बलवंत सिंग खन्ना
लेखक, विचारक
साल 2007 मार्च का महीना तब मेरी उम्र लगभग 17 वर्ष 9 महीने रही होगी तब स्कूल में 12वी कक्षा की परीक्षा समाप्त हुई ही थी कि 2 दिन बाद ही मैं आईटीआई की पढ़ाई हेतु तमनार जाने के लिए घर से निकला तब बाबू जी सायकल से मुझे घर से बस पकड़ने के लिए मोड़ तक छोड़ने आए थे मोड़ मतलब अपने गाँव से 2 किलोमीटर की दूरी में मुख्य सड़क जहाँ पर बसें रुका करती थी गांव के सभी लोग उसी मोड़ से तब और आज भी बसे पकड़ते हैं बाबू जी ने मुझे बस बिठाते वक़्त आशीर्वाद में केवल इतना कहा कि बेटा मोबाइल का बेफिजुल उपयोग मत करना और पैसो को देखकर खरचना तब हर हाथ में आज के जैसे मोबाइल नहीं हुआ करता था उस वक्त मोबाइल का चलन अपने प्रारम्भिक स्तर में था तब मेरे पास रिलायंस कंपनी का LG मोबाइल मून लाइट मॉडल हुआ करता था जिसमे मैं 10 रूपये वाला सबसे छोटा रिचार्ज कर के केवल मिस कॉल देने के लिए उपयोग करता और जब गलती से सामने वाला मेरा मिस कॉल कट होने से पहले ही उठा लेता तो मेरा बैलेंस कट हो जाता तब 10 रूपये के रिचार्ज से मिले 7 रूपये 32 पैसे मिसकाल में ही खत्म हो जाते थे तब और आज में काफी बदलाव हम सब देख रहे हैं खैर हम आते हैं आईटीआई की पढ़ाई पर चूँकि मैंने आईटीआई में इलेक्ट्रीशियन डिप्लोमा के लिए पहले से ही आवेदन दे रखा था जिसमे मेरा चयन फरवरी 2007 में ही हो चुका था किन्तु मार्च में 12वी की परीक्षा के कारण मैंने 1 महीने की छुट्टी ले रखी थी बाबू जी के द्वारा कही गईं बातो को सोचते हुए मैंने बस में जगह बनाई और अकलतरा रेलवे स्टेशन पहुंच गया वहाँ मेरा दोस्त दीनानाथ जायसवाल भी मिला और हम दोनों रायगढ़ के लिए निकले वहां से फिर बस पकड़कर तमनार गये हमारा आईटीआई संस्थान ग्रामीण क्षेत्र में था इसलिए हमें किराये के लिए मकान गाँव में ही लेना था हमने उस दिन अपने सहपाठी के घर आश्रय लिया एवं अगले दिन कक्षा जाकर पढ़ाई किये उसके बाद किराये का घर खोजने लगे चूँकि गांव ज्यादा बड़ा नहीं था इसलिए हमे जल्दी ही घर मिल गया
जहाँ हमने किराये से घर लिया था वह समाज (समाज का नाम नहीं लूंगा वरना पूरा समाज बुरा मान जायेगा) का एक सक्षम परिवार था उनके मिटटी के दो घर थे दोनों घर गांव के गली के आमने-सामने थे जिसमे से एक घर में खुद का परिवार रहता था और वही किराने की दूकान भी संचालित कर रहे थे तथा सामने वाले घर को किराये में दिया जिसमे हम दोनों दोस्त रह रहे थे हम दोनों के नहाने की व्यवस्था उनके खुद निवास वाले घर पर थी जहां कुंए से पानी निकालकर नहाने की व्यवस्था थी तथा दैनिक कार्यो के लिए बाहर जंगल जाना होता था हम दोनों दोस्त में से मैं सतनामी सूर्यवंशी (SC) समाज से और मेरा दोस्त जायसवाल कलार (OBC) समाज से था तब 2 दिन तो वहाँ अच्छे से रहे किन्तु तीसरे दिन जब उनको मेरी जाति पता चली तो मकान मालिक द्वारा एक फरमान सुना दिया गया कि मेरे लिए नहाने की व्यवस्था किराये वाले घर में ही कर देंगे तथा मेरा दोस्त कुंए में ही आकर नहा लिया करेगा जब मुझे इससे ऐतराज हुआ और मैंने जानने की कोशिश किया कि ऐसा नियम क्यों तब पता चला की यह तो जातिगत छुआ छूत वाली कुंठित