The Duniyadari : कोरबा। कोरबा जिले में कोयला खदानों के विस्तार, हसदेव अरण्य के विनाश और बांगो बांध से हुए विस्थापन का दर्द अब भी लोगों के जीवन में गहराई से महसूस किया जा रहा है। विस्थापितों के अधिकारों की लगातार हो रही अनदेखी को देखते हुए कोरबा में प्रदेश स्तरीय विस्थापन पीड़ितों का महासम्मेलन आयोजित किया जाएगा, जिसे छत्तीसगढ़ बचाव आंदोलन का समर्थन मिला है।
प्रेस वार्ता में वक्ताओं ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि 5वीं अनुसूची के ग्रामसभा अधिकारों और भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के प्रावधानों को पूरी तरह लागू किया जाए। उन्होंने यह भी मांग की कि पहले से अधिग्रहित जमीनों का मुआवजा वर्तमान बाजार दर के अनुसार दिया जाए।
विस्थापन से जुड़ा पुराना जख्म
1960 के दशक से कोरबा में कोयला खदानों के विस्तार के साथ ही विस्थापन की प्रक्रिया जारी है। यह समस्या अब केवल वर्तमान नहीं, बल्कि भविष्य की सामाजिक और आर्थिक संरचना पर भी गहरा प्रभाव डाल रही है।
कृषि भूमि का विनाश और बढ़ता संकट
लगातार खनन से कोरबा की उपजाऊ भूमि नष्ट हो चुकी है। हसदेव के जंगलों की कटाई ने जल और पर्यावरण संकट को और बढ़ा दिया है। खेती पर निर्भर ग्रामीणों की आजीविका खत्म हो रही है और खाद्य सुरक्षा पर भी खतरा मंडरा रहा है।
रोजगार और खदान बंदी की चिंता
कोयला उद्योग से लाखों लोग सीधे या परोक्ष रूप से जुड़े हैं, लेकिन खदानों के बंद होने के बाद रोजगार का बड़ा संकट पैदा होगा। न खेती बचेगी, न कोयले पर आधारित अर्थव्यवस्था—ऐसे में कोरबा के युवाओं का भविष्य अधर में रहेगा।
भूमि अधिग्रहण कानून का उल्लंघन
वक्ताओं ने आरोप लगाया कि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में पारदर्शिता पूरी तरह गायब है। धारा 101 के तहत पांच साल तक अनुपयोगी भूमि वापस लौटाई जानी चाहिए, लेकिन प्रशासन ऐसा नहीं कर रहा। उल्टा प्रभावित परिवारों पर जबरन गांव खाली कराने का दबाव बनाया जा रहा है।
छोटे खातेदारों पर सबसे बड़ी मार
पहले हर खातेदार को रोजगार देने का नियम था, जिसे बदलकर “दो एकड़ पर एक नौकरी” कर दिया गया है। इससे छोटे किसानों को पूरी तरह बाहर कर दिया गया है। हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद कई मामलों में एसईसीएल ने रोजगार देने से इनकार कर दिया है।
अब संघर्ष ही आखिरी रास्ता
वक्ताओं ने कहा कि अब यह आंदोलन केवल मुआवजे की मांग तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह कोरबा के अस्तित्व और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की लड़ाई बन चुका है।
महासम्मेलन में प्रदेशभर के विस्थापित, किसान संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल होंगे ताकि एक साझा रणनीति बनाकर प्रभावितों को उनका हक दिलाया जा सके।