सीएम का उड़नखटोला और सनग्लास वाला चश्मा,KGF की तर्ज चल रहा डीएमएफ का एक अलग साम्राज्य…सटोरियों को किसने बांटा आशीर्वाद?राज्यसभा के रण में किसके चरण पग धरेंगे…?

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KGF की तर्ज चल रहा डीएमएफ का एक अलग साम्राज्य…
हाल में रिलीज एक साउथ की KGF2 मूवी की चर्चा चारों ओर हो रही है। लोकतांत्रिक देश में एक अलग साम्राज्य को फिल्मकार ने बखूबी फिल्माया है फ़िल्म के मुख्य किरदार रॉकी जो सोने की खान से सोना निकालने अलग फौज खड़ा करता है ठीक उसी की तर्ज पर काली कमाई का गढ़ कहे जाने वाले कोरबा में भी खनिज न्यास का अलग साम्राज्य चल रहा है। खबरीलाल की माने तो डीएमएफ के कार्यों की स्वीकृति से लेकर फाइलों के संधारण के लिए एक अलग जिले से कर्मचारी को अटैच किया गया है। पहले डीएमएफ से राशि स्वीकृति के लिए परियोजना कार्यालय में सेटअप बैठाया गया था क्योंकि दफ्तर में वैसे भी लोगों की आवाजाही कम रहती है और कार्यालय की चाबी भी ॐ साई राम के पास! तो काम सेफ्टी से हो रहा था,लेकिन एक दिन अचानक कुछ लोग पहुंचे और इन्क्वारी शुरू कर दी। फिर क्या था रातों रात अड्डा बदलना पड़ा और अब एक गोपनीय स्थान पर डीएमएफ की पटकथा लिखी जा रही है। हालांकि इस बात की जानकारी अभी भी कई अधिकारियों को नहीं है। हैं न रॉकी के साम्राज्य वाली बात! हालिया दौर में काम सेंक्शन कराने के लिए एप्रोच से ज्यादा गांधी जी चल रहे हैं, यही वजह है अब सीसी रोड गैंग रिटर्निंग वॉल बनाने में लगे हैं।
सटोरियों को किसने बांटा आशीर्वाद?
आईपीएल पर चौका छक्कों की बरसात के साथ सटोरियों पर भी पैसा खूब बरस रहा है। शहर में चर्चा है कि एक पुलिस अधिकारी का सटोरियों को आशीर्वाद मिला हुआ हैं। तभी तो शहर में सट्टा पूरे शबाब पर है और पुलिस खामोश! सट्टा का चलना तो समझ में आता पर खाकी का शांत रहना लोगों को हजम नहीं हो रहा है।
वैसे तो पुलिस महकमा के मुखिया का स्पष्ट निर्देश था कि शहर में सट्टा और जुआ कोई भी कीमत पर नहीं चलना चाहिए। हुआ भी वैसा ही… पूर्व कप्तान के जाने के बाद जंगल का जुआ और गली मोहल्ले के सट्टा दोनों बंद हो गया, पर अचानक आईपीएल के सट्टा और आनलाईन जुआ फिर से शबाब पर है और पुलिस छोटे मछलियों को पकड़कर वाहवाही लूट रही है। जबकि, बड़े कारोबारियों को पुलिस का आशीर्वाद मिला हुआ है। बावजूद इसके विभाग के उच्च अधिकारी की चुप्पी चर्चा का विषय बना हुआ है। वैसे तो आईपीएल का खेल पूरी तरह सेफ्टी से खेलाया जा रहा है। लोकल बुकी महज कलेक्शन सेंटर का काम कर रहे हैं और राजधानी में बैठे बुकी दांव बुक कर रहे हैं। हार जीत के इस खेल में भी कई लोगों का घर तबाह हो रहा है। पर करें क्या असल में आशीर्वाद जो दे दिए हैं।
राज्यसभा के रण में किसके चरण पग धरेंगे…?
सफेद कपड़े को सफेद बनाए रखना भी आज की राजनीति में खतरों का खेल बनकर रह गया है। इस धुन में सवार अंचल के एक नेताजी मीडिया, सोशल मीडिया पर अपने अंतिम चरण में भारत की राजधानी को नापने की इच्छा मन मे लिए हुए हैं। वामन अवतारी ने भी तीसरे अंतिम पग में समूचे विश्व को नाप लिया था। देने वाले राजा बलि थे, अब प्रदेश के राजा कका ने पहले पग में सभा दिया, दूसरे पग में सभा का अध्यक्ष बना दिया और तीसरे पग को बड़े सभा में धरने की अनुमति दे या नहीं दें, ये तो उनकी मर्जी पर है। कलियुग है सो कोई दूसरा वामन तीसरा पग धर दे तो कोई बड़ी बात नहीं है।
सोशल साइट्स चाहे तो पल में कंकर को शंकर और शंकर को कंकर बना दे। सोशल साइट्स पर दिल्ली के दास बनने की चहचहाहट से सबकी नींद हराम हो गई है। सत्ता पक्ष में मची होड़ मची हुई है लेकिन कोई खुलकर सामने आकर अभी नहीं बोल रहा है कि मेरे भी चरण हैं।