मानसिकता का परिणाम है वैसे तो कई बार सुना था की छुआ-छूत जैसी घटनाएं भी समाज में विद्दमान है पर मेरे जीवन में यह अनुभव पहिली बार था मैंने बिना देरी किये वहाँ से वापस आने का फैसला लिया क्योंकि मैंने उस कुंठित मानसिकता से अकेले लड़ पाने में खुद को सक्षम नहीं समझा तब न मेरी शिक्षा उतनी थी और न ही मैं कोई बाहुबली था लेकिन ऐसे लोगो को जवाब देने के लिए आपका बाहुबली होना जरुरी नहीं है आपको केवल ज्यादा से ज्यादा शिक्षित होने की जरुरत है उस वक्त खुद को यह कहा कि जो होता है अच्छे के लिए होता है कल शायद और अच्छा होगा डिप्लोमा कर के शायद मैं हेल्पर मात्र बनूं लेकिन डिग्री लेकर शायद अधिकारी बन जाऊं यही सोच के साथ उस गाँव से अलविदा लिया वापस आया बाबू जी को मनाया और फिर तुरंत बिलासपुर चला गया PET की क्रैश कोर्स करने तब शायद होनी को कुछ और ही मंजूर थी 13 अप्रैल 2007 को दादी जी का स्वर्गवास हुआ इस दुख से सम्भले ही थे कि 27 मई 2007 को बाबू जी के आकस्मिक निधन से पूरा परिवार कमजोर हो गया तब शिक्षा पर ध्यान दें या परिवार पर बड़ा असमंजस की स्थिति रही लेकिन पारिवारिक और नाते रिश्तेदार वाली पृष्ठभूमि शिक्षित थी इसलिए सितम्बर 2007 में ही कृषि अभियांत्रिकी की पढ़ाई करने भिलाई चला गया तब से जीवन में अनेक उतार चढ़ाव आये सब का सामना किये आज हर रोज कल से बेहतर करने के लिए लड़ रहें हैं खुद से इस बीच न किसी से अपनी पहचान छुपाई न जाति छुपाई जो हैं मेरे व्यवहार से सब के सामने हैं 12वी के बाद आईटीआई करने का फैसला शायद गलत या जल्दबाजी में लिया होगा उसी गलती को सुधारने के लिए जातिवादी परिवार के घर किराया लिया जो छुआ छूत जैसी कुंठित मानसिकता के लोग निकले इसमें उनकी कोई गलती नहीं थीं इसमें उनकी शिक्षा गलत थी उनको और शिक्षित होने की जरुरत थी लेकिन आज वर्तमान में पिछले 2 महीने से प्रदेश के जांजगीर जिला विश्वपटल पर छाया हुआ है पहली घटना जांजगीर जिले के पिरहिद गाँव के बोरवेल में गिरे बच्चे का बचाव अभियान तथा अभी जांजगीर जिले में ही कुंठित मानसिकता के लोगो द्वारा जलती चिता को पानी डालकर तथा लात मार का बुझा दिया गया और अधजली लाश को फेक दिया गया इस घटना ने मेरे मन को अंदर से झकझोर दिया है हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं हमारी सोच क्या होते जा रही है हम आज भी समाज को शिक्षित नही कर पा रहे हैं मैंने इस पूरे लेख में कही भी अल्प विराम या पूर्ण विराम नहीं लगाया है इसके पीछे का कारण यही है कि मैं इस लेख को पढ़ने वालो के माध्यम से लोगो को बिना रुके थके शिक्षा ग्रहण करने का सन्देश देना चाहता हूँ शिक्षा के साथ सोच और विचार को भी मजबूती मिले जाति धर्म से ऊपर मानव मानव एक सामान की सोच को माने धन्यवाद
जानकारी के मुताबिक जांजगीर जिला में बस्ती बाराद्वार के दिवंगत स्व.प्रदीप_पाटले के लाश को जलाने से रोकने वालों के ऊपर पुलिस ने अपराध पंजीबद्ध कर सरपंच, उपसरपंच व ग्रामीणों पर गैर जमानती धारा 147,297,295 (क) के तहत गिरफ्तार किया गया उसके बाद प्रदीप के परिजन व ग्रामीण पूरे सम्मान के साथ शव को उसी स्थान पर ले जाकर अंतिम संस्कार कराया।