भारत में आज ही के दिन पहली बार मिला था कोरोना का मामला, जानें तब से लेकर अब तक का हाल

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नई दिल्ली। भारत में कोरोनावायरस का पहला केस मिले अब दो साल पूरे हो गए हैं। भारत में कोरोना का पहला केस 30 जनवरी 2020 को मिला था। तब चीन के वुहान में एक मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाले भारत लौटे एक छात्र को संक्रमित पाया गया था। वह छुट्टियों के दौरान भारत लौटा था और टेस्ट में पॉजिटिव पाया गया था।

इस बीच कोरोना से लड़ाई में देश ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। भारत में अब तक कोरोना की कुल तीन लहरें आई हैं और इस दौरान देश में इसके इलाज को लेकर कई तरीके और नुस्खे सामने आए हैं।

हालांकि, आज अगर कोरोना के ओमिक्रॉन वैरिएंट की लहर के बीच भी देश में हालात नियंत्रण में हैं, तो इसकी वजह कोविड-19 वैक्सीन और लोगों का कोरोना अनुरूप व्यवहार है। मौजूदा समय में कोरोना के निश्चित इलाज का कोई तरीका सामने नहीं आया है।

खुद स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया का कहना है कि इस वक्त देश में टेस्ट-ट्रैक-ट्रीट-वैक्सिनेट (टेस्ट करो, संपर्क ढूंढों, इलाज करो और टीका लगाओ) की नीति सफल रही है। इसके अलावा कोरोना प्रोटोकॉल का पालन भी देश में इस महामारी के प्रबंधन का अहम तरीका रहा है।

जारी की हैं कई गाइडलाइंस

इस दौरान देश में कोरोना के इलाज के लिए कई तरीके आजमाए जा चुके हैं। कुछ महीनों पहले एक मीडिया ब्रीफिंग में नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल ने इस पर चिंता जताते हुए कहा था कि महामारी के दौरान दवाओं का काफी अतिप्रयोग और दुरुपयोग हुआ। उन्होंने कहा था, “स्टेरॉयड का ज्यादा इस्तेमाल म्यूकरमाइकोसिस (ब्लैक फंगस) के खतरे को बढ़ा देता है। स्टेरॉयड जान बचाने वाली दवा है, लेकिन इसके कुछ साइड इफेक्ट्स हैं।”

उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा था, “बुखार के लिए पैरासिटामॉल दी जाती है और कफ के लिए आयुश का सिरप इस्तेमाल किया जाता है। हमने घर पर इलाज के प्रोटोकॉल में भी इसे जोड़ा है। अगर कफ तीन दिन से ज्यादा रहता है तो बुडेसोनडाइन नाम का एक इनहेलर इस्तेमाल किया जा सकता है। यह तीन चीजें ही कोरोना संक्रमितों को इस्तेमाल करनी चाहिए। इसके अलावा गर्म पानी से गरारा और आराम लेना चाहिए। लेकिन दवाओं के अतिप्रयोग की कीमत चुकानी पड़ सकती है।”

क्या कहते हैं डॉक्टर

उथल-पुथल रहे इस सफर को याद करते हुए मेदांता इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिटिकल केयर एंड एनेस्थिसियोलोजी के अध्यक्ष डॉ. यतीन मेहता ने कहा कि गंभीर चिकित्सा के महत्व एवं ठोस (मजबूत) अवसंरचना को इस दौर में महसूस किया गया।

उनका मानना है कि , राष्ट्र द्वारा स्वास्थ्य पर 1.3 फीसद व्यय करने के बाद अब हमारी योजना इसे बढ़ाकर तीन फीसद करने की है। हमने निजी स्वास्थ्य सुविधाओं के महत्व को भी जाना है जिसने अपने स्वार्थ, वेतन कटौती की सोच को परे रखकर और यहां तक स्वास्थ्य कर्मियों (एचसीडब्ल्यू) की मौत के बाद भी इस महामारी को थामने एवं इलाज के लिए हर कदम पर सरकार का साथ दिया।

फरीदाबाद के एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेंज के वरिष्ठ डॉक्टर मानव मनचंदा ने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती थी कि संक्रमित हो जाने के डर से जूझते हुए किसी भी निर्धारित उपचार पद्धति के अभाव में इस महामारी का मुकाबला कैसे किया जाए एवं मरीजों को परामर्श कैसे दिया जाए।

उनका मानना है कि, बतौर स्वास्थ्यकर्मी यह अनुमान लगाना अंसभव था कि आगे क्या होगा। चौथी लहर बहुत ही घातक हो सकती है या यह बड़े पैमाने पर टीकाकरण के बाद कोविड का अंत हो सकता है या कोविड अन्य फ्लू की तरह आज की एक आम स्वास्थ्य समस्या हो सकता है। ’’

दिल्ली के एचसीएमसीटी मणिपाल अस्पताल के इमरजेंसी मेडिसीन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुशांत छाबड़ा ने कहा कि पिछले दो सालों ने उन्हें सिखाया कि निजी एवं पेशेवर स्तर पर दबाव से कैसे जूझना है। उन्होंने कहा, ‘‘कोविड-19 ने दुनियाभर में एक दहशत को जन्म दिया। हमने बिस्तरों, जीवनरक्षक प्रणालियों, दवाइयों की कमी का सामना किया और कई लोगों ने जान गंवायी। कई बार, बतौर डॉक्टर हम असहाय थे।