बस्तर की जीवन रेखा सूखी: इंद्रावती नदी का भविष्य खतरे में

32
Oplus_16908288

The Duniyadari: जगदलपुर- बस्तर की जीवन रेखा कही जाने वाली इंद्रावती नदी आज एक गंभीर संकट से गुजर रही है. यहां अब पानी की जगह रेत ही रेत दिखाई दे रही. 2019 में यह नदी पूरी तरह सूख गई थी और चित्रकोट जलप्रपात, जिसे मिनी नियाग्रा के नाम से जाना जाता है, पहली बार वेंटिलेटर पर था. इस जलप्रपात से एक बूंद पानी भी नहीं गिर रही थी. वही स्थिति 2025 में भी देखने को मिल सकती है।

1975 में ओडिशा और छत्तीसगढ़ सरकार के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके तहत बस्तर को 45% पानी मिलने पर सहमति बनी थी। हालांकि इस समझौते के बावजूद छत्तीसगढ़ को मात्र 30% पानी मिल रहा है और यह समस्या 2025 तक जस की तस बनी हुई है. जोरा नाला के ऊपर रेत और पत्थरों की वजह से पानी की आपूर्ति में रुकावट आई है।

बस्तर वासियों की उम्मीदें और असफलता

2023 में जब छत्तीसगढ़ और ओडिशा में भाजपा की सरकार बनी तो बस्तरवासियों को उम्मीद थी कि दोनों राज्यों के बीच जोरा नाला पर विवाद सुलझ जाएगा। बस्तर को 45% पानी मिलेगा, लेकिन सरकार के लगभग दो साल होने जा रहे है, इसके बाद भी यह विवाद वैसा का वैसा है. गर्मी की शुरुआत होते ही इंद्रावती नदी सूखने की कगार पर है। नदी में पानी की जगह केवल रेत ही रेत दिखाई दे रही है।

इंद्रावती नदी के किनारे खेती करने वाले किसानों ने इस गंभीर समस्या को देखते हुए प्रशासन से नदी में 10% पानी की मांग की। जब प्रशासन ने इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो किसानों ने NH 30 को जाम कर दिया। इसके बाद बस्तर के एसडीएम ने किसानों को पानी देने का वादा किया, लेकिन यह सिर्फ एक दिलासा ही बनकर रह गया।

किसानों ने ओडिशा के जोरा नाला में स्थित प्रशासन से भी बात की और उन्हें रेत व पत्थर हटाने का आश्वासन 15 मार्च को मिला। इतना इंतज़ार ना कर किसानों ने खुद जोरा नाला में जमे रेत व पत्थरों की सफाई शुरू कर दी, लेकिन फिर भी पानी की समस्या का समाधान नहीं हुआ।

जब किसानों ने जल संसाधन विभाग के घेराव का फैसला लिया तब जल संसाधन विभाग ने डेम के गेट खोलने का वादा किया, लेकिन वह भी असफल रहा। 24 घंटे बाद गेट फिर बंद कर दिया गया।

अब इंद्रावती नदी पूरी तरह से सूख चुकी है। इसके परिणामस्वरूप आसपास के क्षेत्रों में जलस्तर में भारी गिरावट आई है। बोरवेल्स तक में पानी नहीं निकल रहा है। किसानों द्वारा किए जा रहे प्रयास भी अब सफल नहीं हो पा रहे हैं।

नदी की स्थिति और भविष्य

इंद्रावती नदी का उद्गम ओडिशा के कालाहांडी जिले के रामपुर के थूयामूल से होता है। इस नदी की कुल लंबाई 535.80 किलोमीटर है। नदी पर चित्रकोट तक 10 स्टॉप डेम बने हैं, लेकिन इन डेमों के गेट खराब होने के कारण पानी कई क्षेत्रों में नहीं रुक पा रहा है और बहकर आगे चला जा रहा है। राज्य सरकार ने जगदलपुर में दो बैराज बनाने का निर्णय लिया है, लेकिन इस पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इन बैराजों के बनने से चित्रकोट तक बने 10 डेम डूब जाएंगे, इस पर सरकार को शोध करने के बाद कोई बेहतर व्यवस्था करनी होगी कि आने वाले समय मे बस्तर वासियों को पानी की समस्या से ना जूझना पड़े।

पानी की कमी का संकट

1975 में ओडिशा और मध्यप्रदेश के बीच हुए समझौते के अनुसार बस्तर को 45 टीएमसी पानी मिलने की बात थी, जिसमें बस्तर को हर वर्ष 301 टीएमसी पानी अलॉट हुआ था। हालांकि बस्तर उसका 5% पानी भी उपयोग नहीं कर पाता और गोदावरी नदी में हर साल 280 टीएमसी पानी बहकर चला जाता है। इंद्रावती नदी में पानी का संग्रहण नहीं होने की वजह से यह पानी रुकता नहीं है और आगे बहकर चला जाता है।

इंद्रावती प्राधिकरण और प्रशासन की लापरवाही

इंद्रावती प्राधिकरण का गठन सिर्फ दिखावे के लिए किया गया है। अब तक इस पर कोई ठोस कार्य नहीं हुआ है। राज्य सरकार की लापरवाही के कारण बस्तरवासियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। इंद्रावती नदी का संकट केवल बस्तर के किसानों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र के जलस्तर और पर्यावरण के लिए भी एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। सरकार को इस समस्या का समाधान शीघ्रता से निकालने की जरूरत है, ताकि बस्तरवासियों को भविष्य में पानी की गंभीर कमी का सामना न करना पड़े।