राज्यसभा जाने के लिए सत्ता पक्ष के नेताओ में होड़ सी लग गई है। सूबे के एक दिग्गज नेता तो मानो चीख चीख कर कह रहे हो मुझे तो साजन के घर यानी राज्य सभा जाना ही हैं। इसके अलावा शहर के एक नेता की चाहत भी दिल्ली जाने की हैं पर जाए कैसे क्योकि यांहा तो हर साख पे उल्लू बैठा की कहावत चरितार्थ हो रही है। कहा यह भी जा रहा है कि सत्ता दल से हमेशा की तर्ज पर इस भी राज्य सभा के लिए दूसरे राज्य के नेताओं का लैंडिंग होगा। राजनीतिक पंडितो की माने तो जिस कदर राज्य सभा जाने के लिए नेताओं में होड़ लगी उससे जाहिर है सरकार में सब कुछ ठीक नही चल रहा है । तभी तो सूबे के दिग्गज नेता बड़ी जिम्मेदारी को छोड़ अपना कुर्सी सेफ करने की सोच रहे हैं। ख़ैर सही भी है सीनियर लीडर की मंशा पर पहले ही पानी फिर गया है तो कम से कम अब तो हाईकमान के नजदीक जाने का मौका मिला है सो कैसे भी हो दिल्ली की राजनीति में इंट्री कर ही लिया जाए । आगे छत्तीसगढ़ का चुनाव तो स्वाभाविक है टिकट वितरण से लेकर संगठन में भी दखल रहेगा, मतलब साफ है आम के आम और गुठलियों के दाम! जिस अंदाज में हर जगह नेता जी राज्यसभा जाने की राग अलाप रहे है उससे उनकी मनोदशा समझी जा सकती है। हालांकि की कका के बिना राज्यसभा का सपना तो देख सकते है पर साकार नही कर सकते ।
अब कटघोरा की बारी, जगी आस…
आर्थिक रूप से समृद्ध कटघोरा को जिला बनाने की बारी अब करीब आ चुकी है। जब 2 मई से सूबे के मुखिया का दौरा की घोषणा हुई है उसके बाद कटघोरावासियों को जिला की सौगत की आस एक बार फिर जग गई है। वैसे भी छत्तीसगढ़ में 36 जिले बनाने की बात कही जा रही है। और अभी खैरागढ़ को मिलाकर 33 जिला ही हुआ है। अब 3 और जिला बनना है जिसमें कटघोरा का नाम शामिल होने की बात कही जा रही है।
माना जा रहा है कि अब 2 मई के बाद कभी भी मुख्यमंत्री का उड़नखटोला कटघोरा के किसी गांव में उतरेगा और कटघोरावासियों के उम्मीद की घोषणा भी। वैसे कटघोरा को एडिशनल अधिकारियों की पोस्टिंग की घोषणा तो पहले हो ही गई है पर जिस कदर अभी भी आंदोलनकारियों की आस जिला को लेकर है उससे लोकल राजनीतिज्ञों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। कटघोरा की पब्लिक तो जिस कदर नाराज है उससे तो सीनियर लीडर के सुपुत्र की राजनीतिक कैरियर भी खतरे दिख रहा है। ऐसे में स्वाभाविक है कि समय रहते जिला बनाने की घोषणा हो जाए और श्रेय पार्टी के लीडरों को मिले। जिससे आगामी चुनाव में वोटरों को भुनाया का सकें।
सीएम का उड़नखटोला और सनग्लास वाला चश्मा
छत्तीसगढ़ में मौसम में उतार चढ़ाव बना हुआ, हम समर सीजन वाले मौसम की बात नहीं कर रहे हैं। मौसम है सियासी….जिसका पारा सीएम भूपेश बघेल के उड़नखटोला के उड़ते ही ऊपर नीचे होने लगता है। दो मई ज्यादा दूर नहीं है। दो मई से सीएम अपने उड़नखटोले में सवार होकर जिलों में सरकार की योजनाओं को लागू करने अफसरों का फीडबैक लेंगे…..उड़नखटोला कब उड़ा और कहां लैंड करेगा इसकी जानकारी जुटाने के लिए अफसरों की टोली ने राजधानी में अपने खास को ड्यूटी पर लगा दिया है। पर इस बार अफसरों की नहीं चलने वाली…सीएम ने पहले ही कह चुके हैं वो कब कहां जाएंगे इसकी जानकारी एक दिन पहले दी जाएगी, वो भी वीआईपी सुरक्षा के लिहाज से…..। यानि सब को सब कुछ मालूम नहीं होगा। ऐसे में उन अफसरों की सांसें फूलने लगी हैं जो अब तक कागजों में नवा छत्तीसगढ़ गढ़ने में लगे थे।
जिले के कुछ अफसरों ने तो बकायदा सन ग्लास वाले चश्मों के आर्डर भी कर दिए हैं। कहीं आसमान में उड़ने वाले सीएम के उड़नखटोले को देखने में कोई चूक न हो जाए। हालांकि कि अभी दो मई दूर है पर मैदानी अफसर गर्मी और उमसभरी दोपहरी में भी आसमान पर परिंदा देखकर ही पसीना पसीना हो रहे हैं…पता नहीं वो परिंदा था या सीएम का उड़नखटोला…..। जिले में इन दिनों ऐसे ही अफसरों की जोरदार चर्चा हो जो इन दिनों आंखों पर सन ग्लास चढ़ाकर बार बार आसमान की ताकते देखें जा रहे हैं।

 

                    अनिल द्विवेदी , ईश्वर चन्द्रा