आम आदमी को तारीख और धक्के.. सांसदों को VIP ट्रीटमेंट, ‘एम्स’ को खुद इलाज की जरूरत?

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Delhi AIIMS: क्या आपने भी कभी एम्स में इलाज के लिए धक्के खाए हैं? क्या आपको भी एम्स से बिना बेड और इलाज के लौटना पड़ा है? क्या आपको भी इलाज के नाम पर महीनों या सालों बाद की तारीख मिली है? तो आज आपको ये जानकारी जरुर होनी चाहिए कि आम आदमी से वसूले गए टैक्स से चल रही संसद और आम आदमी के वोटों से संसद पहुंचे सांसदों को इलाज देने के लिए एम्स ने क्या वीआईपी व्यवस्था की है. एम्स के नए-नए निदेशक बने डॉ एम श्रीनिवास की एक चिट्ठी वायरल हुई है, जिसमें लोकसभा सचिवालय को पत्र लिखकर ये बताया गया है कि सिटिंग एमपी को सुचारू तरीके से इलाज मिले इसके लिए SOP यानी Standard operating procedure तैयार कर लिया गया है.

एम्स में सांसदों को वीआईपी व्यवस्था

सिलसिलेवार तरीके से पत्र में बताया गया है कि सांसद को ओपीडी – एमरजेंसी में दिखाने और भर्ती होने – तीनों ही हालातों के लिए क्या-क्या व्यवस्था रहेगी. अस्पताल एडमिनिस्ट्रेशन ने इस काम के लिए एक कंट्रोल रुम और 24 घंटे के लिए एक ड्यूटी ऑफिसर की व्यवस्था कर दी है. ये ड्यूटी ऑफिसर एक डॉक्टर ही होगा – जिसका जिम्मा होगा सांसद महोदय को बिना देरी सही और सुचारु इलाज दिलाना. इसके लिए तीन लैंड लाइन और एक मोबाइल नंबर भी जारी कर दिया गया है.

वायरल हो रही चिट्ठी

चिट्ठी में बताया गया है कि लोकसभा सचिवालय या एमपी का पर्सनल स्टाफ इन नंबरों पर संपर्क करके बीमारी के बारे में जानकारी दे सकता है और ये बता सकता है कि वो किन डॉ साहब को दिखाना चाहते हैं. इस फोन के तुरंत बाद ड्यूटी ऑफिसर जो कि खुद भी एक मेडिकल प्रोफेशनल ही होगा – वो डिपार्टमेंट के डॉ से संपर्क साधेगा. जरुरत हुई तो उस विभाग के HOD से भी संपर्क किया जाएगा. अप्वाइंटमेंट के दिन सांसद महोदय एम्स में एमएस ऑफिस में बने इस कंट्रोल रुम में पधार सकते हैं – जहां से उन्हें सुरक्षित डॉक्टर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी एम्स प्रशासन उठाएगा.

वीआईपी कल्चर एम्स में कोई नई बात नहीं..

अगर सांसद साहब को एमरजेंसी हालात में लाया जाता है तो पेशेंट केयर मैनेजर उन्हें रिसीव करेगा और ये सुनिश्चित करेगा कि उन्हें बिना देरी के इलाज मिल सके और उन्हें इंतज़ार ना करना पड़े. सांसदों की सिफारिश से आए मरीजों को मदद करने के लिए मीडिया और प्रोटोकॉल विभाग काम करेगा. हालांकि ये वीआईपी कल्चर एम्स में कोई नई बात नहीं है – लेकिन चिट्ठी सामने आने से एक बार फिर आम आदमी के जख्म हरे हो गए हैं. एम्स के कई डॉक्टर खुद इस कल्चर के विरोध में हैं लेकिन प्रशासन की चिट्ठी सामने है और पालन करना सबकी मजबूरी. अब आप सोचिए आपने एम्स में कब कब कितना इंतज़ार किया और बदले में इलाज मिला या तारीख? ऐसी सुचारु व्यवस्था एम्स में इलाज कराने वाले मरीज और उसके तीमारदारों के सपने में भी नहीं आ सकती.