिस्सेदारी इस बरस रंग बाजार में लगभग 75 फ़ीसदी तक जाने की संभावना है। यही वजह है कि पलाश के फूलों की मांग और कीमत दोनों बढ़ी हुई है।

 

 

निकली मांग यहां से

दिल्ली और उत्तर प्रदेश में चल रही हर्बल कलर निर्माण इकाइयों की मांग छत्तीसगढ़ पहुंच चुकी है। हालांकि मांग की तुलना में आवक कमजोर है लेकिन इसमें बढ़ोतरी के संकेत मिलने लगे हैं। यह इसलिए क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों से पलाश के फूलों का आना चालू हो चुका है। इस बरस इकाइयों की नजर, गुणवत्ता पर ज्यादा है।

मुंगेली और डोंगरगांव

गुणवत्ता के लिहाज से अपने प्रदेश के मुंगेली और डोंगरगांव क्षेत्र से आने वाले पलाश के फूल बेहतर माने जाते हैं। इस बार भी यहीं से होने वाली आवक को खरीदी में पहली प्राथमिकता दी जा रही है। कीमत भी अपेक्षाकृत यहां की फसल को ज्यादा मिल रही है। तेजी के संकेत इसलिए भी बने हुए हैं क्योंकि चाही जा रही मात्रा नहीं मिल पा रही है।

यह है कीमत

समर्थन मूल्य पर पलाश के सूखे फूलों की खरीदी छत्तीसगढ़ सरकार 1150 रुपए क्विंटल की दर पर कर रही है। ओपन मार्केट में इसकी खरीदी 1100 से 1200 रुपए क्विंटल की दर पर हो रही है। खरीदी के लिए जरूरी गुणवत्ता यदि मानक पर खरी उतरी, तो भाव और भी ज्यादा मिल सकते हैं, जैसा मुंगेली और डोंगरगांव की फसल को मिल रहा है।

भाव अच्छे हैं

हर्बल कलर बनाने वाली यूनिटों की खरीदी से भाव में तेजी आ रही है। गुणवत्ता के लिहाज से मुंगेली और डोंगरगांव की फसल बेहतर मानी जाती है।
– सुभाष अग्रवाल, एस पी इंडस्ट्रीज, रायपुर

 

पर्यावरण अनुकूल

पलाश फूलों का उपयोग रंग बनाने के लिए किया जाता है ।इन्हीं से होली के रंग बनाए जाते हैं l कृत्रिम रासायनिक रंगों की सुलभता ने भले ही लोगों को प्रकृति से दूर कर दिया हो, लेकिन रासायनिक रंगों से होने वाले नुकसान और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के कारण लोग दोबारा प्रकृति की ओर रुख करते हुए पलाश के फूलों का इस्तेमाल रंगो के लिए करने लगे हैं । वर्तमान में आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में स्व-सहायता समूह के माध्यम से हर्बल गुलाल बनाने का कार्य प्रगति पर है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर