0 वेतन विसंगतियों में सुधार को लेकर छत्तीसगढ़ लिपिक फेडरेशन व छत्तीसगढ़ के समस्त लिपिक संघ का महासंघ के बेनर तले छिड़ा आंदोलन
कोरबा। विधानसभा चुनाव सिर पर है और ऐसे में समस्त सरकारी दफ्तरों लिपिकों के हड़ताल की राह पर जाने से सरकार का सिरदर्द बढ़ता दिख रहा है। वेतनमान में सुधार की वकालत करते हुए लिपिकों का यह एक दिवसीय सामूहिक अवकाश छत्तीसगढ़ लिपिक फेडरेशन व छत्तीसगढ़ के समस्त लिपिक संघ का महासंघ के बेनर तले किया गया है। साथ ही चेतावनी दी गई है कि इसके पश्चात भी शासन द्वारा लिपिकों के वेतनमान में सुधार नहीं करती है, तो 4 सितंबर से काम बंद, कलम बंद, अनिश्चितकालीन आंदोलन किया जाएगा।
लिपिकों का कहना है कि छत्तीसगढ़ राज्य के गठन से लेकर अब तक विभिन्न लिपिकीय कर्मचारियों द्वारा वेतनमान में अपेक्षित सुधार हेतु समय-समय पर अपने स्तर पर संघर्ष किया गया। वर्ष 2011-2012 2012-2013 में एक वेतन विसंगति का निराकरण कराने हेतु क्रमश: 21 दिन व 35 दिनों का अभूतपूर्व आंदोलन किया। जिसका ही परिणाम रहा कि लिपिक साथियों को 250/500 का कम्प्यूटर प्रोत्साहन भत्ता दिया गया। पर लिपिकों के वेतन विसंगति का निराकरण अब भी लंबित है। इसके पश्चात विभिन्न संघ द्वारा प्रयास किया गया व साथ ही उच्च न्यायालय बिलासपुर के समक्ष याचिका भी दायर की गई। जिसका जवाब दावा प्रस्तुत करने हेतु अप्रैल 2023 में पुन: आदेशित किया गया है। 17 फरवरी 2019 को बिलासपुर में लिपिकों के मंच से भी मुख्यमंत्री ने आश्वस्त किया था, कि लिपिकों की मांगे निश्चित रूप से पूरी होंगी। संजय सिंह प्रांताध्यक्ष शासकीय कर्मचारी संघ, रोहित तिवारी प्रांताध्यक्ष, संतोष वर्मा कार्यकारी अध्यक्ष संचालनालयीन विभाग राम, वीरेन्द्र नाग प्रांताध्यक्ष, संजय सक्सेना समेत अन्य ने संयुक्त रूप से कहा कि लिपिक साथियों को आवश्यक रूप से इस बात को समझना होगा कि यदि आप अपने लिए नहीं करेंगे तो आपके लिये कोई और संघर्ष करने नहीं आयेगा। इसलिये हम सभी ने मिलकर यह निर्णय लिया है कि लिपिकों द्वारा लिपिकों के लिये संघर्ष का शंखनाद किया जाये।
पिंगुआ कमेटी बनी पर प्रतिवेदन का पता नहीं
छत्तीसगढ़ राज्य गठन से लेकर अब तक विभिन्न साथियों व जितने भी लिपिक संघ हैं, या जिनके साथ लिपिक हैं, सबके साझा प्रयासों से लिपिकों के वेतन विसंगति निराकरण के लिए मनोज पिंगुआ की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया। समिति के समक्ष लिपिक संघों द्वारा अपना पक्ष भी प्रस्तुत किया, पर समिति का प्रतिवेदन आज तक प्रस्तुत नहीं किया गया है। इन सब बातों को देखते हुए निर्णय लिया गया और इसी के तहत 22 अगस्त को एक दिन का सामूहिक अवकाश लेकर शासन को चेतावनी दी गई। यह बताया गया कि लिपिक अब अपने अधिकारों का लेकर सजग हो गये हैं। इसके पश्चात भी शासन द्वारा लिपिकों के वेतनमान में सुधार नहीं करती है, तो 4 सितंबर से काम बंद, कलम बंद, अनिश्चितकालीन आंदोलन किया जाएगा।