The Duniyadari: बिलासपुर- छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के 15 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों द्वारा पदोन्नति नियमों में किए गए संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका को हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने खारिज कर दिया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की बेंच ने स्पष्ट किया कि न्यायालय नियुक्ति प्राधिकारी की भूमिका नहीं निभा सकता और न ही संशोधित नियमों को रद्द करने का आधार प्रस्तुत किया गया है।
याचिका का विवरण
याचिकाकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा किए गए 2017 के पदोन्नति नियमों में संशोधन को चुनौती दी थी। उन्होंने 24 फरवरी 2022 को जारी नोटिस, जिसमें सहायक ग्रेड-III के 69 रिक्त पदों पर पदोन्नति हेतु लिखित परीक्षा और कौशल परीक्षा का आयोजन किया गया था, को असंवैधानिक बताया था। उनका तर्क था कि पुराने नियमों के तहत वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति दी जानी चाहिए थी, जबकि नए नियम अधिक कठिनाईपूर्ण हैं।
डिवीजन बेंच का फैसला
डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया कि न्यायालय नियुक्ति प्राधिकारी की कुर्सी पर बैठकर यह तय नहीं कर सकता कि नियोक्ता के लिए क्या उचित है। साथ ही, यदि कोई नियम या संशोधन आम आदमी की भलाई के लिए बनाया गया है, तो मात्र कठिनाई होने से उसे रद्द नहीं किया जा सकता।
पदोन्नति प्रक्रिया का पालन
हाई कोर्ट में पदस्थ 30 कर्मचारियों ने इस संशोधित प्रक्रिया में भाग लिया, जिनमें से 15 कर्मचारी परीक्षा में उत्तीर्ण हो गए और उन्होंने अपनी याचिका वापस ले ली। कोर्ट ने कहा कि जब याचिकाकर्ताओं ने जानबूझकर चयन प्रक्रिया में भाग लिया, तो वे इसके परिणामों पर प्रश्न नहीं उठा सकते।
संशोधित नियमों का प्रभाव
नए नियमों के तहत सहायक ग्रेड-III के पदों में पदोन्नति के लिए लिखित और कौशल परीक्षा को अनिवार्य किया गया है। 2003 में लागू नियमों के अनुसार, 25% पद वरिष्ठता और योग्यता के आधार पर भरे जाते थे, जिसे 2015 में संशोधित कर 20% कर दिया गया।
कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं में से कुछ को समयमान वेतनमान और पदोन्नति दी गई है, इसलिए यह तर्क देना गलत होगा कि वे 15-20 वर्षों से बिना पदोन्नति के कार्यरत हैं। साथ ही, संशोधित नियमों को संविधान विरोधी बताने का कोई ठोस आधार प्रस्तुत नहीं किया गया।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि समय-समय पर नियमों में किए गए संशोधन आवश्यक होते हैं और अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।